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सैनिक का थाल या गंभीर सवाल?

बीएसएफ के एक जवान तेज बहादुर यादव के विडियो जारी करके घटिया खाना दिए जाने और अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बाद बहस शुरू हो गई है. क्या सीमा पर जवानों को भरपेट खाना मिलता है या नहीं? इसमें एक तरफ जहाँ कुछ लोगों ने दावा किया है कि कुछ अफसर राशन और अन्य चीजें गांवों में आधी कीमत पर बेच देते हैं, वहीं कुछ पूर्व सैनिकों ने खराब खाना परोसे जाने की खबर को खारिज किया है. हालाँकि पिछले दिनों केग की एक रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई थी कि कई जगह देश के सैनिक खाने की क्वालिटी, मात्रा और स्वाद से संतुष्ट नहीं है. जबकि अन्य जगह तैनात कुछ जवान कह रहे है कि हो सकता है कि यादव के आरोप उनके निजी पसंद पर आधारित हों. हमारे मेस का खाना एवरेज है, लेकिन इतना भी बुरा नहीं जितना कि तेज बहादुर बता रहे हैं. “इंटरनैशनल बॉर्डर पर तैनाती की तुलना में लाइन ऑफ कंट्रोल पर सेवाएं देना बेहद मुश्किल होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि मौसम और इलाका, दोनों ही चुनौतियां पैदा करते हैं. फिर भी राशन सभी को मिलता है.अच्छी क्वॉलिटी का यह राशन अच्छी मात्रा और विकल्पों के तौर पर उपलब्ध होता है.

जवान के द्वारा पोस्ट की गयी इस वीडियो को करीब पोने दो लाख लोग शेयर कर चुके है जिसे करीब 31 लाख लोगों ने देखा. वीडियो को देखने के बाद न्यूज चैनल और सोशल मीडिया के जरिये सेना के लिए काफी संजीदगी लोगों के अन्दर दिखाई दे रही है. जो होनी भी चाहिए आखिर गर्मी, धूप, बरसात हो या कड़ाके की ठण्ड जिस मुस्तेदी से जवान अपनी ड्यूटी कर देश की सीमओं की सुरक्षा कर रहे है यदि उन्हें ठीक से रोटी भी नसीब नहीं होगी तो फिर हमारा विश्व की सुपरपावर बनने का सपना बेमानी सा लगता है. क्योंकि सीमा पर जवान और खेत में किसान किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होती है. जवान ने जिस तरह इस वीडियो में कहा कि इसके बाद मैं जीवित रहूँ या ना रहूँ लेकिन मेरी बात देश के सिस्टम के खिलाफ उठनी चाहिए. उपरोक्त कथन भी लोगों की संवेदना को झिंझोड़ता सा नजर आया. हालाँकि बीएसएफ ने जवान पर इसके उलट गंभीर आरोप लगाते हुए सफाई देते हुए कहा, कि जवान तेजप्रताप की मानसिक हालत ठीक नहीं है वो अक्सर शराबखोरी, बड़े अधिकारियों के साथ खराब व्यवहार के आचरण से जाना जाता रहा है. वर्ष 2010 में तो एक उच्च अधिकारी को बन्दुक दिखाने के जुर्म में उसे 90 दिनों की जेल भी हो चुकी है. बीएसएफ और जवान तेज बहादुर यादव के आरोप-प्रत्यारोप झूटे है या सच्चे यह तो अभी कहा नही जा सकता लेकिन इस मामले की केन्द्रीय ग्रहमंत्रालय द्वारा निष्पक्ष जाँच भी होनी चाहिए.

एक ओर सीमा सुरक्षा बल के जवान तेजबहादुर ने सेना में व्यापात भ्रष्ट्राचार को उजागर करने का दावा किया है. जबकि कुछ लोग इसे जवान की महज नाराजगी बता रहे है. पर इस बहस में यह सवाल जरुर उठना लाजिमी है कि क्या सेना अंदरूनी रूप से भ्रष्ट्राचार से मुक्त है या नहीं? यदि देश की आजादी के बाद तुरंत हुए जीप घोटाले को अलग भी रख दे तो कारगिल युद्ध में शहीद सैनिको के लिए ताबूत में भी घोटाला सामने आया था. 2007 में लद्दाख में मीट घोटाला और 2006-07 में ही अंडा और शराब घोटाला सामने आया था. एक अन्य राशन घोटाले में लेफ्टिनेंट जनरल एस. के साहनी को दोषी पाए जाने के बाद जेल भेजा गया था. इससे साफ जाहिर होता है कि सेना और अर्धसैनिक बलों के अन्दर भ्रष्ट्राचार की जड़ें काफी हद तक समाई है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार एक सैनिक के लिए हर महीने 2905 का भोजन भत्ता सरकार की ओर से देय होता है हर वर्ष सेना तकरीबन 1440 करोड़ रूपये का राशन जवानों के लिए खरीदती है. सैनिको को मौसम के हिसाब से पुष्ट आहार सरकार जारी करती है लेकिन इसके बाद भी भोजन की शिकायत आती है यह कारण भी जवानों के सामने स्पष्ट होने चाहिए.

दरअसल भ्रष्ट्राचार का यह कोई अकेला मामला नहीं है समय समय पर यहाँ इस तरह के मामले उठते रहे है यदि खाने-पीने के मामले को ही ले लिया जाये तो सरकारी केंटिन हो या सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील अक्सर शिकायते सुनने को मिल ही जाती है. अभी हाल में नोटबंदी के दौरान सबने देखा था किस तरह काले धन के खिलाफ लागू हुई मुहीम में कुछ बेंको द्वारा काले धन को सफेद करने का कार्य लोगों के सामने आया था. यह मानव स्वभाव होता है कि किसी भी कार्य को व्यक्ति कम से कम कष्ट उठाकर प्राप्त कर लेना चाहता है. वह हर कार्य के लिए एक छोटा और सुगम रास्ता खोजने का प्रयास करता है. इसके लिए दो रास्ते हो सकते हैं३ एक रास्ता नैतिकता का हो सकता है जो लम्बा और कष्टप्रद भी हो सकता है और दूसरा रास्ता है छोटा किन्तु अनैतिक रास्ता. लोग अपने लाभ के लिए जो छोटा रास्ता चुनते हैं उससे खुद तो भ्रष्ट होते ही हैं दूसरों को भी भ्रष्ट बनने मे बढ़ावा देते हैं.

कुछ परिस्थितियाँ ऐसी भी होती हैं जहाँ मनुष्य को दबाव वश भ्रष्टाचार करना और सहन करना पड़ता है. इस तरह का भ्रष्टाचार सरकारी विभागों मे बहुतायत से दिखता है. वह चाह कर भी नैतिकता के रास्ते पर बना नहीं रह पाता है क्योंकि उसके पास भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए अधिकार सीमित और प्रक्रिया जटिल होती है. इस सैनिक के दावे में कितना सच है कितना झूठ इसकी अभी कोई अधिकारिक पुष्ठी नहीं हुई किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोई मामला ऐसा हुआ ही न हो, एक कहावत है जहाँ आग लगी होती है धुँआ वहीं से निकलता है. सरकार को चाहिए इस मामले को यही दबाने के बजाय इस तवरित, उचित  और निष्पक्ष कारवाही करें. क्योंकि जवान किसी सरकार पर नहीं बल्कि कुछेक उच्च अधिकारियों पर आरोप लगा रहा है सरकार को सोचना चाहिए एक सिपाही देश के दुश्मन के तो छक्के छुड़ा सकता है लेकिन भूख के नहीं!! राजीव चौधरी

 

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