जीवन की एक सच्चाई है कि यहां पैदा होने वाला हर जीव एक दिन जरूर अपने शरीर को त्यागता है यानि उसकी मौत निश्चित है इससे ना कोई बचा है और ना कोई बचेगा. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा अब मरे हुए लोग भी जिन्दा हो जाया करेंगे. वो भी सिर्फ अस्सी हजार रूपये में। दरअसल मुंबई में रहने वाला एक लड़का शुभम पंडित है, शुभम की एक छोटी बहन थी नंदनी 17 साल की थी। वह पिछले कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थी। शुभम एक गरीब परिवार से है, तो इनसे मिलने एक ईसाई महिला आई नाम स्वरणा खेड़े और उसने इन्हें पुरजोर ये विश्वास दिलाया कि पंजाब में पास्टर बजिंदर सिंह कैंसर और हर बीमारी का इलाज करते हैं और मुर्दों को भी जिंदा करने की भी ताकत रखते हैं।
इतना ही नहीं उसने बरजिंदर सिंह से शुभम की वीडियो कॉल से बात भी करवाई, जिसमें बजिंदर ने यह दावा किया कि वह नंदिनी का कैंसर जड़ से खत्म कर देंगे और उन्हें पंजाब में जालंधर के चर्च में मिलने को कहा। बस शुभम नंदिनी को लेकर पहुँच गया जालंधर, वहां सिक्योरिटी गार्ड ने नंदिनी का कैंसर ठीक करने के लिए एक लाख रूपये की मांग की, शुभम ने बताया कि वह गरीब है इतना पैसा नहीं है। तो अब अगला खेल शुरू हुआ और बजिंदर सिंह ने कहा, कि अगर तुम और तुम्हारी माताजी वीणा पंडित और बहन नंदनी पंडित धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन जाए तो वह नंदिनी का कैंसर थोड़े ही पैसों में ठीक कर देंगे। शुभम पंडित ने सपरिवार ईसाई मत स्वीकार कर लिया और इसके लिए शुभम पंडित ने 40 हजार रूपये भी अदा कर दिए।
इसके बाद बजिंदर सिंह ने दवा के नाम पर नंदनी को कुछ प्रसाद खिलाया, होली वाटर पिलाया, और प्रेयर की, और कहा कि अब नंदिनी का कैंसर उसने निकाल कर ठीक कर दिया है। आप लोग हर रोज तीन बार प्रेयर करें और प्रभु यीशु मसीह को याद करें और रोजाना बाइबल पढ़ें। उसनें उन्हें एक जादुई तेल भी दिया और कहा कि नंदिनी रोजाना यह तेल पिए और लगाए भी, कुछ ही दिनों में नंदिनी भागने दौड़ने लग जाएगी।
ये किस्सा फरवरी से शुरू हुआ और 24 मार्च 2021 तक पहुँच गया। 24 मार्च 2021 नन्दनी का सिटी स्कैन करवाया, जिसमें शुभम को पता चला कि नंदनी कि हालत बहुत बिगड़ चुकी है। शुभम ने फिर पादरी बजिंदर सिंह के गुर्गो से बात की उन्होंने फिर एक स्पेशल प्रार्थना के पांच हजार रूपये ऐठ लिए। अब विडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से स्पैशल ये प्रेयर चल ही रही थी कि इलाज के दौरान नंदिनी की मृत्यु हो गई।
जब इन लोगों ने बताया कि वह मर चुकी है तो अगला खेल शुरू हुआ कहा गया कि अब 50 हजार रूपये और लगेंगे नंदिनी को जिन्दा करने के लिए। इसके लिए 30 हजार रूपये शुभम ने वही दिए और बाकि बाकी पैसा मुंबई जाकर देने को कहा। नंदिनी तो अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन शुभम जरुर एसएसपी आवास के बाहर बैठा कह रहा है कि ना तो मेरी बहन जिंदा हुई और हमसे पैसे भी ठग लिए तथा धोखे से एक ब्रहमण परिवार का धर्मांतरण करवा ईसाई बना दिया। वह पादरी बजिंदर के खिलाफ मुकदमा चाहता है।
ऐसा शायद ही हो क्योंकि जो पंजाब गुरुओं की भूमि है आज कल वहां ईसाई मिशनरीज खुलकर खेल रही है यानि धर्मांतरण का धंधा जोरो शोरो पर चल रहा है। साल 2011 की जनगणना के जातिगत आंकड़े बताते हैं कि पंजाब में ईसाइयों की वृद्धि दर सिखों से अधिक है, सिखों की आबादी जहां 9.6 फीसद बढ़ी है वहीं ईसाइयों की 18.9 फीसद के हिसाब से बढ़ी है। ये बात 2011 की है अब 2021 चल रहा है शायद ये आंकड़ा 36 फीसदी की वृद्धि से ना बढ़ रहा हो! क्योंकि पिछले आंकड़ों के अनुसार देखें तो पंजाब में ईसाई जनसंख्या गुरदासपुर जिले में 1 लाख 47 हजार 981, अमृतसर में 51 हजार 948, फिरोजपुर जिले में 23 हजार 93, जालंधर जिले में 22 हजार 106, लुधियाना जिले में 11 हजार 656, चंडीगढ़ में 7 हजार 627, पटियाला में 3 हजार 765, कपूरथला में 4 हजार 353, होशियारपुर जिले में 12 हजार 726, मोगा में 2 हजार 564, भटिंडा में 1 हजार 659, फतेहगढ़ साहिब में 1 हजार 85, रोपड़ में 3 हजार 434, संगरूर में 2 हजार 71 फरीदकोट, नवांशहर और मानसा जिले में भी ईसाई जनसंख्या तेजी बढ़ चुकी है। इस जनगणना में नए ईसाइयों के आंकड़े नहीं हैं और मिशनरियां जनाक्रोश से बचने के लिए उनको हिन्दू-सिख के रूप में ही सार्वजनिक रूप से पेश कर रही हैं। इसमें सबसे बड़ी बात ये है कि ये जो ईसाई जनसँख्या बढ़ी है ये कोई ईसाई माता पिता की कोख से जन्में लोग नहीं है बल्कि धर्मान्तरित लोग है। इसके अलावा पंजाब के गांवों से लेकर कस्बों और शहरों में नए बने चर्चों से मिशनरियों के इरादे साफ झलकते हैं। हालांकि राज्य की खुफिया एजेंसियां भी सरकार को राज्य में बढ़ रही मतान्तरण की गतिविधियों के प्रति आगाह कर चुकी हैं परन्तु वोट बैंक की राजनीति के चलते किसी सरकार ने इन पर अंकुश लगाने की हिम्मत नहीं दिखाई है।
ये संख्या बढ़ कैसे रही है दरअसल ये पुरे का पूरा एक मनोवैज्ञानिक खेल होता है आज पंजाब में ईसाई पादरी और नन गांवों और शहरों गरीबों और मरीजों को इकट्ठा करते हैं। नेटवर्किंग की तरह यह कार्य होता है और फिर वे जीसस की प्रार्थना और सम्मोहन की आड़ में चंगाई सभा सजाकर लोगों को ठीक करने का ढोंग करते हैं। इनमें पहले से ही इनके लोग खड़े होते है, जिन्हें मंच पर बुलाकर ठीक करने का ढोंग किया जाता है। जो नये नये लोग इसमें बुलाये जाते है जब वह देखते है तो उन्हें लगता है चमत्कार महाचमत्कार और लोग इनके छलावे में आ जाते है। चंगाई सभा की भीड़ में अंतत: धर्मांतरण का खेल खेला जाता है, हालांकि अब तो टीवी चैनलों पर इसका जोर-शोर से प्रचार भी किया जाने लगा है।
लेकिन इसमें शर्म की बात ये है कि लोग ना तो इतना सोच पा रहे है और ना उन्हें सोचने दिया जा रहा है कि अगर चंगाई सभा से मरीज ठीक हुआ करते तो ईसाई देशों खासकर यूरोप और अमेरिका में चल रहे सभी अस्पताल और क्वारंटाइन सेंटर और सभी स्वास्थ केन्द्रों को बंद करके उनकी जगह चंगाई सभा हुआ करती? इसके अलावा जब ईसाइयों को सबसे बड़ा धर्मगुरु और जीसस का उत्तराधिकारी वेटिकन का पॉप बीमार होकर अस्तपाल क्यों जाता? क्यों नहीं वह भारत से चंगाई सभा वाले थोक के भाव घूम रहे पास्टर अंकुर नरूला, बरजिंदर सिंह समेत हजारों की इस पादरियों की भीड़ को क्यों नही बुलाया जाता? साथ इटली अमेरिका और यूरोप में कोरोना काल में ही सैंकड़ों की संख्या में पादरी और नन कोरोना से मर गये उन्हें क्यों जीसस की प्रार्थना से ठीक नहीं किया गया? और जब चंगाई में इतनी ताकत है तो क्यों नहीं जीसस को जिन्दा कर लेते उसे 2500 सालों से सूली पर लटकाए बैठे है?
RAJEEV CHOUDHARY