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आतंक के गढ़ में आतंक

उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान में बुधवार को कलाशनिकोव रायफल से लैस तालिबान के आत्मघाती हमलावर एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में घुस गए और अंधाधुंध गोलीबारी की जिससे कम से कम 21 लोग मारे गए जबकि सुरक्षा बलों की जवाबीकार्रवाई में तहरीक ए तालिबान के चार हमलावर ढेर हो गए। यह हमला 2014 में पेशावर के एक सेनास्कूल पर हुए नृशंस हमले की याद दिलाता है। हो सकता है अब तक कब्रों पर पानी छिड़ककर फूल चढ़ा दिए हो| कॉलेज के प्रांगण में पड़े खून के छींटे साफ कर दिए गये हो किन्तु अब पाकिस्तान की सत्ता जब उनकी दुआ के लिए आसमान में हाथ उठाये तो एक बार अपने हाथों को जरुर देख ले कि कहीं उन पर भी खून के दाग तो नहीं है|
इस मौसम में जहाँ माँ अपने बच्चों को सर्दी ना लग जाये डरती है वहीं कोई एक धार्मिक पुस्तक का हवाला देकर इन बच्चों की हत्या कर जाये तो उस माँ पर क्या बीतती होगी? यही ना कि इनका मजहब इन्हें यही क्यों सिखाता है? क्यूँ मजहबी मदरसों में पढ़कर यह हाथ मानवता की सेवा भलाई करने के बजाय अधिकतर लोग बन्दूक लेकर सड़कों पर क्यों निकल जाते है? क्या अब भी पाकिस्तान की आवाम के लिए पाकिस्तान में फलता फूलता आतंक भारत व् अन्य देशों का दुश्मन है? अब भी समय है पाकिस्तान की आवाम को अपने शासको से पूछना चाहिए कि आखिर अच्छे तालिबान बुरे तालिबान के नाम पर यह सांप सीढ का खेल चलता रहेगा! आखिर इन दरिंदो से सख्ती से क्यों नहीं निपटा जाता?
पिछले साल नवम्बर पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अजीज ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि अमेरिका और बाहरी देशों के साथ लड़ रहे अच्छे तालिबानी पाकिस्तान का सिर दर्द नहीं है शायद तभी अफगानिस्तान और भारत विरोधी आतंकवादी खुले घूम रहे है हाफिज सईद और हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की सेना सुरक्षा प्रदान कर रही है| इस घटना के बाद पाकिस्तान में कई संगठन तो घटना की निंदा से भी कतरा रहे है
पेशावर यूनिवर्सिटी के एक स्टूडेंट मंजूर खान ने कहा, “हमें आतंकवाद पर दया नहीं दिखानी चाहिए। हमें उनसे डरना नहीं, बल्कि लड़ना है। उनसे डरकर हम पढ़ना छोड़ नहीं देंगे।” दरअसल मजहबी शिक्षा दीक्षा के पक्षधर और किसी भी देश में आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरोधी आतंकी संगठन जानते है यदि मुस्लिम समाज मजहबी शिक्षा के अतिरिक्त कुछ और पढ़ेगा तो यह आतंक का तेजाब बनना बंद हो जायेगा| खुदा का खोफ और कुछ आयतों से आखिर कब तक यह खेल जारी रहेगा? प्रश्न एक नहीं अनेक है कि इन दरिंदो के आतंक के कारोबार को धन कौन देता है? इस्लाम का रखवाला मुस्लिम जगत? यदि इस्लाम का रखवाला मुस्लिम जगत इन लोगों को धन प्रदान करता है तो फिर खुद को अमन पसंद क्यों कहते है?
हर एक घटना के बाद कारवाही और निंदा जैसे शब्द सुनने को मिलते है| किन्तु हर बार कारवाही के नाम पर लीपापोती कर दी जाती है| आखिर क्यूँ और कैसे! एक लादेन के मरते ही हजारों लादेन खड़े हो जाते है? क्यों नहीं मुस्लिम जगत का पढ़ा लिखा धडा इस हजार वर्षो पूर्व की परम्पराओं को उखड फेंकता? हत्या कहीं भी हो और किसी की भी हो हम निंदा करते है हम सामाजिक सदभाव प्रेम सवेंदना के पक्षधर है किन्तु आज मुस्लिम समाज को खुद से प्रश्न पूछना चाहिए कि क्या मदरसों में जिसे आप लोग अमन की पुस्तक कुरान कहते हो नहीं पढाई जाती? यदि पढाई जाती है तो फिर इन मदरसों से बुल्ले शाह, दाराशिकोह, अब्दुल कलाम जैसे लोग क्यों नहीं निकलते? क्यों हर बार इनसे लादेन, फजुल्लाह, अजहर मसूद और बगदादी जैसे लोग निकलते है? धार्मिक कट्टरता के खात्मे को लेकर मुस्लिम देशों को मुस्लिम बहुल देश तजाकिस्तान से सीख लेनी चाहिए जहाँ एक दिन में करीब तेरह हजार लोगों की दाढ़ी काटी गयी 17 हजार लड़कियों को बुर्के से आजाद किया गया और मुस्लिम पहनावे की सभी दुकान बेन कर दी गयी ताकि धार्मिक कट्टरता ना पनपने पाए| अब पाकिस्तान सरकार को भी इसी तरह समझना चाहिए और बिना भेदभाव के इन पर कारवाही करनी चाहिए ताकि ममता की गोद में खिलने वाले फूल मानवता के सूरज की सुनहरी धूप देख सके|

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