Tekken 3: Embark on the Free PC Combat Adventure

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Tekken 3

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आप स्वामी है अथवा सेवक है?

एक गांव में एक व्यक्ति रहता था जिसके पास एक घोड़ा था। उस व्यक्ति ने अपने घोड़े की सेवा करने के लिए एक सेवक रखा हुआ था। वह सेवक हर रोज प्रात: चार बजे उठता, घोड़े को पानी पिलाता, खेत से घास लेकर उसे खिलाता,चने भिगो कर खिलाता और उसका शौच हटाता, उसे लेकर जाने के लिए तैयार करता, उसके बालों को साफ करता, उसकी पीठ को सहलाता। यही कार्य सांयकाल में दोबारा से किया जाता। इसी दिनचर्या में पूरा दिन निकल जाता। अनेक वर्षों में सेवक ने कभी घोड़े के ऊपर चढ़कर उसकी सवारी करने का आनंद नहीं लिया। जबकि मालिक प्रात: उठकर तैयार होकर घर से बाहर निकलता तो उसके लिए घोड़ा तैयार मिलता हैं । वह घोड़े पर बैठकर, जोर से चाबुक मार मार कर घोड़े को भगाता था और अपने लक्ष्य स्थान पर जाकर ही रुकता था। चाबुक से घोड़े को कष्ट होता था और उसके शरीर पर निशान तक पड़ते मगर मालिक कभी ध्यान नहीं देता था। मालिक का उद्देश्य घोड़ा नहीं अपितु लक्ष्य तक पहुँचना था।

जानते हैं कि मालिक कौन हैं और सेवक कौन हैं और घोड़ा कौन हैं? यह मानव शरीर घोड़ा हैं। इस शरीर को सुबह से लेकर शाम तक सजाने वाला, नए नए तेल, उबटन, साबुन, शैम्पू, इत्र , नए नए ब्रांडेड कपड़े, जूते, महंगी घड़ियाँ और न जाने किस किस माध्यम से जो इसको सजाता हैं वह सेवक हैं अर्थात इस शरीर को प्राथिमकता देने वाला मनुष्य सेवक के समान हैं। वह कभी इस शरीर का प्रयोग जीवन के लक्ष्य को सिद्ध करने के लिए नहीं करता अपितु उसे सजाने-संवारने में ही लगा रहता हैं, जबकि वह जानता हैं की एक दिन वृद्ध होकर उसे यह शरीर त्याग देना हैं। जबकि जो मनुष्य इन्द्रियों का दमन कर इस शरीर का दास नहीं बनता अपितु इसका सदुपयोग जीवन के उद्देश्य को, जीवन के लक्ष्य को सिद्ध करने में करता हैं वह इस शरीर का असली स्वामी हैं। चाहे इस कार्य के लिए शरीर को कितना भी कष्ट क्यों न देना पड़े, चाहे कितना महान तप क्यों न करना पड़े, यम-नियम रूपी यज्ञों को सिद्ध करते हुए समाधी अवस्था तक पहुँचने के लिए इस शरीर को साधन मात्र मानने वाला व्यक्ति ही इस शरीर का असली स्वामी हैं।

ऋग्वेद 9/73/6 में ईश्वर को “पवमान” अर्थात पवित्र करने वाला बताया गया है। पवमान ईश्वर अपने स्वर्गिक ज्ञान के स्वरों और दिव्य प्रकाश की किरणों से सत्यनियम रूपी स्वर और प्रकाश रूपी ज्ञान का नाद कर रहा हैं। प्रभु की वीणा से निकले स्वर और रश्मियों रूपी किरण से यह सब जगत वियुप्त हो रहा हैं। जो इन्द्रियों के भोग में अंधे और बहरे हो जाते हैं वह न ईश्वर के इस पवित्र करने वाले नाद को सुन पाते हैं, न उसके दिव्य प्रकाश के दर्शन कर पाते हैं। आईये हम सब अपने कान और आँख खोल ले जो ईश्वर ने हमें दिए हैं और उनसे प्रभुधाम से आने वाले अनवरत दिव्य स्वर और प्रकाश को ग्रहण करे। जो व्यक्ति इस शरीर का स्वामी है, वही ईश्वर के पवमान स्वर को सुन सकता हैं। शरीर का सेवक तो सदा अँधा और बहरा ही बना रहेगा।

आप स्वयं विचार करे क्या आप स्वामी हैं अथवा सेवक हैं?

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