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आर्य समाज का निराला कर्मयोगी: कुंभाराम आर्य

लेने की बात तो हर कोई कर लेता है लेकिन जो सिर्फ देने की बात करें उसे निसंदेह आर्य समाज कहा जा सकता है। क्योंकि इस देश को आजादी में क्रांतिकारी दिए, समाज को विद्वान, शिक्षा के संस्थान, महिलाओं को उनका उचित स्थान, समाज के वंचितों पिछड़ों सम्मान के साथ समाज सेवा के क्षेत्र में जो अनमोल मोती आर्य समाज ने दिए विरले ही कोई संगठन इस देश को इतना कुछ दे पाया होगा। इस कड़ी में स्वामी श्रद्धानन्द जी से लेकर न जाने आपने कितने महानुभावों के नाम सुने होंगे, उनके प्रेरक कार्य आर्य समाज के इतिहास में अंकित हैं।

आर्य समाज से जुड़ें एक ऐसे ही महानुभाव चौधरी कुंभाराम आर्य का जीवन चरित्र पढ़कर भी मन गदगद हो जाता है। कुंभाराम जी को राजस्थान में किसान वर्ग के लिए और छुआछुत की लड़ाई में संघर्ष का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने राजस्थान के किसानों को राजशाही शोषण और उत्पीड़न के चक्रव्यूह से बाहर निकालने की न केवल मुहिम चलाई बल्कि उसको चकनाचूर कर दिया। 10 मई 1914 को जन्मे कुंभाराम राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों में भी प्रमुख थे और उन्हें आजादी की जंग में कई बार जेल भी जाना पड़ा था। किसानों के लिए संघर्ष करने के साथ ही वे राजनीतिक जगत में भी अहम पदों पर रहे।

लेकिन एक साधारण से गरीब घर में पैदा हुए कुंभाराम जी सदा से ऐसे नहीं थे बस बाल्यकाल में आत्मसम्मान को एक चोट से गिरने वाले थे कि आर्य समाज ने आकर हाथ थाम लिया और उनका जीवन पूरा बदल गया। हुआ ये कि सहपाठी विद्यार्थियों में जयलाल शर्मा एक घनिष्ठ मित्र थे। एक दिन स्कूल की छुट्टी मिलने पर जयलाल शर्मा मित्र के नाते श्री आर्य को अपने घर ले गया। घर पर खेलने की ठानी। गाँव के खेलों में एक खेल लुक-मिचणी कहलाता है। उसे खेलना आरम्भ किया। लुक मिचणी खेल में एक लड़का दूसरे सब लड़को को खोजता है दूसरे सब लड़के इधर-उधर छुप जाते है। खेल खेलते समय श्री आर्य एक पानी के माट के पीछे जाकर छुप गये। जयलाल शर्मा की माता ने देखा की ’’जाट’’ का छोरा माट के पीछे छुपा बैठा है, पंडितानी को ताव आ गया। एक लट्ठ उठाया और जाकर माट पर दे मारा, माट फूटी, आँगन में पानी से भर गया। श्री आर्य चौके। पंडितानी ने क्रोध भरे स्वर में भर्त्सना के साथ कहा, ’अपनी औकात नहीं देखता ब्राहम्ण का माट अपवित्र कर दिया। अब खेल में भंग पड़ गया, लबाकि लड़के भाग गये। इस घटना आत्मसम्मान पर गहरी चोट लेकर श्री आर्य वहाँ से चले आये।

अल्पायु बाल-बुद्धि और घटना की गम्भीरता बैचेन रखने लगी। श्री आर्य को कोई मार्ग दिखाई नहीं पड़ रहा था। पर एक दिन आर्य समाज का एक भजनोपदेषक गाँव आया। उसने गाँव के लोगो को भजन सुनाये। छुआछूत और ब्राह्मणवाद की खुब काट की। श्री आर्य को समस्या का हल मिल गया। उस दिन से आर्य समाज की ओर उनका ऐसा रूझान हुआ कि एक दिन जनेउ धारण करके वे पक्के आर्यसमाजी बन गये। उस समय आर्य समाज समाजिक क्रान्ति लाने वाली संस्था तो थी ही साथ ही देशी रियासतों में आर्य समाजियों को स्वस्तन्त्रता सैनानी समझा जाता था कि आर्य समाजी है तो पक्का क्रन्तिकारी होगा इस कारण पुलिस आर्य समाजियों की निगरानी रखती थी।

श्री आर्य 12 वर्ष के भी नहीं थे कि पिता का देहान्त हो गया था। परिवार का सारा भार माँ के सिर पर आ पड़ा। माँ ने अपने पुत्र को पढ़ाना उचित समझा और उसे गाँव के स्कूल में पढ़ने भेजती रही। उस समय गाँव में प्राइमरी तक स्कूल था। श्री आर्य प्राइमरी पास करने में पूरे राज्य में सर्वप्रथम आये थे।

शिक्षा समाप्त करके श्री आर्य ने वन विभाग में हनुमानगढ़ में नौकरी की। उस समय उनकी आयु 14 साल थी। जब आर्य 1930 में कांग्रेस के अधिवेशन में सम्मिलित होने के लिए लाहौर चले गये तो सरकार ने इनको नाबालिग होने का बहाना  लेकर 15 दिसम्बर 1931 को नौकरी से हटा दिया। तब वे पुलिस विभाग में चले गये नौकरी के दौरान स्वतंत्रता के सिपाहियों के संपर्क में कार्य करने लगे। यहाँ भी राज्य सरकार ने आर्य को नजबंदी के लिए 14 दिसमबर 1946 को नोटिस जारी कर दिया।

इस प्रकार कुम्भाराम आर्य पुलिस सेवा से अलग होकर राजनीति में कूद पड़े। उसमें आर्य को मंत्रीमण्डल में लिया गया। यहां भी इन्होंने जागीरदारी प्रथा को समाप्त करने में पूर्ण भागीदारी निभाई। इसके अलावा भारत पाक के बंटवारे के समय पाकिसतान से आने वाले हर हिन्दू परिवार को स्नेह के साथ 25 बीघा सिंचित भूमि प्रदान की।

आर्य समाज का प्रभाव ऐसा था कि हर बात उनके तर्क आकाटय होते थे। राजस्थान की कई सरकारों मे केबिनेट मंत्री रहे श्री आर्य ही वह देवता हैं, जिन्होने किसानों को जमीन का मालिकाना हक दिलाया। सत्ता का उन्हे कभी मोह नहीं रहा। किसान और सिद्धांत की राजनीति करने वाले कूम्भाराम आर्य जी अंतिम समय मे भी किसान की पीड़ा पुरी तरह दुर नहीं कर पाने के मलाल मे रो पड़ते थे। उन्होने वर्ग चेतना पुस्तक लिखकर किसान को अपनी पीड़ा से मुक्त करने का अचूक मंत्र दिया है। किसानों के हित में लड़ते-लड़ते ,पांच दशकों तक संघर्षो से झूझते, जुझारू सेनानी चौधरी कुम्भाराम आर्य जी ने 26 अक्टूबर 1995 को जीवन की चादर उतार दी। निर्मल ओद बेदाग। आर्य समाज का यह निराला कर्मयोगी जिस शान से जिया, उसी शान स मरा। देह के बंधन से मुक्त होकर विदेह हो गया और कुम्भाराम आर्य का नाम उनके कर्मो से अमर हो गया। ऐसे महान पुरूष को आर्य समाज का कोटि-कोटि प्रणाम।

विनय आर्य (महामंत्री) 

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