Categories

Posts

इंटरनेट बना मौत का कारण

Rajeev Choudhary

12 साल के छोटे भाई ने 23 साल के बड़े भाई रमन का मोबाइल लेकर वीडियो गेम खेला जिससे मोबाइल नेट पैक का डेटा खत्‍म हो गया। बड़े भाई ने गुस्‍से में आकर छोटे भाई की चाकू से गोदकर हत्‍या कर दी। यह घटना राजस्‍थान के जोधपुर की है। महामंदिर थाना इलाके के वीर दुर्गादास कॉलोनी में किराए के मकान में रहने वाले कैलाशदान चारण, पत्नी और 5 बच्चों के साथ रहते हैं। छोटे मासूम भाई 12 साल के रॉय ने बड़े भाई रमन के मोबाइल नेट को वीडियो गेम खेल कर खत्म कर दिया जिस पर गुस्साए बड़े भाई रमन ने चाकू से गोदकर छोटे भाई रॉय को मार डाला फिर उसे छत पर छोड़ चुपचाप घर से निकल गया।

कुछ समय पहले यानि दिसम्बर 2017 में दिल्ली से सटे गौतमबुद्धनगर के ग्रेटर नोएडा में एक 15 वर्ष के बच्चे ने एक ही रात में दो कत्ल किए थे। एक कत्ल अपनी सगी माँ का और दूसरा अपनी सगी बहन का। ये दोनों कत्ल बच्चे ने क्रिकेट बैट पीट-पीट कर किये थे। कत्ल करने की वजह क्राइम फाइटर गेम को बताया गया था। क्योंकि बहन ने शिकायत कर दी थी कि भाई दिन भर मोबाइल फोन पर गेम खेलता रहता है और इसलिए माँ ने बेटे की पिटाई की, उसे डाँटा और उसका मोबाइल फोन छीन लिया था।

यह घटना भी दुनिया भर में तबाही मचाने वाले ब्लू व्हेल गेम के कारण की गयी सैंकड़ो आत्महत्याओं से अलग नहीं थी पर यह मामला ज्यादा खतरनाक इसलिए बना क्योंकि इस मामले में आत्महत्या के बजाय दोहरा हत्याकांड हुआ था। इन सभी घटनाओं के बाद यह सवाल उठने लाजिमी थे कि आखिर बच्चों को किस उम्र में मोबाइल फोन दिए जाये?

असल में लाड-प्यार या जरुरत के चलते परिवारों में बच्चों को मोबाइल देना अब कोई बड़ी बात नहीं है। दूसरा अक्सर बच्चे भी यह भी कहकर मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करते है कि उसे पढाई के लिए इसकी जरुरत है। पर इसमें सबसे बड़ा नुकसान तो यह होता है कि बच्चे पूरी तरह मोबाइल पर निर्भर हो जाते हैं। कारण जब बच्चा मोबाइल का इस्तेमाल अपनी पढ़ाई के लिए भी कर रहा होता है तब यह नुकसान होता है कि जिस उत्तर को खोजने के लिए उसे पुस्तक का पाठ पढ़ना चाहिए वह काम उसका झट से गूगल पर हो जाता है इसलिए बच्चे पुस्तको को पढ़ना कम कर देते है। बच्चे उस उत्तर को याद भी नहीं रखते क्योंकि उन्हें लगने लगता है कि जब उसे इस उत्तर की जरूरत महसूस होगी वो दुबारा गूगल को क्लिक कर लेंगे।

हालाँकि लॉकडाउन के बाद आजकल अनेकों आधुनिक स्कूलों में शिक्षक क्लासरूम में आधुनिक तकनीक को अपना रहे हैं, लेकिन कई अध्ययनों से पता चला है कि पारंपरिक तरीका ही माध्यमिक शिक्षा में अधिक कामयाब हो सकता हैं। बावजूद इसके धीरे-धीरे एक नई आधुनिक शिक्षा विधि का निर्माण किया जा रहा हैं और इस कारण आज व्याख्यान के जरिए पढ़ाना एक अवशेष की तरह होता जा रहा है। शायद अगले कुछ वर्षो में यह तरीका डायनासोर की तरह विलुप्त हो जाएगा।

उदहारण हेतु लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के 2015 के एक अध्ययन ने दिखाया था कि जब ब्रिटेन के कई स्कूलों ने क्लासरूम में फोन पर पाबंदी लगा दी तो बच्चो में अनोखा बोद्धिक सुधार हो गया था। इसे भारतीय तरीके से कुछ यूँ समझे कि अब से पहले जोड़-घटा, गुणा या भाग बच्चों को उँगलियों पर सिखाया जाता था इससे उनकी स्मरण शक्ति मजबूत होती थी। किन्तु आज बच्चे फटाफट मोबाइल में केल्कुलेटर का इस्तेमाल कर रहे है उन्हें अपना दिमाग लगाने की जरूरत नहीं पड़ती इससे भी उनकी स्मरण शक्ति का हास हो रहा है।

वैसे देखा जाये तो जैसे-जैसे आज सूचना सर्वव्यापी हो रही है, वैसे-वैसे आज बच्चों की सफलता मोबाइल पर निर्भर हो रही हैं। इससे उनकी रचनात्मकता के साथ सोचने की क्षमता को हानि तो हो ही रही है साथ ही वे लगातार एक विचलित करने वाली दुनिया में प्रवेश कर रहे है। पहले बच्चा खेलता था। माँ बीस दफा उसे कह देती थी आराम से खेलना चोट मत खा लेना। किन्तु आज वह जब मोबाइल पर गेम खेलता है मोबाइल में उन्हें कोई रोकने वाला, डांटने वाला नहीं है एक किस्म से वह इसमें स्वतंत्रता महसूस कर रहा है।

 अक्सर जब बच्चें मोबाइल पर गेम खेलते है हम यह सोचकर खुश होते है कि चलो कुछ देर उसे खेलने भी दिया जाना चाहिए। लेकिन वह खेल नहीं रहा है, ध्यान से देखिये वह सिर्फ बैठा है और उसके दिमाग से कोई और खेल रहा है, उसका चेहरा देखिये कई बार वह हिंसक होगा कई बार अवसाद में जायेगा। कई बार जब उसके पास मोबाइल नहीं होगा वह परिवार के बीच रहते हुए भी खुद को अकेला महसूस करेगा। वह एक अनोखे संसार में जीने लगता है। माता-पिता से ज्यादा गेम के पात्र उसके हीरो हो जाते है। जब किसी कारण परिवार के लोग उसे इससे दूर करते है वह हिंसक हो जाता है। घर का जरुरी सामान तोड़ने-फोड़ने के अलावा कई बार खुद के साथ अन्य के साथ हिंसा भी कर बैठता है।

बात सिर्फ बच्चों के बोद्धिक विकास और हिंसा तक सीमित नहीं है यदि इससे आगे देखें तो आज इंटरनेट पर हर तरह की सामग्री उपलब्ध है। जो बात या थ्योरी उसे अपनी उम्र के पड़ाव के बाद मिलनी चाहिए थी वह उसे बेहद कम उम्र में मिल रही है। कौन भूला होगा नवम्बर 2017 की उस खबर को जो समाचार पत्रों के मुख्यपृष्ठो पर छपी थी कि “दिल्ली  में साढ़े चार साल के बच्चे पर साथ पढ़ने वाली बच्ची के रेप का आरोप” आखिर एक बच्चे के पास यह जानकारी या कामुकता कहाँ से आ रही है? हो सकता है मोबाइल फोन पर कोई क्लिप आदि देख कर वह लड़का प्रेरित हुआ होगा!

असल में आज हमे ही सोचना होगा और बदलाव भी स्वयं के घर से शुरू करना होगा। बच्चों के सामने कम से कम मोबाइल का इस्तेमाल करें, उनके साथ पढाई की बात करें। बच्चों का घर के दैनिक कार्यों कुछ में कुछ ना कुछ योगदान जरुर लें ताकि वह जिम्मेदारी महसूस कर सकें। इससे उन्हें कई चीजों के महत्व का पता चलेगा। उनके साथ खेलें, इससे उनका शारीरिक विकास होगा और थकान के साथ अच्छी नींद भी आएगी। क्योंकि जब उसका ध्यान मोबाइल फोन में ज्यादा रहता है तो वह अनिंद्रा का शिकार भी हो जाता है। मौलिक रूप से बच्चो को शिक्षा से लेकर सभी स्तरों पर यदि कामयाब करना है तो उसे लगातार विचलित करने वाली इस मोबाइल फोन की दुनिया से उम्र की एक अवधि तक दूर रखना होगा। वरना भले ही बच्चा आपका हो किन्तु उसकी दिशा कोई और अपने ढंग से तय कर रहा होगा आपके ढंग से नहीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *