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इसाई मिशनरी के जाल में नेपाल

अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मलेन काठमांडू के मंच से नेपाल में बड़ी संख्या में हो रहे धर्मातरण के खिलाफ आवाज उठाई गयी. नेपाल के कई सामाजिक चिंतको ने भी इस गंभीर मामले पर अपनी चिंता व्यक्त की वाग्मती विद्यालय के संचालक रामप्रसाद विद्यालंकार ने अपनी राय रखते हुए कहा था कि नेपाल की असली पहचान उसका हिन्दू राष्ट्र होना था न कि धर्मनिरपेक्ष देश. बाहरी मुल्कों से आये धन के कारण हमारे देश के नेता तो जीत गये किन्तु नेपाल हार गया. भारत और नेपाल दो पड़ोसी देश है. दोनों की सभ्यता, संस्कृति, भाषा और धर्म एक सा होने के साथ-साथ समस्याएं भी सामान है. जहाँ 21 वीं सदी में भारत आर्थिक तरक्की के साथ धर्मांतरण से जूझ रहा है वही नेपाल भी इस बीमारी से अछूता नहीं रहा बल्कि कहा जाये तो भारत से भी बड़े पैमाने पर यहाँ धर्मांतरण का खेल जारी है. नेपाल में कुछ समय पहले जारी हुए धर्मवार आंकड़े चैकाने वाले थे. 1990 के दशक में नेपाल में इसाइयों की आबादी .02 फीसदी यानी मात्र 20 हजार बताई गई थी, वहीं अब इन वर्षो में यह आबादी बढ़ कर 7 फीसदी यानी 21 लाख से अधिक हो गई है. पिछले 20 सालों में नेपाल में इसाई मिशपरियों का जाल बहुत तेजी से फैला है यह बीमारी नेपाल के तमाम अंचलों में तेजी से फैल गई हैं. नेपाल के बुटवल में कई चर्च बन चुके हैं. इसके अलावा नारायण घाट से बीरगंज के बीच कोपवा, मोतीपुर, आदि में हजारों लोगों ने इसाई धर्म स्वीकर कर छोटे छोटे चर्च स्थापित कर लिए हैं. जो अपना धार्मिक कारोबार इतना तेजी से विकसित कर रहे है कि आने वाले समय में नेपाल तो होगा किन्तु नेपाल का नेपाल में कुछ नहीं होगा.

यदि इस बीमारी का कारण जाने तो हमें कुछ समय पहले के अतीत में झांक कर देखना होगा जून 2001 में नेपाल के राजमहल में हुए सामूहिक हत्या कांड में राजा, रानी, राजकुमार और राजकुमारियाँ मारे गए थे. उसके बाद राजगद्दी संभाली राजा के भाई ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह ने. फरवरी 2005 में राजा ज्ञानेंद्र ने माओवादियों के हिंसक आंदोलन का दमन करने के लिए सत्ता अपने हाथों में ले ली और सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया. नेपाल में एक बार फिर जन आंदोलन शुरू हुआ और अंततः राजा को सत्ता जनता के हाथों में सौंपनी पड़ी और संसद को बहाल करना पड़ा संसद ने एक विधेयक पारित करके नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया.2007 में सांवैधानिक संशोधन करके राजतंत्र समाप्त कर दिया गया और नेपाल को संघीय गणतंत्र बना दिया. नेपाल की एकमात्र हिंदू राष्ट्र की चमक जून 2001 के नारायणहिती नरसंहार के बाद खोने लगी थी. अप्रैल 2006 में लोगों की इच्छा के अनुसार राजा की शक्तियों को सीमित कर दिया. साल 2007 में लागू अंतरिम संविधान ने धर्मनिरपेक्षता को मूलभूत सिद्धांत के रूप में स्थापित किया. हिंदू राज्य के रूप में नेपाल के उद्भव और क्षरण को शाह राजशाही (1768-2008) के उत्थान और पतन से अलग करके नहीं देखा जा सकता.
इस एक मात्र हिन्दू राष्ट्र के सेकुलर बनने के बाद यूरोप की ईसाइयत और अरब देशों को जैसे खुला शिकार मिल गया था. यह सब जान गये थे कि धार्मिक रूप संम्पन नेपाल आर्थिक रूप से उतना धनी नहीं है. यहाँ अभी भी बड़ी संख्या में गरीब और अशिक्षित लोग है. देवीय चमत्कार में भरोसा करना या यह कहो अंधविश्वास आदि का प्रभाव सामाजिक जीवन को बहुत गहराई तक प्रभावित करता है. नेपाल में मिशनरियों के निशाने पर वहां की गरीब और मध्यम जातियों के लोग हैं. मिशनरियां वहां के मगर, गुरुंग, लिंबू, राई, खार्की और विश्वकर्मा जातियों को अपना टार्गेट बनाती है. पहले वह उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि के लिए मदद देती है और बाद में बड़ी खामोशी से इसाई धर्म में दीक्षित कर देती हैं. नेपाल के बदले इस जनसांख्यकीय हालात से वहां के बुद्धिजीवियों में चिंता व्याप्त है। वहां के समाज विज्ञानी रमेश गुरंग की मानें तो, इसाई आबादी बढ़ने का यह सिलसिला अगर बना रहा, तो आने वाले 50 सालों में वहां हिंदू और बौद्ध आबादी अल्पसंख्यक होकर रह जायेगी. ऐसे में सिर्फ एक ही सवाल पैदा होता है यदि दुबारा हिन्दुत्व यहाँ कायम हुआ तो नेपाल महात्मा गांधी के हिंदुत्व को अपनाएगा या नाथूराम गोडसे और वीर सावरकर के हिंदुत्व को स्वीकार करेगा?
नेपाल में भूकंप के बाद इन मिशनरीज को वहां सर्वाधिक लाभ मिला. सुचना और प्रशासन इस मामले में काफी सुस्त है राजनैतिक उठापटक के कारण सरकार का ध्यान इस ओर न के बजाय है जबकि वहां की मीडिया भी राजनीति और राजनेताओ को ही प्राथमिकता दे रही है पिछले वर्ष नेपाली संविधान सभा ने नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव को भारी बहुमत से ठुकरा दिया था और यह घोषित किया गया कि हिंदू बहुल यह हिमालयी देश धर्मनिरपेक्ष बना रहेगा. लेकिन ऐसे हालात में यह प्रश्न जरुर उठेगा आखिर कब तक धर्मनिरपेक्ष बना रहेगा? पूरा इस्लाम आ जाने तक या वेटिकन के अधीन आने तक? जिस नेपाल ने कभी किसी की राजनेतिक गुलामी नहीं की अब कहीं वो धार्मिक गुलामी करने की ओर तो नहीं जा रहा है?….Rajeev Choudhary

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