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उन्नति का एक मात्र उपाय अभ्यास

किसी सामान्य व्यक्ति को महान् बनने के लिए निरतंर ‘अभ्यास’ करते रहना चाहिए। किसी भी काम को लगातार करते रहने से उस काम में दक्षता हासिल हो जाती है । इस दोहे से समझ सकते हैं अभ्यास का महत्व कितना है । करत-करत अभ्यास के जडमति होत सुजान, रसरी आवत जात, सिल पर पडत निशान । इस दोहे का अर्थ यह है कि जब सामान्य रस्सी को भी बार-बार किसी पत्थर पर रगड़ने से निशान पड़ सकता है तो निरंतर अभ्यास से मूर्ख व्यक्ति भी बुद्धिमान बन सकता है। लगातार अभ्यास करने के लिए आलस्य को छोड़ना पड़ेगा और अज्ञान को दूर करने के लिए पूरी एकाग्रता से मेहनत करनी होगी ।
किसी स्थिति को प्राप्त करने के लिए जो प्रयत्न किया जाता है उसी का नाम ही अभ्यास होता है । योगशास्त्र में भी अभ्यास को बहुत ही महत्व दिया गया है । योगाभ्यास के दो प्रमुख साधनों में से अभ्यास भी एक साधन है । मन को एकाग्र या निरुद्ध करने हेतु अभ्यास की बहुत ही आवश्यकता है । अभ्यास भी किस प्रकार करना चाहिए वह भी योगशास्त्र में लिखा है कि दीर्घकाल तक, निरन्तरता पूर्वक, तपस्या पूर्वक, ब्रह्मचर्य पूर्वक, विद्या पूर्वक तथा श्रद्धा पूर्वक किया गया प्रयत्न अर्थात् अभ्यास ही दृढ़ता को प्राप्त होता है और व्यक्ति को सफलता को प्राप्त कराता है ।

अभ्यास का किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व होता है। अभ्यास करने से विद्या प्राप्त होती है और अनभ्यास से विद्या समाप्त हो जाती है। अभ्यास की कोई सीमा नहीं होती जब व्यक्ति निरंतर अभ्यास करता है तो वह कुछ भी प्राप्त कर सकता है। अभ्यास के बल पर कठिन से कठिन काम को भी सरलता से किया जा सकता है। यह अभ्यास व्यक्ति को सफलता या उन्नति के ऊँचे शिखर तक ले जाता है। अभ्यास करने से ही व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कुशल बनता है और कुशल व्यक्ति अपने साथ-साथ अपने कार्यों को भी पूर्णता प्रदान करता है। इस संसार में कोई भी जन्म से बुद्धिमान या महान नहीं होता है वह अभ्यास से ही बुद्धिमान और महान बनता है। हम जिस किसी को भी देखते हैं कि वह सफल है, महान है तो उसने कभी न कभी पुरुषार्थ किया होगा और उस क्षेत्र में अभ्यास किया होगा तब जाकर वह उस स्थिति को प्राप्त कर पाया होगा ।
प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह किसी ऊँचे पद को प्राप्त करे, कामयाबी को हासिल करले परन्तु यह भी याद रखना चाहिए कि उस सफलता को, उस पद को प्राप्त करने के लिए बहुत ही अभ्यास व परिश्रम करना पड़ता है ।
यह अभ्यास ही एक मात्र ऐसा साधन है जिससे कि व्यक्ति की सर्वांगीण उन्नति हो सकती है । कुछ लोग केवल सोच लेते हैं कि हमें इस उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करना है परन्तु उस स्तर के परिश्रम नहीं कर पाते तो उन्हें यह याद रखना चाहिए कि “न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः’ । अर्थात् बिना परिश्रम के कोई सफलता हाथ नहीं लगती, यहाँ तक कि बिना प्रयत्न के शेर के मुंह में भी कोई शिकार आकर प्रविष्ट नहीं हो जाता । अभ्यास को आत्म-विकास का सर्वोत्तम साधन माना जाता है। यदि मनुष्य एक बार जीवन में असफल भी हो जाता है तो इसका मतलब यह नहीं होता है कि वह कभी भी सफल नहीं हो पायेगा। यदि वह बार-बार अभ्यास करे तो उसे सफलता अवश्य प्राप्त होगी। जिस प्रकार कोई बच्चा गिर-गिरकर चलना सीखता है वह उसका अभ्यास होता है। जब कोई मनुष्य गलती करके सीखता है वह भी उसका अभ्यास होता है। कोई बच्चा तुतला-तुतला कर साफ बोलना सीखता है। जिस प्रकार हमारे शरीर का कोई अंग काम करने से बलवान हो जाता है और जिस अंग से काम नहीं लिया जाता है वह कमजोर हो जाता है उसी तरह से अभ्यास के बिना मनुष्य आलसी हो जाता है। जब मनुष्य एक बार किसी भी काम में असफल हो जाता है तो उसे बार-बार उस काम में श्रम और साधना करनी चाहिए। शरीर का विकास प्रकृति द्वारा दी गयीं शक्तियों का सदुपयोग करने से होता है।
विद्यार्थी जीवन में अभ्यास का बहुत अधिक महत्व होता है। विद्यार्थी जीवन अभ्यास करने की पहली सीढी होती है। विद्यार्थी जीवन से ही मनुष्य अभ्यास का आरंभ करता है। जब विद्यार्थी एक बार परीक्षा में असफल हो जाता है तो बार-बार अभ्यास करके वह परीक्षा में विजय प्राप्त करता है। शिक्षा को कोई भी विद्यार्थी एक दिन में प्राप्त नहीं कर सकता है। शिक्षा को प्राप्त करने के लिए लगातार कई वर्षों तक परिश्रम ,अभ्यास और लगन की जरूरत पडती है। अगर किसी विद्यार्थी को विद्वान् बनना हो अथवा किसी उत्तम नौकरी प्राप्त करना हो तो भी दिन रात अभ्यास की आवश्यकता है ।
कभी-कभी विद्यार्थी अपने रास्ते से भटक जाते हैं इसी वजह से उनसे लगातार परिश्रम और अभ्यास करवाया जाता है जिससे वे अपने रास्ते से भटकें नहीं। पुराने समय में विद्यार्थियों को अपने घरों से दूर रहकर शिक्षा प्राप्त करनी पडती थी जिससे वे सांसरिक सुखों से दूर रक सकें और उनका ध्यान भी न भटके।
किसी भी व्यक्ति के लिए अभ्यास की बहुत आवश्यकता होती है। अगर किसी मनुष्य को शिक्षा के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करनी है तो अभ्यास बहुत ही आवश्यक है। किसी भी कार्य का अभ्यास करने से उसमे दक्षता आती है। उसकी कठिनाईयां भी आसान हो जाती हैं। ऐसा करने से समय की भी बचत होती है। अभ्यास करने से अनुभ बढ़ता है।
जब कोई व्यक्ति एक काम को बार-बार करता है तो उसके लिए मुश्किल काम भी आसान हो जाता है। उसे काम के छोटे से छोटे गुण-दोषों के बारे में पता चल जाता है। जिस काम को अभ्यासी आधे घंटे में पूरा कर लेता है उसी काम को कोई और व्यक्ति आठ घंटे में भी बहुत मुश्किल से कर पाता है। बार-बार अभ्यास करने से वह उस काम में निपुण हो जाता है और वह अपनी ही कला का विशेषज्ञ बन जाता है। फिर विश्व की सभी विभूतियाँ उसके कदम चूमती हैं।

लेख-नवीन केवली

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