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एक देश दो विधान आखिर क्यों ?

भले ही 26 जून 1952 को लोकसभा में  डॉ. मुखर्जी ने कहा था कि एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे। लेकिन 70 साल बाद स्थिति जस की तस है और धर्मनिरपेक्षता के दम पर विधान की खुलकर धज्जियां उड़ाई जा रही है। पिछले दिनों एक बार फिर तेलंगाना के आदिलाबाद में एक परीक्षा केंद्र पर, हिंदू महिलाओं को चूड़ियों, झुमके, पायल, पैर के अंगूठे के छल्ले, मंगलसूत्र सहित अपने सभी सामानों को हटाने के लिए कहा गया था। जबकि मुस्लिम समाज की लड़कियों के बुर्का पहनने पर कोई आपत्ति नहीं थी। तब यह सियासत गर्मा गयी और एक बार फिर सवाल उठा कि एक देश में दो विधान क्यों है? छात्रों में धार्मिक रूप से भेदभाव क्यों किया जाता है?

हालाँकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ। जब-जब कोई परीक्षा आती है तब-तब सुरक्षा के नाम ऐसा होता है। पिछले दिनों हरियाणा में दो छात्रों को जनेऊ उतारने को कहा गया था। जिसमें आर्य समाजी परिवार के युवा अड़ गये यहाँ तक कहा कि गर्दन उतर सकती है लेकिन जनेऊ नहीं! अंत में परीक्षा केंद्र पर स्थित अधिकारियों ने उन्हें जनेऊ के साथ ही अन्दर जाने दिया।

परन्तु सवाल तो तब भी यही था कि आखिर जनेऊ से नक़ल करने का खतरा है लेकिन बुर्के से कोई नक़ल का खतरा नहीं? जबकि आज तक कोई ऐसा मामला सामने नहीं आया कि जनेऊ मंगलसूत्र चूड़ी या बिंदी की आड़ में कोई छात्र नक़ल करता पकड़ा गया हो? जबकि बुर्के की आड़ में अनेकों ऐसे मामले दर्ज हो चुके है जिनमें मुस्लिम लड़कियां बुरका पहनकर नक़ल करती पकड़ी गयी है? पिछले दिनों मुजफ्फरनगर के ही एक परीक्षा केंद्र कई मुस्लिम छात्राएं बुर्के की आड़ में नक़ल करती पकड़ी गयी थी। दूसरा अभी कुछ दिन पहले ही बिहार के मुजफ्फरपुर में एक परीक्षा केंद्र पर शिक्षक को शक हुआ कि बुर्के के अन्दर ब्लूटूथ हो सकती है। शिक्षक ने हिजाब हटाकर कान दिखाने को कहा, तब छात्राओं ने ऐसा ना करके परीक्षाकेंद्र से बाहर जाकर अपने घरों में फोन करके भीड़ जोड ली। जरा सी बात को मजहब की आड़ में एक बड़ा झाड बना दिया। फिर वही घिसे-पिटे कथन दोहराए गये की हमें पाकिस्तान जाने को कहा। हमें देशद्रोही कहा। ये कहा वो कहा। यानि वही सहानुभूति का गेम जो 1947 में खेल-खेल कर अलग पाकिस्तान लिया था।

इस विवाद पर भी सोशल मीडिया पर लोगों ने वही प्रतिक्रिया दी कि बुर्का जेहाद का हिस्सा है, इसलिए दिक्कत नहीं. लेकिन चूड़ी पायल मंगलसूत्र श्रृंगार का हिस्सा है इसलिए परीक्षा में प्रवेश नहीं,  इस देश में कौन से षड़यंत्र हो रहे है? एक लिखा था कि जिस देश के स्कूलों व परीक्षास्थलों में मुस्लिम खातूनों को बुर्का पहनने की छूट है, ईसाइयों को क्रॉस पहने हुए परीक्षा देने की छूट है, लेकिन किसी सनातनी बहन को मंगलसूत्र पहनने की इजाजत नहीं, उसी दोहरे चरित्र वाले देश को ही सेक्युलर राष्ट्र कहा जाता है?

दरअसल ऐसा एक दो बार नहीं बल्कि कई बार हो चूका है। किन्तु जब सुनने को बहुत कुछ हो तो कुछ ना कुछ अनसुना हो ही जाता है। पिछले दिनों राजस्थान में रीट एग्जाम परीक्षार्थियों के परीक्षा केंद्र में प्रवेश को लेकर प्रशासन ने इतनी सख्ती दिखाई कि महिलाओं और युवतियों के दुपट्टे उतरवा दिए गए और कपड़ों पर लगे बटन तक काट दिए गये थे। यहीं नहीं महिलाओं के मंगलसूत्र, चूड़ियां, बालों की क्लिप, साड़ी पिन निकलवा दी गई थी। और तो और कैंची से परीक्षा केंद्रों पर लंबी बाहे के कुर्ते काटे गए।  इसका शिकार सिर्फ हिंदू छात्र-छात्राएं ही हो रहे थे। जबकि हिजाब पर न कोई रोक थी न कोई टोक, जरा सोचिए कि यहां मंगलसूत्र और दुपट्टा खल रहा है लेकिन हिजाब धड़ल्ले से चल रहा है?

अब कहा जाता है कि हिजाब इनके मजहब का अटूट हिस्सा है, ठीक है मान लिया! लेकिन सवाल ये है कि मंगलसूत्र, चूड़ी बिंदी जनेऊ पायल ये भी सनातन धर्म से जुड़े है अगर ये हटाये जा सकते है तो हिजाब क्यों नहीं? परन्तु जवाब के बजाय एक दूसरी खबर मिली कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अपने ही दिए आदेश को वापस लेने पर विचार कर रही है, जिसमें मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं के दौरान भाग लेने वाली छात्राओं को बुरका व हिजाब पहनने पर पाबंदी लगा दी गई थी।

इससे हो सकता है कि जब कहने को बहुत कुछ हो तो लोग ऐसी खबरों पर चुप हो जाते है। पिछले दिनों कर्नाटक में परीक्षा के दौरान हिजाब ना पहने देने से कुछ छात्राओं ने फिर से परीक्षा कराने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि इस मामले का परीक्षा से कोई संबंध नहीं है, इस मामले पर तुरंत सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए मना कर दिया था कि परीक्षा में गैरहाजिर रहना अहम फैक्टर है कारण नहीं, चाहे वो हिजाब विवाद, तबीयत खराब, उपस्थित रहने में असमर्थता हो या परीक्षा के लिए पूरी तैयारी नहीं होने की वजह से हो। चीफ जस्टिस ने कहा था अंतिम परीक्षा में गैरहाजिर रहने का मतलब है एबसेंट रहना और दोबारा परीक्षा आयोजित नहीं की जाएगी।

आखिर क्या जिद है कि परीक्षा बिना हिजाब के नहीं दी जाएगी? जब बिना हिजाब के मुस्लिम लड़कियां फिल्मों में डांस कर सकती है। टीवी सीरियल में अर्धनग्न हो सकती है, बिना हिजाब के खेल सकती है तो परीक्षा क्यों नहीं? ये सारी शर्म हया लज्जा मजहब की ठेकेदारी मजहब का अभिन्न अंग, परीक्षा के दौरान ही क्यों लेकर खड़े हो जाते है? कहीं ये नक़ल करने का साधन तो नहीं बना गया?

सवाल और भी हो सकते है जवाब और भी हो सकते है।  लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर छात्रों में भेदभाव किया जा रहा है और क्यों हिन्दुओं से ही उनके धार्मिक चिन्हों से लेकर सुहागिन की निशानी मंगलसूत्र तक उतरवाए जा रहे है? क्यों उनकी चूड़ियाँ तोड़ी जा रही है? उस सुहागिन को क्यों विधवा महसूस कराया जा रहा है? आखिर परीक्षा केन्द्रों पर हिन्दू ही क्यों जलील किये जा रहे है?  एक देश में दो विधान क्यों है और इस बात का जवाब कौन देगा कि परीक्षा पढ़ाई की है या जिहादी लड़ाई की?

राजीव चौधरी

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