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कश्मीर में सना मुफ़्ती के नाम एक चिट्ठी

प्रिय सना मुफ्ती खुश रहो! जब से हमें पता चला कि आपने राजनीति शास्त्र की पढ़ाई की है, बाद में इंग्लैंड की वॉरविक यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय संबधों में मास्टर्स किया और अब आप ज्यादातर समय कश्मीर में ही रहती हैं, तो सुनकर बहुत खुशी हुई। पर साथ यह सुनकर दुःख भी हुआ कि आप अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को ख़त्म किये जाने से काफी नाराज है और आपको ये डर है इसके हटने से धार्मिक समीकरण बदल जायेंगे और कश्मीरी संस्कृति तबाह हो जाएगी।

सना हमारा मानना है कि चार किताब पढ़ लेने से या किसी यूनिवर्सिटी से डिग्री के ले लेने से संस्कृतियों का ज्ञान नहीं होता। किसी संस्कृति का ज्ञान तब होता जब हम उसके धर्म ग्रन्थ पढ़े उसका अतीत जाने। अब जिस संस्कृति के खत्म होने का आप लोग रोना रो रहे है वह तो अस्सी-नब्बे के दशक में ही खत्म हो गयी थी. उस संस्कृति की लाश का  क्या बचाना?

फिर भी सना कभी समय मिले हिन्दू संस्कृति के इतिहास को जरुर पढना क्योंकि जब आपकी संस्कृति ने ईरान में पारसी संस्कृति को लगभग समाप्त कर दिया था तब इसी हिन्दू संस्कृति ने उनमें से बचे कुछ लोगों को पनाह दी और उनकी संस्कृति की रक्षा की थी। इसके अलावा जब विश्व भर में नाजी यहूदियों को कत्ल कर रहे थे तब हमने उनकी संस्कृति को ढाल बनकर बचाया था। सना तुम्हें क्या इतिहास बताना हिन्दू संस्कृति तो दूसरों पर परोपकार और उनकी रक्षा में ही आधी से ज्यादा खुद मिट गयी। यदि समस्त संस्कृतियों का कोई पालना है तो सिर्फ यही हिन्दू संस्कृति तो है इसके अलावा कोई दूसरी हो तो बताना।

सना हमारा नहीं तो कम से कम अपना इतिहास ही पढ़ लेना कि तुम्हारी इसी इस्लामिक संस्कृति से मोहमम्द साहब के अंतिम वंशजों रक्षा करते-करते राजा दाहिर ने अपने प्राण गंवा दिए और उनकी मासूम बेटियों के साथ मोहमम्द बिन कासिम ने क्या किया इतिहास आज भी रोता है। इसके अलावा भी न जाने कितने किस्से है अगर उन्हें जानोगी तो खुद की संस्कृति से चिढ हो जाएगी।

सना मुफ़्ती जी शायद आपने अपने कोर्स की कुछ किताब पढ़ी, अपने नाना मुफ़्ती मोहम्मद सईद और अपनी माँ महबूबा मुफ़्ती जी के कुछ भाषण सुने और इसे ही संस्कृति समझ लिया। यदि तुम्हें संस्कृति को जानना हो तो एक बार भारत भ्रमण करो, कश्मीरी संस्कृति का पता चलेगा कि लोग उससे कितना प्यार करते है। पता है सना, शेष भारत से जब कोई  कश्मीर जाता है, चाहें पुरुष हो या महिलाएं, वह कश्मीरी ड्रेस पहनकर एक फोटो जरुर लेकर आते है। उसे अपने ड्राइंग रूम में सजाते है और फिर अपने यारे-प्यारे को गर्व से बताते है कि ये फोटो तब की है जब हम कश्मीर गये थे। साथ ही फोटो पर ऊँगली से बताते है कि ये देखों कश्मीरी परिधान।

सना इससे पता नहीं आपकी संस्कृति और सभ्यता को क्या खतरा हो जाता है पर दुनिया की अनेकों संस्कृतियां इस उम्मीद में जिन्दगी जी रही है कि उनकी संस्कृति का भी कभी ऐसे ही प्रचार हो। सना नब्बे के दशक से पहले कोई भारतीय फिल्म ऐसी होगी जिसका कोई गीत कश्मीर घाटी में न फिल्माया गया हो। उस समय हम छोटे थे, सप्ताह में बुधवार और शुक्रवार को जब दूरदर्शन पर चित्रहार या रविवार को रंगोली में इन गानों में बर्फ से ढकी चोटियाँ, ऊँचे लहराते चिनार के पेड़ और खुबसूरत वादियाँ दिखाई जाती तब अहसास होता था कि वाकई कश्मीर धरती की जन्नत है।

पर सना 90 के दशक में धरती की जन्नत में अचानक एक मजहबी आग लग गयी और देखते-देखते चिनार के पेड़ जल उठे। सफेद  बर्फ से ढकी चोटियाँ रक्त के छींटों से लाल हो चली। आज टीवी पर घाटी देखते है तो पत्थरबाजों और आंतकी संगठनो के पोस्टर के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता है। सना क्या आप बता सकती है कि आपकी माँ समेत घाटी के अनेकों नेता इसी रक्तरंजित संस्कृति को बचाना चाहते है या वो नब्बे से पहली घुली मिली सूफी संस्कृति जिसे असली कश्मीरियत कहा जाता था?  सना आज तुम्हारी अम्मी कह रही है कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे को हटाने के फैसले से कश्मीर के नौजवान बहुत नाराज हैं और ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। अब सना कम से कम आप ही उन्हें समझाए कि ये कोई ठगी नहीं है, असली ठगी तो वह थी जो तीन लाख लोग रातों-रात घर छोड़ने को मजबूर किये गये थे।

सना शायद आप तब छोटी रही होगी जब इसी कश्मीरियत का राग अलापने वाले चुप हो गये थे।  उनके देखते खुबसूरत वादियों में नफरत के पर्चे बांटे जाने लगे, कश्मीरी हिन्दुओं को ये तक कहा गया कि अपनी माँ-बहन और बेटी को छोड़कर घाटी से चले जाओ। कब सर्व धर्म की प्रेम स्थली हिजबुल और लश्कर जैसे मानवता के दुश्मन आतंकी संगठनों का ठिकाना बन गयी, जहाँ हिन्दू, जैन, सिख बौद्ध और मुसलमान मिलकर रहते थे। उस समय उनके साथ क्या-क्या हुआ आज की तरह वीडियो तो नहीं है। लेकिन जब विस्थापित कश्मीरी हिन्दू सिख और बौद्ध उस समय की कहानी बताते है तो आँखे जरुर नम हो जाती है।

सना आप बार-बार कश्मीर को स्वर्ग कहती हो तो यह भी जानती होगी कि स्वर्ग खुदा के घर को कहा जाता है। क्या सना खुदा के घर में इतना भेदभाव है कि वहां सिर्फ एक मजहब के लोग ही रह सकते है और सना क्या जन्नत में आतंकियों संगठन के लिए दरवाज़े खुले है? सना आप ये भी बताना कि क्या खुदा के घर में जरा सी भी धर्मनिरपेक्षता नहीं है जो बार-बार डेमोग्रेफ़ी बदल जाने का डर लोगों को दिखाया जा रहा है और क्या कश्मीरियत का मतलब सिर्फ कश्मीरी मुसलमान है  ?

लेख-राजीव चौधरी 

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