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कोरोना काल: इतिहास तुलना नहीं पर अध्ययन जरुर करेगा !

अपने आरम्भिक युग में आर्यसमाजियों द्वारा किये गये कार्यों जिनमें देश की आजादी के साथ अनाथों, गरीबों कि सेवा करने वाले वीरों कि कितनी ही कहानियाँ और किस्से मुझे सुनने को मिले। सबसे बड़ी मिसाल सुनने को मिली पंडित रुलियाराम जी और उनकी टीम द्वारा किये गये प्लेग बीमारी के दौरान सेवा कार्यों की। कैसे वो प्लेग से ग्रसित लोगों के बीच जाते और अपनी सात-आठ रुपये कि तनखाह में से भी बचाकर वह कुछ पुस्तकें बाँटते, कुछ दवाईयाँ ले रोगियों कि सेवा करते। हालाँकि आज उन बातों को कोई सौ वर्ष बीत गये वो सेवा कार्य इतिहास का एक अनूठा उदहारण बन चुके है। आज उनके कार्यों की तुलना भी नहीं हो सकती है, लेकिन आरम्भिक आर्य समाज के लोगों ने जो सेवा की आज उसका प्रतिफल कोरोना काल में ये रहा कि जब देश पर कोरोना महामारी की विपदा आई तो आर्य समाज के लोग फिर मैदान में उतरे तथा सेवा कार्यों की श्रेणी में मील का एक और पत्थर गाड दिया।

सर्वविदित है कि पिछला वर्ष और ये वर्ष देश के लिए आपदा और महामारी से ग्रसित रहा। एक वायरस के कारण लोग घरों में कैद रहे, भारत समेत दुनिया भर से प्रतिदिन मौत के आंकड़े भयावह रहे। हालाँकि संकट अभी टला नहीं, आज भी हम उसी दौर में जी रहे है, जब इन्सान के इन्सान के लिए एक बायोलॉजीकल बम की तरह लग रहा है। इसी कारण इस समय को आपदा या विपदा के तौर पर इतिहास में हमेशा याद रखेगा। क्योंकि जब राज्यों की सरकारों द्वारा लॉकडाउन लगाया गया तब लोग घरों में कैद होकर रह गये। लॉकडाउन लगाने का आशय सिर्फ इतना था कि किसी तरह फैलती महामारी को रोका जा सकें और इससे काफी हद तक अंकुश लगा भी।

परन्तु हर एक चीज के दो पहलु होते है एक अच्छा दूसरा बुरा। इस कारण लॉकडाउन के दौरान जहाँ महामारी पर नियंत्रण पाने की कोशिश हुई वहां बुरा ये हुआ कि राजधानी दिल्ली समेत बड़े शहरों में दिहाड़ी मजदूर, गरीब, बेसहारा झुग्गी झोपडी में रहने वाले लोग, जो दैनिक मजदूरी करके अपनी गुजर बसर करते थे उनके सामने भूख मुंह खोलकर खड़ी हो गयी। जेब में पैसा नहीं, घर में राशन नहीं, करें तो करें तो क्या करें! वेद कहता है केवलाघो भवति केवलादी अर्थात अकेला खाने वाला पाप का भागीदार होता है तो ऐसी अवस्था में सामने आकर एक बार फिर दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा ने एक बार फिर मोर्चा संभाला। ये मोर्चा था भूख को हराने का, ये मोर्चा था महामारी से बचे लोगों को भूख से बचाने का। इस कोरोना काल में ऐसे असहायों, गरीबों , रिक्शा चालकों व मजदूरों के भूखे परिवारों को दिल्ली की आर्य समाजों भोजन वितरण का कार्य शुरू किया और देखते ही देखते भारत भर की प्रांतीय सभाएं और आर्य समाजें आगे आई और भय और भूख से लड़ने का संकल्प लिया।

इस समय का सबसे बड़ा संकट महामारी के साथ खड़ा था वो था महामारी से मरे लोगों का अंतिम संस्कार का संकट। रोजाना संक्रमण से मरीजों की मौतें लगातार बढती जा रही थी, कोरोना के प्रति लोगों के मन में इस कदर डर बैठ गया है कि वे किसी और वजह से भी मौत होने पर मृतक के पास नहीं जा रहे हैं। बाहरी लोग तो दूर परिजन भी लाश के पास नहीं जाना चाहते थे। अंतिम संस्कार स्थल पर लाश अधिक और क्रियाकर्म करने वाले कम नजर आ रहे थे। हालात ऐसे कि नए संक्रमितों और मौत के आंकड़ों ने अस्पताल और श्मशान घाटों की व्यवस्था बिगाड़ दी है। वहीं, दूसरी ओर एक जहां लोग मरीजों की लावारिस लाश को छूने तक से इंकार कर रहे थे। तब श्मशान घाटों पर शवों के अम्बार के बीच आर्य समाज द्वारा अंतिम संस्कार में निःशुल्क हवन सामग्री उपलब्ध कराई गयी। आर्य समाज के कार्यकर्ता विभिन्न श्मशान घाटों पर सक्रिय हो गये, लोगों को होसला देते हुए अंतिम क्रियाक्रम में मदद करने लगे। यहाँ तक कि बिहार जैसे राज्यों में जब पौराणिक पंडित संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद उसका श्राद्ध तक करने में कतराने लगे, तब आर्य समाज के विधि विधान से कर्मकांड शुरू हुए। जिससे कम समय में विधि विधान से संपन्न कराया जाए। इसके अलावा दिल्ली समेत अलग-अलग राज्यों में आर्य सभाओं द्वारा तथा आर्य समाजों द्वारा यज्ञ रथ यात्रा निकाली ताकि लोगों को बीमारी के साथ भय से बाहर निकाला जाये। खाली समय में लोगों को पढने के लिए सत्यार्थ प्रकाश भी वितरण किये।

परन्तु महामारी ने इतनी तेज गति से पांव पसारे की अधिकांश राज्यों की स्वास्थ सेवाएं ही मानों चरमरा गयी। लेकिन देश अपना है, हर एक जीवन कीमती है, क्योंकि इसमें रहने वाले लोग भी तो अपने ही है। और स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने भी तो कहा था कि संसार का उपकार करना हमारा मुख्य उद्देश्य है। हालाँकि ये महामारी सिर्फ एक मोर्चे पर नहीं थी क्योंकि संक्रमित व्यक्ति को कहीं अस्पताल की तलाश थी तो कहीं ऑक्सीजन की, किसी को सैनिटाइजर चाहिए किसी को मास्क तब आर्य समाज से जुड़े लोगों ने घर घर तक सैनिटाइजर, ऑक्सीजन, ऑक्सीमीटर प्रदान करने शुरू किये। जब सेवा का ये कार्य तेज गति से चला तो साथ खड़े हो गये, सात समन्दर पार अमेरिका में बसे आर्य समाज के लोग। अमेरिका में रह रहे आर्य समाज के लोगों ने 100 से ज्यादा ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भारत भेजे ताकि कोई गरीब या बेसहारा ऑक्सीजन की कमी महसूस न कर पाए।

देखते-देखते मरीजों को मिलने लगी ये सुविधा वो भी बिलकुल निशुल्क और दिल्ली और इसके बाहर भी भेजे जाने लगे ऑक्सीजन कंसंट्रेटर। अब जिनको ये मदद मिली उन्होंने इसका दिल खोलकर स्वागत तो किया ही साथ ही इस सुविधा के लिए आर्य समाज का धन्यवाद भी प्रकट किया। यानि एंबुलेंस से लेकर  श्मशान घाट, पानी वितरण हो या भोजन का वितरण, सेवा कार्य सभा द्वारा करके आर्य समाज के उस नियम को सार्थक किया गया जिसमें स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने कहा था कि संसार का उपकार करना हमारा मुख्य उद्देश्य है।

विनय आर्य

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