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क्या दलित हिन्दू नहीं है?

लगता है एक बार फिर कुछ लोगों के द्वारा देश को तोड़ने का एक एजेंडा सा चलाया जा रहा है| इस बार इनका निशाना राम और कृष्ण की वो संतान है जिसे कभी दुर्भाग्यवश दलित कह दिया गया था| आज जिनके हक की बात कहकर कुछ नेता और न्यूज चैनल अपना एजेंडा चला रहे है| उनके एंकर पूछ रहे है, कि आखिर हिन्दुओं द्वारा दलितों पर हमला क्यों? उनके इस प्रश्न को दो बार सुनिए और साजिश को समझिये! क्या दलित हिन्दू नहीं है? हम मानते है हमारी सबसे बड़ी कमजोरी जाति व्यवस्था रही है। पर ये जाति व्यवस्था क्या है? इसे भी समझना जरूरी है जिस तरह किसी उपवन में भांति-भांति के पुष्प होते हैं। हर किसी की अपनी अलग खुसबू और रंग होता है किन्तु होते तो सभी पुष्प ही है| ठीक इसी तरह हमारे शास्त्रों ने, हमारे ऋषियों, मुनियों ने यदि मनुष्य समाज को चार वर्णों में बांटा| सिर को ब्रह्मण और पैरो को शुद्र कहा तो साथ में ये भी बताया कि प्रथम प्रणाम चरणों को करना होगा| किन्तु समाज का एक वर्ग ऋषि मुनियों की यह पवित्र वाणी भूल गया|और धर्म का ठेकेदार बन धार्मिक आदेश देना शुरू कर दिया| आज हम पूछना चाहते है तमाम उन राजनेताओं और मीडिया के लोगों से कि दलितों से बड़ा हिंदू कौन है? अगर दलित हिंदू नहीं है तो कौन हिंदू बचा है। क्योंकि हमारे शास्त्रों में प्रणाम चरणों को किया गया है। शरीर के दृष्टिकोण से देखा जाए तो मस्तक सिरमौर है किन्तु जब पैर में काँटा लगता है तो सबसे पहले दर्द यह मस्तक ही महसूस करता है| ये जो वर्ण व्यवस्था थी। जो कभी विशेषता थी, उसे आज अपने निहित स्वार्थ और सत्ता के लालची लोगों द्वारा कमजोरी बना दिया गया। अगर इस देश धर्म को अब भी मजबूत करना है तो हमें इन पैरो को सम्हाल कर रखना होगा|
इस संदर्भ में यदि गौर से देखे तो आज जो मीडिया घराने हर एक घटना को जातिवाद से जोड़कर दलित-दलित चिल्लाकर शोर मचा रहे है क्या इसका लाभ देश और धर्म विरोधी संस्था नही उठा रही होगी? इससे बिलकुल इंकार नही किया जा सकता! वर्ण व्यवस्था कभी समाज का सुन्दर अंग था परन्तु कुछ लोगों ने अपनी महत्वकांक्ष का लिए इस अंग पर खरोंच-खरोंच कर घाव बना दिया और अब राजनेता और मीडिया समरसता के स्नेहलेप के बजाय अपने लाभ के लिए हर रोज इस घाव को हरा कर रही है| अब आप देखिये किस तरह यह लोग समाज को बाँटने का कार्य कर रहे है कई रोज पहले एक मुस्लिम लेखक “हन्नान अंसारी ने प्रसिद्ध न्यूज चैनल के ब्लॉग पेज पर लिखता है कि पशु और मनुष्य में यही विशेष अन्तर है कि पशु अपने विकास की बात नहीं सोच सकता, मनुष्य सोच सकता है और अपना विकास कर सकता है। हिन्दू धर्म ने दलित वर्ग को पशुओं से भी बदतर स्थिति में पहुँचा दिया है, यही कारण है कि वह अपनी स्थिति परिवर्तन के लिए पूरी तरह निर्णायक कोशिश नहीं कर पा रहा है, हां, पशुओं की तरह ही वह अच्छे चारे की खोज में तो लगा है लेकिन अपनी मानसिक गुलामी दूर करने के अपने महान उद्देश्य को गम्भीरता से नहीं ले रहा है। इनका मत स्पष्ट दिखाई देता है और इनके द्वारा दलित समुदाय को हमेशा सपना दिखाया जाता है कि धर्मांतरण करने से सारे कष्ठ दूर हो जायेंगे| इस बात को दलित समुदाय को समझना होगा कि मान लो धर्म परिवर्तन कर यदि सारे कष्ट दूर होते तो आज मुस्लिमो के 56 देश है कितने देशों के मुस्लिम शांति और सामाजिक समर्धि,समरसता और सोहार्द से जीवन जी रहे है?
प्रथम बात, हम मानते है कि देश में अभी भी कुछ जगह जातिवाद और छुआछूत व्याप्त है और इस सामाजिक भेदभाव की समस्या से कोई भी वर्ग समुदाय या देश अछूता नहीं है| यहाँ तक कि अमेरिका जैसे विकसित शक्तिशाली देश में भी गोरे काले का भेदभाव हमसे कहीं ज्यादा है| मुस्लिम देशों में तो शिया, सुन्नी की आपसी जंग किसी से छिपी नही है पर पाकिस्तान जैसे कुछ देशों में तो अहमदिया जैसे गरीब तबके पर खुले रूप से अत्त्याचार होते है| दूसरी बात आज लोगों कि सोच काफी हद तक बदली और बदल रही है| क्या कोई शहरों में किसी हलवाई की जाति पूछकर समोसा खरीदता है? रेहड़ी वाले उसका धर्म या जात पूछकर पानीपूरी या जलेबी खाता है? नहीं पूछता परन्तु यदि किसी रेहड़ी वाले से किसी ग्राहक का झगड़ा हो जाये और नौबत मारपीट तक आ जाये तो मीडिया से जुड़े लोग रेहड़ी वाले की जाति धर्म पूछकर, यदि दुभाग्य से किसी कारण वो रेहड़ी वाला मुस्लिम या दलित हुआ तो खबर जरुर बना देते है कि देखिये किस तरह एक दलित या अल्पसंख्यक पर हमला हुआ उसके लिए न्यूज स्टूडियो से इंसाफ की मांग उठाई जाएगी| इसके बाद तथाकथित दलितों के देवता हैं, गरीबों के रहनुमा हैं, जिन्हें इसी काम के लिए देश-विदेश से पैसा मिल रहा है। ये धार्मिक व जातीय घृणा के सौदागर सड़कों पर ज्ञापन, धरना, प्रदर्शन, सत्याग्रह तथा महापड़ाव डालने की घोषणा कर धरना प्रदर्शन शुरू कर देते है और इस मामले को शुरू करने वाली मीडिया लाइव प्रसारण शुरू कर देती है| इनकी कोशिश यही रहती है कि जिसे ये दलित दलित कहकर कहकर सात्वना प्रकट करते है जितना यह चाहते है वह केवल वही और उतना ही सोचे जितना यह लोग चाहते और इन्होने तय कर कर रखा हैं।
यह लोग हर एक मुद्दे पर ऐसा दिखाते है जैसे इनके हाथ में दलितों का भविष्य है, ये गलत मुद्दे तथा अधूरी जानकारियों के जरिए देशभर के दलित बहुजन गुमराह कर रहे हैं, क्योंकि ये स्वघोषित महान अंबेडकरवादी हैं| कई बार तो लगता है जैसे कुछ नेताओं ने देश को खंड-खंड करने की साजिश का जिम्मा सा ले लिया हो? हम मानते है कुछ समस्या विराट रूप लेकर खड़ी हो जाती हैं। किन्तु क्या उसका निदान राजनीति और मीडिया ही कर सकती है, उसके लिए न्याय प्रणाली कोई मायने नही रखती? यदि हाँ तो ऐसी धारणा को कौन बल दे रहा है यह प्रश्न भी इस संदर्भ में प्रासंगिक है| हमे किसी प्रकार की राजनीति नहीं करनी है, जिसे करनी है वो करे, हम मानवता, शांति, सहिष्णुता, भाईचारे, समानता तथा स्वतंत्रता जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर है और रहेंगे| किन्तु किन्ही वजहों से जब कुरीति, छुआछूत के कारण या किसी अन्य वजह से हमारे देश या धर्म पर ठेस लगती है तो उसकी सीधी पीड़ा हमारे ह्रदय में होती है| हमने चाहें स्वामी दयानंद जी का समय रहा हो या स्वामी श्रद्धानंद जी का या अब वर्तमान में हमेशा सामाजिक समरसता, समानता के लिए संघर्ष किया है| आज जिस तरह छोटी-छोटी बातों पर सनातन धर्म के मानने वालों को जातिगत भेदभाव कर अलग-अलग वर्गों में बांटा जा रहा है। जरा सोचें, जब सभी अलग हो जाएंगे तो कैसे बचेगा धर्म कैसे बचेगा देश? और आप किस पर राज करेंगे?

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