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गाय ही नहीं, संवेदना भी मर रही है।

खबर है राजस्थान की सड़कों, खेतों खुले मैदानों में गायों की लाशे बिखरी पड़ी है। गिद्ध और आवारा कुत्ते उन्हें नोच-नोचकर खा रहे है। अकेले बीकानेर में हर रोज 300 गायों की मौत का आंकड़ा सामने आया यह, जिन्हें उठाने के लिए नगर निगम के संसाधन कम पड़ गए थे। आंकड़ों के अलावा अगर राजस्थान के गांवों को देखें तो करीब अब तक डेढ़ लाख से अधिक गाय बीमारी के चलते मर चुकी है। ना कोई वेक्सीन ना सरकार की ओर से दवा। दम घोटू बीमारी से तडफती गाय, हर घर में रोते-बिलखते लोग, गायें और बछड़ों को ठूंस-ठूंस कर श्मशान ले जाती गाड़ियां, चारों तरफ दर्द और बेबसी की ऐसी तस्वीर लोगों ने देखी कि पत्थर दिल व्यक्ति की आंख के साथ नाक और कान भी रो पड़ें। ये कोई अचानक हुआ मामला या बीमारी नहीं है बल्कि 3 साल पहले भारत में सबसे पहले लम्पी स्किन डिजीज वायरस का संक्रमण पश्चिम बंगाल में देखा गया था, जो 2021 तक देश के 15 से अधिक राज्यों में फैल गया।

ऐसा नहीं है कि देश के नेताओं या सरकारों का इसका अनुमान नहीं था। साल 2015 में तुर्की और ग्रीस में इस बीमारी ने भयंकर तांडव मचाया और वहां भी पशुओं को नेस्तानाबूद कर दिया। साल 2016 में रूस जैसे कई देशों में इसने तबाही मचा।. इसके बाद जुलाई 2019 में इस बीमारी को बांग्लादेश में देखा गया, जहां से ये कई एशियाई देशों में फैल गया। राज्य सरकारें चाहती तो समाधान खोज सकती थी। उन देशों की तरह वेक्सीन खोज सकती थी। लेकिन गाय मरती है तो मरने दो यूरोपीय देशों से सुखा मिल्क पाउडर आता है। दूध बेचने वाली कम्पनियों को इससे फायदा होता है। सरकारों को टेक्स मिलता है। नतीजा गाय का ताजा दूध पीने वाले भारत देश के लोग आज पेकेट के दूध, दही और छाज पर निर्भर होकर रह गये है।

ये आज से नहीं एक समय था जब दिल्ली के अन्दर लोग गाय या भैंस पालते थे। घर का दूध पीते थे अचानक कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने फरमान जारी किया कि इनसे गंदगी होती है और गाय भैंस पालने पर प्रतिबंध लगा दिया था। दूध की डेयरिया दिल्ली से बाहर कर दी गयी परिणाम अमूल मिल्क कम्पनी दिल्ली-एनसीआर में रोजाना 44 लाख लीटर दूध सप्लाई करती है। जबकि मदर डेयरी अकेली दिल्ली में ही 25 लाख लीटर दूध की सप्लाई देती है।

लेकिन हर रोज की न्यूज रूम की बहस किसी को सोचने नहीं देती। नतीजा आज घरों में कुत्ते पाले जा रहे है और गाय सड़कों पर दम तोड़ रही है। भारत में एक कहावत है कि असली भारत गांवों में बसता है। भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व रहा है। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है। हिन्दू, गाय को श्माताश् (गौमाता) कहते हैं। लेकिन आज राजस्थान समेत कई राज्यों में गाय मर रही है ना सरकार इस पर बोलने को तैयार और ना स्वयं को हिन्दू संस्कृति के रखवाले कहने वाले हिन्दू संगठन। जबकि अतीत में जाये तो बात 1882 की है जब महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने गोरक्षिणी सभा की स्थापना की और उसके बाद ही भारत में गोरक्षा आंदोलन शुरू हुआ। स्वामी दयानंद जी का उद्देश्य गाय के प्रति लोगों के मन में संवेदना तथा उसके महत्व को जन-जन तक पहुँचाना था। हालाँकि इसके लिए इससे एक वर्ष पूर्व 1881 में स्वामी जी ने गोकरुणानिधि  नाम से एक लघु पुस्तिका भी लिखी थी।

देश की स्वतंत्रता के पश्चात अक्टूबर-नवम्बर 1966 में अखिल भारतीय स्तर पर गोरक्षा आन्दोलन चला। आर्यसमाज के अलावा भारत का साधु-समाज, तथा जैन धर्म आदि सभी भारतीय धार्मिक समुदायों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। 7 नवम्बर 1966 को संसद् पर हुये ऐतिहासिक प्रदर्शन में देशभर के लाखों लोगों ने भाग लिया। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने निहत्थे हिंदुओं पर गोलियाँ चलवा दी थी जिसमें अनेक गौ भक्तों का बलिदान हुआ था। इस आन्दोलन में सार्वदेशिक सभा के प्रधान लाला रामगोपाल शालवाले चारों शंकराचार्य तथा स्वामी करपात्री जी भी जुटे थे। जैन मुनि सुशीलकुमार जी तथा हिन्दू महासभा के प्रधान प्रो॰ रामसिंह जी भी बहुत सक्रिय थे।

परन्तु आज ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है. समाचार पत्रों की रिपोर्ट बता रही है है कि अकेले राजस्थान ही नहीं यह बीमारी गुजरात, पंजाब, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों में फैल चुकी है। इस साल सबसे पहला केस गुजरात से सामने आया था। इसके बाद इसकी एंट्री राजस्थान समेत अन्य राज्यों में हुई। हरियाणा में भी हालात ऐसे ही है। बताया जा रहा है कि यहां के 3 हजार गांवों में लंपी फैल चुका है। गुजरात में सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार 26 अगस्त तक लंपी वायरस 22 जिलों मे फैल चुका है। इनमें सौराष्ट्र-कच्छ सबसे प्रभावित है। राज्य में अब तक इस रोग से करीब 4,530 गायों की मौत हो चुकी हैं। जबकि 1 लाख 20 हजार 404 गाय संक्रमित हुई हैं। मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में भी गायों में लंपी फैल चुका है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे सर्वाधिक 3500 से ज्यादा केस सामने आ चुके हैं। करीब 1500 गांव तक यह वायरस पहुंच चुका है।

हालात ये है कोरोना काल में राजस्थान में जो गांव लोगों के लिए मंदिर बने थे। आज लंपी के प्रकोप से श्मशान में बदलते जा रहे हैं। किसी घर में दो तो किसी के आंगन में चार-पांच गायों की मौत हो गई। कुछ जगहों पर गायों और बछड़ों का शरीर इतना गल गया है कि वे तड़पते हुए सांस लेने का प्रयास कर रहे हैं। देखने वालों के दिल दहले जा रहे हैं। प्रार्थनाएं की जा रही है कि भगवान इन्हें जल्दी उठा लें। लेकिन इनके उपचार पर ध्यान देने के बावजूद राज्य सरकारें और नेता एक दुसरें के साथ ट्वीट खेल रहे है और तमाशबीन मीडिया न्यूज स्टूडियो में राजनितिक दल के प्रवक्ताओं को आपस में मुर्गों की तरह लड़ा रही है। सोचिये गाय गंगा और गीता के बिना भारत कैसा होगा? लेकिन जब लोग मनोरंजन के अधीन हो जाये जब लोग व्यंग की डिमांड करने लगे हंसी ठहाकों के विडियो सर्च करने लगे तब संवेदना दम तोड़ देती है। गाय मर रही है मरने दो, लोग रो रहे है रोने दो, सत्ताओं में बैठे राजनेता जैसे देश और समाज का नहीं बल्कि अपना भविष्य तलाश कर रहे है।  और दम तोडती तड़फती गौमाता को देखकर लग रहा है जैसे गाय ही नहीं संवेदना भी मर चुकी है।

राजीव चौधरी

 

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