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गिलगित बल्तिस्तान पर किसका हक.?

कश्मीर का एक हिस्सा जिस पर पाकिस्तान 70 सालों से कब्ज़ा जमाये बैठा इस हिस्से का नाम है गिलगित-बल्तिस्तान। प्राकृतिक रूप से ये दुनिया के बेशुमार खुबसूरत इलाकों में गिना जाता है। हालाँकि गिलगित बल्तिस्तान के बारे में अभी तक बहुत कम लोग जानते थे. लेकिन अब इस शब्द का बार-बार  प्रयोग हो रहा है।

इसी साल जब भारत में लॉकडाउन था तब 30 अप्रैल को पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने गिलगित-बल्तिस्तान में चुनाव कराने को मंजूरी दे दी थी। जिससे भारत नाराज हो गया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। विदेश मंत्रालय ने यहाँ तक कहा कि पाकिस्तान को चुनाव कराने की बजाए गिलगित और बल्तिस्तान को तुरंत ख़ाली करना चाहिए। उसे वहाँ चुनाव कराने का पाकिस्तान को कोई अधिकार नहीं है. क्योंकि पाकिस्तान ने गैर कानूनी रूप से इन क्षेत्रों को अपने कब्जे में रखा हुआ है।

भारत पूरे जम्मू कश्मीर को अपना अभिन्न अंग  मानता है जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान दोनों आते हैं। इसी कारण भारतीय मौसम विभाग ने पिछले हफ्ते ही गिलगित-बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद का मौसम का हाल बताना शुरू कर दिया है।

अब सवाल है कि आखिर गिलगित बल्तिस्तान का हिस्सा किसका है भारत का या पाकिस्तान का है? हालाँकि पाकिस्तान ही जब भारत का हिस्सा है तो गिलगित बल्तिस्तान उसका हिस्सा कहाँ से हुआ।

अब इसे इतिहास के नजरिये से देखें तो गिलगित तथा बल्तिस्तान ऐतिहासिक रूप से दो भिन्न राजनैतिक इकाइयों के रूप में विकसित हुए एक समय गिलगित को दर्दिस्तान भी कहा जाता था। क्योंकि यहाँ दरदी भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं। बल्तिस्तान को मध्यकाल में छोटा तिब्बत कहा जाता था. गिलगित और बल्तिस्तान का एक प्रांत के रूप में एकीकरण हिन्दू डोगरा राजाओं के शासनकाल में हुआ था।

पुरातन काल में यह इलाका मौर्य वंश के अधीन रहा. कराकोरम राजमार्ग पर स्थित सम्राट अशोक के 14 शिलालेख इसका प्रमाण हैं। सातवीं शताब्दी में राजा ललितादित्य और उसके पश्चात कार्कोट वंश के समय भी गिलगित बल्तिस्तान काश्मीर साम्राज्य का अभिन्न अंग रहा। हाँ अरबों के साथ कश्मीरी हिंदू शासकों का पहला युद्ध कार्कोट राजवंश के दौरान ही हुआ था। मध्य एशिया और अफगानिस्तान के अपने अभियानों के दौरान इस वंश के प्रमुख राजाओं जैसे चंद्रपीड़ और ललितादित्य का सामना अरबी लुटेरों से हुआ तब यहाँ के लोगों ने पहली बार इस्लाम का नाम सुना था।

यही वो समय था जब राजा ललितादित्य ने अपने शासनकाल में शेष भारत से काश्मीर के ऐतिहासिक सम्बन्धों को मजबूत किया। मोहम्मद बिन-क़ासिम सिंध पर विजय के बाद कश्मीर की ओर बढ़े जरूर थे, लेकिन उन्हें कोई विशेष सफलता हाथ नहीं लगी। उनकी अकाल मृत्यु की वजह से उनका कोई दीर्घकालिक शासन भी स्थापित न हो सका. इसका एक पूरा लम्बा इतिहास है हम फिर किसी दिन इस पर चर्चा करेंगे।

अब बात ये है कि मध्यकाल में कश्मीर पर मुगलों और अफगानी लुटेरों की नजर गयी इस कारण गिलगित और बल्तिस्तान मुगल शासन के अधीन भी रहा इस कारण यहाँ कुछ सूफी भेजें गये कुछ ब्रेनवास उन्होंने किया तो बड़ी संख्या में तलवार के दम पर हिन्दुओं को इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया।

मुगल शासन दुर्बल होने के बाद साठ वर्षों तक काश्मीर में अफगान शासन रहा क्योंकि इसकी सीमा अफगानिस्तान से भी मिलती है पर उस समय भी गिलगित और बल्तिस्तान काश्मीर साम्राज्य का अंग था। अफगानी शासन के अत्याचारों से पीड़ित होकर पण्डित बीरबल धर के नेतृत्व में काश्मीर की जनता ने सिख महाराजा रणजीत सिंह से गुहार लगाई। तब महाराजा रणजीत सिंह जी ने  जून 1819 को काश्मीर पर आक्रमण किया और अफगानी शासन से मुक्ति दिलाई।

महाराजा रणजीत सिंह जी ने जम्मू का क्षेत्र गुलाब सिंह को जागीर के रूप में दे दिया। उस दौरान कई युद्ध हुए और राजनैतिक घटनाक्रम भी परिवर्तित हुए। नतीजा 9 मार्च 1846 की लाहौर सन्धि के बाद समूचे जम्मू कश्मीर राज्य पर महाराजा गुलाब सिंह का एकछत्र राज स्थापित हुआ।

लेकिन जैसे ही रूस में क्रांति आरम्भ हुई, सोवियत रूस ने 1934 में चीन के शिनजिआंग प्रांत पर कब्जा कर लिया तब ब्रिटेन ने महाराजा से संधि कर इस क्षेत्र को 60 साल के लिए पट्टे पर ले लिया था ताकि रुसी और चीनी सेना इस और न बढ़ पाए, अंग्रेजों ने गिलगित एजेंसी बनाई और गिलगित स्काउट नामक सैन्य टुकड़ी की स्थापना की जिसमें अधिकांश अफसर ब्रिटिश थे।

इधर जैसे ही भारत की आजादी की बात शुरू हुई तो 3 जून 1947 को मॉउंटबैटन ने लीज तोड़कर गिलगित को फिर महाराजा हरीसिंह को सौंप दिया गया और इसके साथ ही गिलगित स्काउट्स भी महाराजा के अधीन हो गयी।

लेकिन गिलगित-स्काउट्स के कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान ने कश्मीर के राजा हरि सिंह के खिलाफ विद्रोह कर दिया इसमें उसे साथ मिला एक अंग्रेज अफसर मेजर डब्लयू. ए. ब्राउन का जिसनें महाराज से गद्दारी की। जैसे ही 1 नवम्बर, 1947 को गिलगित-बल्तिस्तान की आजादी का ऐलान हुआ 2 नवंबर को ब्राउन ने पाकिस्तान का झंडा फहरा दिया। इसके दो हफ्ते बाद पाकिस्तान सरकार की तरफ से सदर मोहम्मद आलम गिलगित के पॉलिटिकल एजेंट बनाए गए। इस तरह एक अंग्रेज अफसर की गद्दारी से गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान का इलाका बन गया। जबकि इससे कुछ ही दिन पहले ही यानि 26 अक्टूबर, 1947 को हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर रियासत के भारत में विलय की मंजूरी दे दी थी। गिलगित-बल्तिस्तान की आजादी की घोषणा करने के 21 दिन बाद ही पाकिस्तान ने इस इलाके पर कब्जा जमा लिया। आज पाकिस्तान जिस समझोते को लेकर विश्व भर घूम रहा है असल में उस समझोते में गिलगित बल्तिस्तान का कोई मौजूद नहीं है। उसमें दो लोग भारत के हिस्से वाले कश्मीर के और एक करांची का मौजूद था। शुरू में 2 अप्रैल 1949 तक गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान के कश्मीर के कब्जे वाला हिस्सा माना जाता रहा। लेकिन 28 अप्रैल, 1949 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सरकार के साथ एक समझौता हुआ जिसके तहत गिलगित के मामले को सीधे पकिस्तान की केंद्र सरकार के अधीनस्थ कर दिया गया। इस करार को कराँची समझौते के नाम से जाना जाता है।

आज पाकिस्तान में पाक अधिकृत कश्मीर के लिए एक अलग संविधान है। यहां इस्लामाबाद के इशारे पर एक कठपुतली सरकार भी चलती है। लेकिन गिलगित-बल्तिस्तान सीधे इस्लामाबाद के नियंत्रण में रहा। पाकिस्तान की सरकार ने इलाके को नार्दन एरियाज कहना शुरू किया। इलाके पर ज्यादातर फौज का नियंत्रण रहा। यहां 2009 में जाकर चुनाव हुए लेकिन यहां की असेंबली अपने बूते कोई कानून नहीं बना सकती। सारे फैसले एक काउंसिल लेता है, जिसके अध्यक्ष पाकिस्तान के प्रधानमंत्री होते हैं। 2009 में नार्दन एरियाज का नाम बदलकर गिलगित-बल्तिस्तान कर दिया।

अब चीन पाकिस्तान का बिग ब्रदर है। उसने पाकिस्तान में बहुत निवेश कर रखा है. ग्वादर में एक बड़ा सा पोर्ट भी बनाया है। चीन की एक और बड़ी योजना है  चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर. इसकी लागत है 3 लाख 51 हजार करोड़. माने बहुत पैसा लगा है। ये कॉरिडोर गिलगित-बल्तिस्तान से गुजरना है। अब चीन नहीं चाहता कि उसकी परियोजना ऐसे इलाके से निकले जिसे लेकर किसी तरह का विवाद हो। जम्मू कश्मीर को दुनिया के कई देश विवादित मानते हैं। भारत इस परियोजना पर अपना विरोध भी जता चुका है। इसलिए पाकिस्तान इलाके को विवादों से दूर ले जाना चाहता है ताकि परियोजना चलती रहे। इसलिए कहा जा रहा है कि गिलगित-बल्तिस्तान को जम्मू कश्मीर से अलग, पाकिस्तान का एक राज्य बनाने में चीन अहम् रोल निभा रहा है। लेकिन इससे गिलगित बल्तिस्तान की जनता नाखुश है यही कारण है कि भारत अब कह रहा है कि उन इलाकों में किसी भी तरह की एकतरफा हेराफेरी गैरकानूनी है और बिलकुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी। -राजीव चौधरी

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