गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पांव।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।।
गुरुड्म की दुकान चलाने वाले कुछ अज्ञानी लोगों ने कबीर के इस दोहे का नाम लेकर यह कहना आरम्भ कर दिया है कि ईश्वर से बड़ा गुरु है क्योंकि गुरु ईश्वर तक पहु°चने का मार्ग बताता है। एक सरल से उदहारण को लेकर इस शंका को समझने का प्रयास करते हैं। मान लीजिये कि मैं भारत के राष्टन्न्पति प्रणव मुखर्जी से मिलने के लिये राष्टन्न्पति भवन गया। राष्टन्न्पति भवन का एक कर्मचारी मुझे उनके पास मिलवाने के लिए ले गया। अब यह बताओ कि राष्टन्न्पति बड़ा या उनसे मिलवाने वाला कर्मचारी बड़ा है?
आप कहेंगे कि निश्चित रूप से राष्टन्न्पति कर्मचारी से कहीं बडे़ हैं, राष्टन्न्पति के समक्ष तो उस कर्मचारी की कोई बिसात ही नहीं है। यही अंतर उस गुरुओं की भी गुरु ईश्वर और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताने वाले गुरु में हैं। हिन्दू समाज के विभिन्न मतों में गुरुड्म की दुकान को बढ़ावा देने के लिए गुरु की महिमा को ईश्वर से अधिक बताना अज्ञानता का बोधक है। इससे अंध विश्वास और पाखंड को बढ़ावा मिलता है।