Tekken 3: Embark on the Free PC Combat Adventure

Tekken 3 entices with a complimentary PC gaming journey. Delve into legendary clashes, navigate varied modes, and experience the tale that sculpted fighting game lore!

Tekken 3

Categories

Posts

चर्च के खिलाफ क्यों उबले आदिवासी?

भारत की महान धार्मिक एवं सामाजिक मान्यतायें जिनसे प्रेरणा प्राप्त कर सम्पूर्ण विश्व में धार्मिक एवं संस्कृतिक परंपराओं का निर्माण हुआ है, किन्तु अब उन्हें चकनाचूर करने का कार्य पिछले कई सौ वर्षों से झारखंड, छत्तीसगढ़ समेत भारत के कई राज्यों में अनवरत चर्च द्वारा किया जा रहा है। यह एक ऐसा सच है जिसे देखकर वर्षों से हमारे राजनेता और मीडिया मौन धारण किये हुए हैं। हो सकता है इनकी कोई मजबूरी रही हो किन्तु जनता जनार्दन की कोई मजबूरी नहीं होती उनकी भावनाओं का सेलाब जब उमड़ता है तो नेताओं और मीडिया की क्या बिसात, सत्ता और सिंहासन तक बह जाते हैं।

बताया जा रहा है कि हाल ही में एक ऐसा ही धार्मिक भावनाओं का सैलाब झारखंड की राजधानी रांची से करीब 25 किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल गांव गढ़खटंगा में देखने को मिला। इस गांव के लोगों ने आदिवासियों की जमीन पर बने चर्च के ऊपर लगे क्रॉस को तोड़कर अपना पारम्परिक सरना झंडा लगा दिया है। यानि वहां से चर्च को समाप्त कर दिया है। गाँव वालों का दावा है कि गलत तरीके से गाँव की जमीन को हथियाकर कर वहां पर विश्ववाणी नाम से चर्च बनवा दिया गया था। चर्च के खिलाफ आदिवासियों के गुस्से से यही समझा जा सकता है कि काफी समय से सरना आदिवासी और इनके संगठन झारखंड में ईसाइयों के धर्म प्रचारकों तथा चर्च की गतिविधियों को लेकर क्यों उबाल पर हैं।

वैसे देखा जाये तो पिछले काफी अरसे से चर्च विश्व भर में चर्चा का विषय बने हुए और यदि इस विषय को भारत के संदर्भ में देखें तो अलग-अलग प्रान्तों में चर्च अलग-अलग आरोप झेल रहे हैं। केरल में चर्च यौन उत्पीडन के कुछ विवादों में रहे हैं यानि कुछ पादरियों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हैं। दिल्ली और गुजरात के चर्च भाजपा जैसे कथित हिंदूवादी दलों से सभी को सावधान रहने की लिए सभी गिरजाघरों को पत्र लिख रहे हैं तो पूर्वी-उत्तर प्रदेश और मध्य भारतीय राज्यों एवं बंगाल, उड़ीसा समेत अन्य कई राज्यों में कथित धर्मांतरण के आरोप से भी चर्चों और पादरियों के दामन साफ नहीं है। किन्तु झारखंड में चर्च से आदिवासी समुदाय सीधा टकराता दिख रहा है। यहाँ सिर्फ आरोप नहीं बल्कि आदिवासी समुदाय द्वारा प्रतिक्रियाएं भी देखने को मिल रही हैं। आदिवासी समुदाय सरना लोग गिरजाघरों के खिलाफ जगह-जगह बैठक कर धरनों का सिलसिला भी तेज हुआ है। सड़कों पर जुलूस भी निकाले जाते रहे हैं।

यह टकराव नया नहीं है, आदिवासियों और ईसाई मिशनरियों में सांस्कृतिक और धार्मिक टकराव साल 2013 में उस समय भी देखनें को मिला था जब रांची के सिंहपुर गांव के कैथलिक चर्च में मदर मेरी की ऐसी मूर्ति का अनावरण किया था जिसमें मदर को आदिवासी महिलाओं के पारंपरिक और सांस्कृतिक परिधान, लाल किनारे वाली सफेद साड़ी में दिखाया गया था। तब भी विरोध में रांची के मोराबादी मैदान में करीब 20,000 आदिवासियों ने जमा होकर विरोध किया था. मूर्ति में मदर मेरी ने जिस तरीके से बालक यीशु को पीले कपड़े से बांधकर गोद में ले रखा था, वह भी बिल्कुल वैसा ही था जैसे आदिवासी महिलाएं अपने बच्चों को रखती हैं।

हालाँकि अब झारखंड सरकार ने राज्य में धर्म परिवर्तन पर पहरा लगा दिया है। लालच देकर या जबरन  धर्म परिवर्तन कराने के मामले में, कानून बनाकर चार साल जेल की सजा के अलावा जुर्माने का भी प्रावधान है। इसे गैर जमानतीय अपराध माना गया है। इसमें ये भी कहा गया है कि अगर अनुसूचित जाति और जनजाति के किसी व्यक्ति का धर्मान्तरण कराया जाता है, तो ऐसे में चार साल की सजा और एक लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो उसे सम्बन्धित जिले के उपायुक्त से अनुमति लेनी होगी।

एक समय आदिवासियों की स्थिति बेहद दयनीय थी। दाने-दाने को लोग मोहताज थे, गरीबी और बीमारी से जूझ रहे थे। कुपोषण की समस्या भी चरम पर थी और अशिक्षित तो थे ही, इसका ही फायदा ईसाई मिशनरियों ने खूब उठाया किन्तु मिशनरियों के काम-काज देखकर शायद अब आदिवासियों को यह अहसास होने लगा है कि उनकी जमीन भी जा रही है और उनकी आदिकालीन संस्कृति भी खतरे में है। इस कारण वह समझ रहे है कि सेवा की आड़ में और प्रलोभन देकर आदिवासियों का धर्मातंरण कराया जा रहा है तभी तो पिछले दिनों दुमका के सुदूर गांव में आदिवासियों ने ईसाई धर्म के कथित प्रचारकों को घेर लिया था, जिन्हें बाद पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेजा। थोड़े समय पहले ही चईबासा के एक सुदूर गांव में कई आदिवासियों जो ईसाई बन गए थे उन्हें फिर से आदिवासी समाज में लाया गया था।

सरना परम्परा आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता और अध्यात्म जुडा हुआ है। आत्मा और परम-आत्मा की आराधना उनके लोक जीवन और सामाजिक जीवन का एक भाग है, सरना आदिवासी प्रकृति का पूजन करता है वह पेड, खेत खलिहान सहित सम्पूर्ण प्राकृतिक प्रतीकों की पूजन करता है। यहाँ तक वह पेड काटने के पूर्व पेड से क्षमा याचना करता है। कु्ल मिला कर यही कहा जा सकता है कि सरना आदिवासी निराकार ईश्वर को वेदों के अनुसार एक अमूर्त शक्ति के रूप में मानता है और ईसाई मिशनरियां वेटिकन के आदेश पर अपने धर्म पोथे थोपने को आतुर है। इसी वजह से चर्च आदिवासियों के रीति-रिवाज और संस्कृति पर चोट पहुंचा रहे हैं। जिससे आदिवासी उबाल खा रहे है इस कारण कहना गुनाह नहीं होगा कि चर्च झारखंड को एक किस्म से अशांति की ओर भी धकेल रहे हैं।..राजीव चौधरी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *