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डारविन के विकासवाद की मूर्खता

भाई-बहन एक ही परिस्थिति में उत्पन्न होते हैं और बढ़ते हैं। पर बहन के मुंह पर दाढ़ी मूंछ का नाम भी नहीं होता। हाथी और हथिनी एक ही परिस्थिति में हैं पर हथिनी के मुंह में बड़े दांत नहीं होते। मोर-मयूरी, मुर्गा-मुर्गी दोनों एक ही परिस्थिति में होते हैं पर मयूरी और मुर्गी के वे सुंदर पैर और कलंगी नहीं होती जो मोर और मुर्गे के होती है। इसी कारण से स्त्री के दाढ़ी मूंछ, मयूरी के पूंछ, मुर्गी के कलंगी और हथिनी के दांत नहीं होते- सुश्रुत अ. 2।।

केश-लोम-दाढी-मूछ-नख-दांत-सिरा-धमनी-स्नायु और शुक्र ये पिता के अंश से पैदा होते हैंं। यह स्त्री-पुरुष में क्या अंतर है? डारविन के विकासवाद के पास इसका कोई उत्तर नहीं है। स्तनधारियों में घोड़ों में स्तन क्यों नहीं होते कोई जवाब नहीं। भिन्न-भिन्न दो जातियों के मिश्रण से वंश चलने वाला सिद्दांत ठीक नहीं है। यह नमूना घोड़े और गधे से उत्पन्न खच्चर में, कलमीआम और पैबन्द बेर में बहुत अच्छी प्रकार से दिखलाई पड़ता है। घोड़े और गधे के मेल से सन्तति तो होती है अर्थात् खच्चर तो होता है, पर खच्चर का वंश नहीं चलता इसी से खचरी रोती है, मेरा वंश कहां गया। ‘‘खचरस्य सुतस्य सुतः खचरः सुतः खचरः खचरी जननी न पिता खचरः परिरोदिति हा खचरः, क्व गतः क्व गतः खचरः।।’’ इसी तरह पैबन्द बेर की गुठली से भी वृक्ष नहीं होता। इसी से समझना चाहिए ये सजातीय नहीं है। ‘‘समान प्रसवा जातिः’’ ‘सति मूली तद्विपाको जात्यायुर्भोगा!!’’ पूर्ण जन्म के कर्मा का फल जाति आयु और भोग द्वारा मिलता है।

प्रत्येक जाति की आयु भिन्न-भिन्न निर्धारित क्यों है? मनुष्य 100, बन्दर 21, गाय 18, बकरा 24, ऊंट व गधा 19, कबूतर शशक 8, कुत्ता 14, घोड़ा 31, कछुआ 150, सर्प 120 वर्ष की आयु के होते हैं तथा छोटे-छोटे कीड़ों में आयु का महान अन्तर है। ‘‘डारविन की थ्योरी की मूर्खता में बन्दरों और मनुष्य से वंश स्थापित नहीं हो सकता, न चल सकता है।’’ इसी से बया पक्षी ने डारविन बन्दर को अन्त में आड़े हाथों लिया है।

एक ही परिस्थिति में उत्पन्न होने वाले जोड़ां में से स्त्रियों के दाढी-मूंछ, मयूरी के लम्बी पूंछ, मुर्गी के सिर पर कलंगी और हथिनी के बड़े दांत क्यों नहीं होते? प्राणियों में दांतों की संख्या न्यूनाधिक क्यों? क्यों स्तनधारियों में घास खाने वाले गाय, भैंस के ऊपर के दांत नहीं होते हैं? और क्यों कुत्तों के दांत नहीं गिरते? घोड़ों के पैर में परों के चिन्ह क्यों? बच्चा पैदा होते समय घोड़ी की जीभ क्यों गिर जाती है? दूसरे जानवरों की जीभ क्यों नहीं गिरती? अस्थिहीन और अस्थि सहित दो प्रकार के प्राणी हैं। बिना हड्डी वाले मर कर मिट्टी में मिल जाते हैं, पर हड्डी वालों की हड्डियां मिट्टी से बरबाद नहीं होतीं। वे हजारों वर्ष हो जाने पर भी मिलती हैं। इन्हीं प्राचीन पस्तर मूर्तियों को ‘फौसील’ कहते हैं। अच्छे स्थानों की हड्डियां प्रायः कुत्ते, श्रृंगाल, भेड़िया, गीध उठा ले जाते हैं।

डारबिन के भ्रम का कारण यही था कि उसने केवल आकृति साम्य पर ही भरोसा कर लिया था। वह वन मानुष (चिंपांजी) और गौरेल्ला को देखकर चिल्ला उठा कि ये एक प्रकार का मनुष्य ही है। समानता का कारण न दूरता है न निकटता, प्रत्युत वंश और परिस्थिति कारण है। सीदा चीनी और भारतवासी परिस्थिति ही रंगरूप में भिन्न है। पर एक ही वंश के होने के कारण एक दूसरे से हजारों कोसों की दूरी पर रहते हुए भी सब में समान प्रसव, समान भोग और समान आयु पायी जाती है। इस सबके पूर्वज एक ही वंशज हैं। पुराणों में उड़ने वाले सर्प लिखे हैं।, उनकी हड्डियां भी मिल गयी हैं। इसलिए पुराण और विकास दोनों की जम गई है। ‘‘परस्परम प्रशंसति अहौरुपमहां ध्वनिः’’ पर पुराणों में तो घोड़ों के उड़ने की बात भी लिखी है। पहाड़ों के उड़ने का भी वर्णन है। आहल्य खण्ड में महोबे के ऊदल सिंह का घोड़ा बेन्दुला भी उड़ता था। यहां तक कहा गया है कि सांप उड़कर मलयगिरि पर जाकर चन्दन में लिपट जाता है। उड़ने के समय जो कोई उसकी छाया में पड़ जाता है उसे पक्षाघात् हो जाता है। यह सत्य है? या नहीं। जबकि विकासवाद उड़ने वाले सर्पों के बाद, पक्षियों के बाद और बहुत से स्तनधारियों के बाद मनुष्य की उत्पत्ति मानता है। ऐसी दशा में आप ही प्रश्न होता है कि जब मनुष्य उड़ने वाले सर्पों के लाखों वर्ष बाद हुआ तो सर्पों को उड़ते हुए देखा किसने? जिनके आधार पर पुराण लिखे गये हैं।

घोड़ी 12 महीने में, गाय 9 में, भैंस 10 में, वानर 4 में, मनुष्य 9 में, बच्चा पैदा करता है क्या कोई विकासवादी इस अव्यवस्थित क्रम का कारण बता सकता है? नहीं। मनुष्य के बाल 4 बार बचपन में सुनहरे, जवानी में काले, बुढ़ापे में सफेद और अन्त में पिंघल हो जाते हैं। बन्दर के एक बार भी नहीं बदलते? सब पशु तैर जाते हैं। बन्दर भी तैरने लगता है पर मनुष्य बिना सीखे तैर नहीं सकता। मनुष्य पशु श्रेणी का नहीं है। जिसके मेल से वंश चले वही जाति है, अन्य नहीं। चिंपांजी केवल 9 महीने के बालक की सी बुद्धि रखता है। किस वानर के सिर पर 4-4 फुट के लम्बे बाल होते हैं? किस वानर की दाढ़ी 1-1 गज  लम्बी होती है? ला मार्क नामी विद्वान चूहों की दुम काटकर बिना दुम के चूहे पैदा करना चाहता था, पीढ़ियों तक वह ऐसा करता रहा, पर बिना पूंछ के चूहे नहीं हुए। प्राकृति चुनाव से ही विकास हुआ है। उसी से हम पहचाने जाते हैं। कृत्रिम चुनाव नई जाति नहीं बनाता। खतना किये पुरुषों की औलाद खतना की हुई नहीं होती। सभी विद्वान डार्विन के सिद्धान्त के विरुद्ध हैं। इस संदिग्ध विषय पर विश्वास करना कितना भयंकर है? विकासवाद का यह सिद्धान्त कि संसार में सर्वत्र जीवन संग्राम जारी है, उसमें बलवानों की ही विजय होती है। नितान्त अनर्गल है। इसलिए विकासवाद की अनैतिक असंवैधानिक शिक्षा के अनुसार हमें अपना जीवन बनाना उचित नहीं है। इसी तरह ‘‘या औषधि पूर्वा जाता त्रियुंगपुरा त्वज्जता’’ वेद के इन दो मंत्रों से भी इस घृणित सिद्धान्त की पुष्टि की है, इससे वेद मंत्रों का अनर्थ कर क्रम विकास की तरफ खींच दिया। दोनों मंत्रों में कहीं विकासवाद नहीं है।

गत लड़ाई के समय क्रिश्चिन हैरल्ड में ये खबर छपी थी कि ब्रिटिश साइंस सोसाइटी का अधिवेशन वलवूरन आस्ट्रेलिया में हुआ था। जिसके सभापति प्रोफेसर विलियम वैटसन थे, उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि ‘‘डारविन का विकासवाद बिल्कुल असत्य और विज्ञान के विरुद्ध है।’’ अमेरिका की रियासतों ने अपने यहां के स्कूलों में डारविन के सिद्धान्त की शिक्षा को कानून के विरुद्ध अवैज्ञानिक ठहराया है और विकासवाद की चर्चा को जुर्म करार दिया है। (वैदिक मैग्जीन अक्टूबर 1925) प्रोफेसर पैट्रिक गैडिस ने कहा कि विकासवाद में मनुष्य के विकास के प्रमाण संद्धिग्ध हैं और साईस में उसके लिए कोई स्थान नहीं है।

वेदपाल वर्मा शास्त्री, विद्यावाचस्पति, प्रवक्ता

 

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