राजीव चौधरी
मस्जिद कमेटी का खास जरुरी एलान ये मस्जिद सुन्नी हनफी सहीहुल अकीदा लोगों की है हुजुर के फरमान सहाबा के तरीके गौसी ख्वाजा मरदूम पाक खुसुसून मसलके आला हजरत इमाम अहमद खां रजा बरेलवी के पैरोकार है। यहाँ पर देवबंदी वहाबी तबलीगी व दीगर बंद अकीदा लोग इस मस्जिद में ना आये अगर वह आते है तो नतीजे के जिम्मेदार वह खुद होंगे। ये बोर्ड उन वामपंथी मीडिया और मुसलमानों को पढ़ लेना चाहिए जो डासना के देवी मंदिर में मुसलमान के वर्जित प्रवेश को हेडलाइन बनाये बैठे है।
कई दिन से देश में नई समस्या खड़ी हो गयी कि डासना मंदिर के बाहर बोर्ड क्यों लगा है कि मुस्लिम मंदिर में ना आये। डासना के मंदिर से पानी पीने के लिए पीटे गये मुस्लिम लड़के की ख़बर को विदेशी मीडिया ने, ख़ासकर मुस्लिम देशों की मीडिया ने प्रमुखता से छापा है। पाकिस्तान के अंग्रेजी अख़बार डॉन, बांग्लादेश के अंग्रेजी भाषा के दैनिक अख़बार ढाका ट्रिब्यून ब्रिटेन के अख़बार द मुस्लिम न्यूज, अरब के अल जरीरा और बीबीसी समेत अन्य अख़बारों ने इस खबर ऐसे दिखाया मानो कोई बहुत बड़ा कांड हो गया। जबकि इस्लाम में सभी फिरके अपनी अपनी मस्जिद में बाहर बोर्ड टांग कर बैठे कि सुन्नी की मस्जिद में शिया ना आये। शिया की मस्जिद में सुन्निओं ना घुसे। बरेलवी की मस्जिद में देवबंदी घुसे तो जान माल की खैर नहीं और देवबंदी की मस्जिद में अगर बरेलवी घुसे तो जलील कर देंगे।
ये बात हम किसी पूर्वाग्रह का शिकार होकर नहीं कह रहे है बल्कि उन लोगों के नयन चक्षु खोलना चाहते है जो मंदिर में मुसलमान के प्रवेश की पाबंदी को साम्प्रदायिक बता बता कर टीवी चैनलों पर आपा पीट रहे है। करेहपारा रतनपुर इस मस्जिद के बाहर बोर्ड लगा हुआ है कि सलातो वसल्लामो अले क या रसुल्लाह मसलके आला हजरत सुन्नी हनफी बरेलवी मिल्लत जामा मस्जिद करेहपारा रतनपुर। यह मस्जिद सुन्नी सहीहुल अकीदा मुसलमानों की है। यहाँ के नमाज पढने वालों का तरीका मसलके आला हजरत के तरीके से पढ़ते है इस मसलक के खिलाफ करने वाले देवबंदी वहाबी कादयानी शिया जैसे बद अकीदों का इस मस्जिद में आना शख्त मना है। नीचे एड्रेस दिया गया है मुस्लिम जमात जामा मस्जिद करेहपारा रतनपुर।
एक दूसरी जामा मस्जिद भी है। इन्होने बाहर एक बड़ा साइन बोर्ड लगाया है कि मसलके आला हजरत अहले सुन्नत वल जमात जामा मस्जिद बालोद। ये लिखते है कि इस मस्जिद में देवबंदी वहाबी नज्दी तबलीकी जमात गुस्ताखे रसूल का आना सख्त मना है इंतेजामिया कमेटी बालोद। एक अन्य मस्जिद के बाहर लिखा है कि तमाम फिरका ए बातला मसलन देवबंदी वहाबी राफजी व गैर मुकलिल्दो का इस मस्जिद में आना सख्त मना है कमेटी मस्जिद खजूर वाली कब्रिस्तान अशरफ खां बरेली।
इसके अलावा हुसेनी मस्जिद सनावद वालों ने तो इस्लाम का अन्दुरुनी काला चिटठा खोलकर बाहर ही रख दिया इन्होने लिखा है कि यह मस्जिद आशिकाने रसूल सुन्नी हनफी चिस्ती मसलके आला हजरत व बुर्जग्राने दिन के मानने वालों की है। यहाँ पर तमाम गुस्ताखे खुदा व रसूल का आना सख्त मना है जैसे वहाबी देवबंदी तबलीगी जमाती गैर जमाती गैर मुक्क्लीद व अहले खबीस का आना सख्त सख्त सख्त मना है। अगर गलती से आ जाये तो जलील करके निकाला जायेगा. नीचे लिखा है मिन जानिब तमाम आशिकाने रसूल व मुतवल्ली।
ये कोई एक दो जगह का किस्सा नहीं है। आप इनकी मस्जिदों के बाहर लगे ऐसे बोर्डों को पढ़ सकते है। एक और मस्जिद है जिसके बाहर लगा ये साइन बोर्ड इस्लाम के जातिवाद का कवर उतारकर फेंक रहा है। इस मस्जिद के बाहर बड़े अक्षरों में लिखा है मसलके आला हजरत जिंदाबाद खबरदार ये मस्जिद अहले सुन्नत वल जमायत की है। इस मस्जिद में वहाबी देवबंदी जमाती अहले हदीस तबलीगी जमातों व तमाम बद मजहबों यानि हिन्दू सिख इसाई का आना सख्त मना है। पकडे जाने पर कार्रवाही की जाएगी जिसका जिम्मेदार व खुद होगा।
केवल मस्जिदे ही नहीं इनके शादी के कार्ड पर भी इनकी मानसिकता छापी जाती है। शेख सिराजुदीन और और शबाना बेगम की शादी का एक कार्ड देखा जिस पर स्पेशल लिखा था कि देवबंदी वहाबी सुलह कुल्ली का आना सख्त मना है जिसको ये बुरा लगे वह भी ना आये।
केवल शादी के कार्ड और मस्जिदे ही नहीं एक अल्लाह की बात करने वाले मुसलमान कब्रिस्तान में भी आपस में लठ बजा रहे है और शोर मचा रहे है कि डासना के देवी मंदिर के बाहर मुसलमानों को रोकने के लिए बोर्ड क्यों लटका दिया है।
कब्रिस्तान के हाल ये है कि सुन्नी शियाओं और अहमदिया कदयानियों के कब्रिस्तान में मुर्दे नहीं दफना सकते। कब्रिस्तान के बाहर भी ऐसे बोर्ड या दीवारों पर लिखा जाता है कि यह कब्रिस्तान सुन्नियों का है वहाबी देवबंदियों व अन्य फिरकों का दफनाना मना है, नहीं तो सख्त कार्रवाही की जाएगी। अब ये सख्त कार्रवाही क्या होती है पिछले दिनों उदयपुर के एक कब्रिस्तान में मय्यत दफनाने को लेकर हुए विवाद में यह सब सामने आया था। जब मरहूम मोहम्मद यूसुफ की लाश को कब्र से निकाला गया अपमानित किया गया और उनके पुत्र के घर उनकी लाश फेंक दी गयी थी। क्योंकि मोहम्मद यूसुफ उस फिरके से नहीं था जिस फिरके का यह कब्रिस्तान था।
यानि एक दुसरे की शादी में नहीं जा सकते एक दुसरे के कब्रिस्तानों से गड़े मुर्दे उखाड़ रहे है, मस्जिदों के बाहर बोर्ड लटकाए बैठे है कि किसे मस्जिद में आने देना है किसे नहीं। लेकिन समस्या ये है कि मंदिर के बाहर बोर्ड को लगा दिया कि मुसलमान का प्रवेश वर्जित है।
समस्या यहाँ तक भी होती निपटारा हो जाता है लेकिन जब अगर किसी मुसलमान को मंदिर में जाने दिया जाता है तो उसका क्या होता है दरअसल कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के रंछाड गाँव का बाबु खान कुछ समय पहले मंदिर में गया और भगवान शिव का जलाभिसेक किया। लेकिन मुसलमानों को यह बात नागवार गुजरी इसके दो दिन बाद जब बाबु खान मस्जिद गया तो उसे मस्जिद ये कहकर बाहर फेंक दिया कि मुसलमान होकर मंदिर क्यों गया।
मसलन मंदिर में जाने दिया तो समस्या और नहीं जाने दिया तो समस्या अब इस समस्या का ये हल हो सकता है कि अगर हिन्दू मुसलमानों को मंदिर में नहीं जाने देते तो भाई आप लोगों को एक सलाह है कि अपनी मजारों के बाहर बोर्ड लटका दो कि यह मजारें मुसलमानों की है और हिन्दुओं का आना सख्त मना है। अगर कोई फिर भी आता है तो उसका डासना वाले आसिफ जैसा व्यवहार करो विडियो डालों और बताओं कि ये मना करने के बावजूद भी मजार पर आया था।