आर्यावर्त ईश्वर भक्त, धर्मात्माओं, वीर शहीदों की पावन भूमि है। जिन वीरों ने देश-धर्म व मानवता की रक्षा में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया था उन्हीं वीरों में से एक था धर्म शहीद बाल हकीकत राय। हकीकत राय का बलिदान मुहम्मद शाह रंगीला के शासन काल में बसन्त पंचमी के दिन सन् 1734 ई. में हुआ था। उसकी याद में आर्य समाज तथा अन्य धार्मिक संस्थाएं बसन्त पंचमी के दिन शहीद दिवस धर्मधाम से मनाती हैं।
हकीकत राय का जन्म सन् 1719 ई में सियालकोट पूर्व पंजाब (अब समझदारी नहीं है, किन्तु काजी नहीं माना। अमीर बेग ने मामला लाहौर के नवाब सफेद खान की अदालत में भेज दिया। भागमल और कौरा देवी कुछ हिन्दुओं को साथ लेकर लाहौर पहुंचे और नवाब से हकीकत राय को माफ कर देने की प्रार्थना की।
लाहौर के नवाब ने सारे मामले को ध्यान से पढ़ा और सुना। दोनों पक्षों की बातें सुनकर तथा हकीकतराय की सुन्दरता तथा कम उम्र देखकर हकीकत राय से खुश होकर कहा – ‘हकीकत राय मेरी बात मान ले और मुसलमान बन जा, मैं अपनी सुन्दर बेटी का विवाह तेरे साथ पूछ लो कि ये और आप भी क्या सदा जीवित रहेंगे?’ नवाब ने सिर नीचा करके कहा – ‘हकीकत राय संसार में जो जन्म लेता है वह अवश्य ही मरता है। मैं भी मरूंगा, तू भी मरेगा और ये काजी मौलवी भी जरुर मरेंगे। बेटा मैं पुत्रहीन हूं अगर तू मेरी दुख्तर से निकाह कर लेगा तो मेरी सारी सम्पति का मालिक बन जाएगा। जिन्दगी भर मौज उड़ाएगा। अरे हकीकत अब तू ठीक तरह से सोच समझकर उत्तर दे बेटा।’ हकीकतराय ने मुस्कराते हुए नवाब को जवाब दिया –
‘यह सृष्टि का है नियम अटल, जो इस दुनियां में आता है।