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पद्म पुरस्कारों तक आम नागरिक की पहुँच कैसे बनी

पद्म पुरस्कारों पुरस्कार से तात्पर्य है, विशिष्ट का सम्मान और दूसरों को प्रेरणा। यह तभी संभव है, जब हमारे जैसे दिखने वाले असाधारण व्यक्ति भी सम्मानित हों!

खासकर यह पुरस्कार तब और ज्यादा प्रेरणादायक हो जाते हैं, जब  सम्मानित होने वालों में बहुत सारे व्यक्ति इतने साधारण हों, कि रिक्शा वाला भी यह कल्पना ना कर पाये की उसकी रिक्शा या बस में बैठकर जाने वाला यह बिल्कुल साधारण सा व्यक्ति पद्मश्री, पद्म भूषण या पद्म विभूषण से सम्मानित होकर लौट रहा है‌।

और अपने कार्य और समर्पण की वजह से राष्ट्र गौरव है।

पद्म पुरस्कारों को लेकर बचपन से लेकर आज तक मेरे मन में टीवी और अखबारों के माध्यम से एक धारणा मजबूत बनी हुई थी, की यह पुरस्कार सूट बूट वाले जैंटलमैन लोगों के लिए बने हैं।

पर आज जब अनेक चप्पल और साधारण भेष-भूषा वाले लोगों को पुरस्कार लेते देखा तो यह धारणा टूट गयी और लगा की आज मुझे अनेक मेरे गांवों के खेतों और छोटे बाजारों में नजर आने वाले ताऊ, चाचा  ,दादा  जैसे लोगों के पैर भी राष्ट्रपति भवन की चमक को चार चांद लगा रहे हैं । और राष्ट्रपति भवन में सच्चे पसीने और मिट्टी की खुशबू फैली हुई है। जो मंहगे परफ्यूम्स से ज्यादा सुकूनभरी है।

भारत में पद्म सम्मानों के लिए अक्सर इस देश में एक लंबी दौड़ देखी जाती रही है। आमतौर पर यह पुरस्कार पुरे तरीके से अभी तक राजनैतिक पैंठ और सिफारिश के मोहताज रहे हैं। किसी किसान सामान्य इंसान को यह पुरस्कार मिलना तो जैसे सोच से परे था।

आपकी प्रसिद्धी ने सरकारी दरवाजों को नेस्तनाबूद करके अपना हक छीन लिया हो तो एक अलग बात है। भारत में अपने आप को यह सम्मान देने की परंपरा भी रही है । भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं को भारत रत्न दिया था। क्योंकि उनको इस बात का डर था , कि पता नहीं बात में कोई दे ना दे। और उनको  दुनिया के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री होने का गौरव प्राप्त है । जिन्होंने स्वयं को सर्वोच्च सम्मान दिया हो। वहीं पहली बार ऐसा देखने को मिला की इन पद्म पुरस्कारों की गूंज लुटियंस जोन के बाहर सुदूरवर्ती किसानों के खेतों और कोई सामान्य चाय का ठेला लगाने वाले के घर की दहलीज को लांघने में कामयाब हुई है। ऐसा सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रधानमंत्री के जनता प्रेम से ही संभव हो पाया है। कि जहां इस बार बड़े बड़े उद्योगपतियों वैज्ञानिकों और खिलाड़ियों के बीच सामान्य जीवन यापन करने वाले आदिवासियों और 15 से अधिक किसानों को भी राष्ट्रहित में उनके विशेष योगदान के लिए उनको पद्म पुरस्कारों से नवाजा गया है ।

106 साल की बेहद साधारण जगह से आने वाली ” वृक्ष माता ” हों , जिन्होंने अपने आपको पुरी तरह से संसाधनों की चिंता किये बिना पर्यावरण को अर्पित कर दिया । या बंटवारे का दंश झेल कर दिल्ली में तांगे वाले से लेकर मसालों के क्षेत्र में दुनिया हिलाने वाले बेहद साधारण से जीवन के धनी मसालों के बादशाह श्री महाशय धर्मपाल जी गुलाटी हों हर व्यक्ति विशिष्ट और सामान्य पृष्ठभूमि और जनता की आसान पहुंच में है।

साधारण सी जगह से आकर जनता के बीच में अपने कार्य से अपनी विशिष्ट पहचान बनाकर अपने नाम की गूंज को राष्ट्रपति भवन में सुनकर यह लोग स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं ।‌ वहीं विपक्ष इसे चुनाव से पहले सरकार की विभिन्न जातियों और वर्गों को लुभाने का षड्यंत्र बता रहा है।

चाहे जो मर्जी हो भारत लुटियंस जोन से नहीं चलता जब हम भारत की बात करते हैं । तो मस्तिष्क में किसान आता है । सामान्य मजदूर आते हैं। और जवान आता है , जिसका शौर्य पुरी दुनिया ने हाल ही में देखा तो इनका सम्मान जरुरी है। 15 से ज्यादा भारत माता के सच्चे किसान पुत्रों को कृषि के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए  सम्मान देकर सरकार ने यह सिद्ध किया है। कि यह देश कृषि प्रधान देश है। इस बार के पद्म पुरस्कारों को देखकर गर्व हुआ कि पुरस्कार खरीदे नहीं गये हैं, बल्कि उन लोगों को दिये गये हैं जो इनके सच्चे हकदार हैं। और जिनके लिए सम्मान के साथ पुरस्कार के रूप में मिलने वाली राशि का भी महत्व है।

लोकतंत्र की सार्थकता संविधान के पक्ष में नारेबाजी करना नहीं वरन् ऐसे लोगों का सम्मान करके दूसरों को उनसे प्रेरित करना है। जिनके हर श्वास में राष्ट्र होता है। सही मायने में इस बार का पद्म पुरस्कार समारोह बेहद प्रेरणादायक और सार्थक रहा है। जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। और बहुत से ऐसे चेहरों से रूबरू होने का मौका मिला जो मीडिया और हमारी पहुंच से दूर गीता के  ” कर्मण्य वा अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ” को जीवन में आत्मसात कर एक मस्त फकीर की तरह तमाम चुनौतियों और परेशानियों के बाद भी मजबूती के साथ में डंटे हुए हैं ‌।

आज पुरस्कार लेने वाले चेहरों और उनके मनोभावों को पढ़कर लग रहा था, कि इन पुरस्कारों का कोई महत्व और खासकर तब जब सैकड़ों बरगद के पेड़ों को लगाने वाली 106 वर्षीय  “वृक्ष माता” ने प्रोटोकॉल के विपरीत सम्मान से प्रसन्न हो आशीर्वाद स्वरूप राष्ट्रपति के माथे पर हाथ रखा तो आंखें नम हो गई । और खुद के भारतीय होने पर गर्व हुआ। जैसे उस मेरी दादी जैसी दिखने वाली । अपनी इच्छाशक्ति और लग्न से बिना किसी उम्मीद के अपने कार्य में लीन रहने वाली महिला से जन्मों का संबंध हो।

ऐसी सभी महान् हस्तियों को कोटि कोटि नमन और पुरस्कार के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।

 सोमवीर आर्य

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