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बस यही तो आर्य समाज की लड़ाई है

भाषा, धर्म और संस्कार किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी पूंजी होती हैं, क्योंकि यही चीजें किसी राष्ट्र को उसकी पहचान और उसका गौरव प्राप्त कराती है। दूसरी बात यह चीजें आती है उस राष्ट्र के साहित्य से। मसलन साहित्य जैसा होगा निःसंदेह राष्ट्र का निर्माण भी वैसा ही होगा। आज हमारे बच्चे क्या पढ़ते हैं एंडी और जोसेफ की कहानी? आप उनका पाठ्यक्रम उठा लीजिये और स्वयं देखिये उनके मासूम मनो पर क्या छापा जा रहा हैं? जब किसी साहित्य पतन होता है तो वह सिर्फ साहित्य तक सीमित नहीं रहता अपितु साहित्य के साथ एक संस्कृति, एक सभ्यता और कई बार तो धर्म और राष्ट्र भी खतरे में पड़ जाते हैं। यदि इस प्रसंग में गौर करें तो साहित्य जैसा दस साल पहले था अब नहीं है,  हालाँकि भाषा का पतन भी साहित्य के पतन में मुख्य कारक समझा जाता है।

दरअसल भारतीय साहित्य और भाषाओं का विस्तार करने के लिए भारत सरकार ने 1957 में नेशनल बुक ट्रस्ट की स्थापना की गयी थी। इसके मुख्य उद्देश्य समाज में भारतीय भाषाओं का प्रोत्साहन एवं लोगों में विभिन्न भारतीय भाषा के साहित्य के प्रति रुचि जाग्रत करना था। जिसके तहत हर वर्ष विश्व पुस्तक मेले का आयोजन किया जाना भी शामिल है। यदि आज विश्व पुस्तक मेले में भाषा के स्तर पर भारत की मौजूदगी का अध्ययन करते हैं तो हम इस बात का शोर तो सुनते हैं कि हिन्दी विश्व की बड़ी भाषाओं में से एक है लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? दिल्ली में आयोजित पिछले चार विश्व पुस्तक मेले का मीडिया स्टडीज ग्रुप ने एक तुलनात्मक अध्ययन किया है। संस्था की रिपोर्ट बेहद चौकाने वाली रही साल 2013 के विश्व पुस्तक मेले में भाषावार शामिल 1098 प्रकाशकों में अंग्रेजी के 643, हिन्दी के 323, उर्दू के 44, संस्कृत के 18, विदेशी प्रतिभागी 30 थे। वर्ष 2017 में यह घटकर भारतीय भाषाओं की उपस्थिति और भी कम हुई। कुल 789 प्रकाशनों में अंग्रेजी के 448, हिन्दी के 272, उर्दू के 16, पंजाबी के 10, बांग्ला के 07, मलयालम के 06, संस्कृत 03, और 19 विदेशी प्रतिभागी शामिल थे।

हिन्दी में स्टॉल की जो संख्या दिख रही है, उनका विलेषण करें तो बड़ी संख्या में धर्म-कर्म, कर्मकांडी, जादू-टोना, अश्लील साहित्य की दुकानें हैं। जो मेले को फुटपाथी दुकान के रूप में बना देते हैं। इसके बाद यदि चर्चा करें तो पिछले कुछ सालों में विश्व पुस्तक मेले में धार्मिक संगठनों के स्टाल की बाढ़ सी आई है। हॉल के एक कोने में दलित और बौ( साहित्य का एक स्टाल लगा है। यहां बु( की तस्वीरें, इस्लाम से जुड़े तमाम संगठन शिया हो या सुन्नी। अहमदिया शाखा का भी एक स्टाल यहां लगा हुआ मिलेगा। तमाम ईसाई और अन्य मत के लोग बड़े-बड़े स्टाल सजाये फ्री में अपनी धार्मिक पुस्तकों बाईबल इत्यादि का वितरण करते दिखाई देते हैं तो इस्लाम वाले हर वर्ष कई ट्रक ‘‘कुरान’’ गैर मुस्लिमों को फ्री में प्रदान करते हैं। इन लोगों के उद्देश्य को जानकर और मजहबी स्टाल देखकर कोई भी सनातन धर्म प्रेमी हैरान हुए बिना नहीं रह सकता।

यहां आसाराम, ओशो, रामपाल, गुरु महाराज घसीटा राम, राधा स्वामी सत्संग, माताजी निर्मला देवी, शिरडी साई ग्लोबल फाउंडेशन से लेकर तमाम बाबाओं के स्टॉल यहाँ मंदिरों और इस्लामिक स्टाल मस्जिदों की भांति सजे दिखाई देंगे। मसलन कहने का आशय यह है कि वेद क्या है, धर्म क्या है, हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक संरचना आपको कहीं दिखाई नहीं देगी। कहीं स्टाल धर्मांतरण के अड्डे बने दिखाई देंगे तो कहीं बाबा अन्धविश्वास की लपेट लगाकर अपने भक्त जोड़ते दिखाई देंगे।

इसके बाद हॉल संख्या 7 में थीम पवेलियन बनाया जाता है जिसे बाल साहित्य के लिए आरक्षित किया जाता है। लेकिन कमाल देखिये! यहाँ भी अन्य मतों की मिशनरीज बच्चों के लिए कॉमिक्स से लेकर आर्ट बुक्स, टीनएज साहित्य, 3डी आदि से अपना प्रचार करते आसानी से दिख सकते हैं। अधिकांश साहित्य अंग्रेजी भाषा में होता है। यानि के लार्ड मेकाले का वह कथन यहाँ पूरा होता दिखता है कि किसी देश को गुलाम बनाना हो तो वहां का बचपन वश में कर लीजिये भविष्य खुद ही गुलाम हो जायेगा। शायद ही यहाँ कोई बाबा या या खुद को हिन्दू धार्मिक संगठन बताने वाले यहाँ जाकर अपने स्टाल लगाते हां? बस यही आर्य समाज की लड़ाई है जिसे वह एकजुट होकर लड़ता आया है।

अब इस स्थिति में आर्य समाज क्या करे? अक्सर बहुतेरे लोग यही सवाल दागकर सोचते हैं कि हमने सवाल खड़ा कर दिया काम खत्म? जबकि यहीं से आर्य समाज का कार्य शुरू होता है हर वर्ष आर्य समाज ही तो विश्व पुस्तक मेले में अपनी महान वैदिक सभ्यता का पहरेदार बनकर जाता है। 50 रुपये की कीमत का सत्यार्थ प्रकाश दानी महानुभावों के सहयोग से 10 रुपये में उपलब्ध कराया जाता है। गत वर्ष हिन्दी भाषा में सत्यार्थ प्रकाश ने समूचे मेले में सभी भाषाओं में बिक्री होने वाली किसी एक पुस्तक की सर्वाधिक बिक्री का रिकॉर्ड स्थापित किया था। उर्दू, अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में सत्यार्थ प्रकाश की बिक्री इसके अतिरिक्त रही और विशेष बात यह है कि सत्यार्थ प्रकाश की यह प्रतियां मुस्लिम सहित मुख्यतः गैर आर्य समाजियों के घरों में भी गई।

इस बार आर्य समाज का हाल संख्या 7 में बच्चों के लिए विशेष स्टाल है आप खुद को सोशल मीडिया फेसबुक या व्हाट्सएप्प और अखबारों के हवाले मत छोड़िये। आपको ये अखबार मर्दाना ताकत की दवा, बंगाली बाबाओं और जादू टोने के यंत्रों के ग्राहक में बदलकर रख देंगे। इसलिए आप इस बार पुस्तक मेले जायें तो हॉल नम्बर 12-12ए में आर्य समाज के स्टाल  282 – 291 में जरूर जाइये। बच्चों को हाल नम्बर 7 में लेकर जाएँ तो स्टाल नम्बर 161 में जाने से मत चूकियेगा वहां आर्य समाज का स्टाल मिलेगा क्रांतिकारियों और देशभक्ति के कॉमिक्स से साथ वहां से भी उनके लिए वैकल्पिक सामग्री खरीद लाइये। इस कसौटी पर कसते चलिए कि कौन सी पुस्तक आपके बच्चे को बेहतर मनुष्य बनने में मदद करती है, कौन सी जहर भरती है। अपनी भाषा अपने सनातन वैदिक धर्म का रक्षक बनकर स्वयं खड़ा होने का समय है, आर्य समाज के साथ इस राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में अपना योगदान दीजिये। वैदिक साहित्य का प्रचार ही राष्ट्र और धर्म बचा सकता है।

राजीव चौधरी

 

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