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भारत का मीडिया और चाइना की भाषा

चीन से फैली महामारी से तो जैसे तैसे करके देश निपट लेगा, लेकिन असली महामारी तो वे अफवाहें हैं जो लगातार देश में फैलाई जा रही है, कई रोज पहले कि खबर थी कि एचडीएफसी बैंक को चीन के केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीओसी) ने खरीद लिया है। कुछ ने इसे चीन का आर्थिक हमला बताया तो कुछ ने सरकार को कठघरे में खड़ा करने की नाकाम कोशिश की। जबकि एचडीएफसी के कुल शेयरों की संख्या 1 अरब 73 करोड़ 20 लाख से कुछ अधिक है, इनमें से चीन की हिस्सेदारी मात्र 1 करोड़ 75 लाख शेयरों की है। जो कि कंपनी के कुल आकार का 1.01 फीसदी है। इतनी हिस्सेदारी से उसे एचडीएफसी में कोई ऐसा अधिकार मिल गया जिसे कंपनी पर कब्जा कहा जा सके।

इस मामले में सबसे ज्यादा सक्रिय वही लोग थे जो ख़ुद चीन के हमदर्द माने जाते हैं। इस अभियान का वाहक भारतीय मीडिया और पत्रकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग बन रहा है। यह वह वर्ग है जो लंबे समय से कभी वामपंथ तो कभी कुछ दूसरे नामों से चीन की एजेंसियों द्वारा पाले जा रहे है। चीन ऐसा इस लिए कर रहा है क्योंकि दुनिया की महाशक्ति बनने के लिए उसे सबसे पहले दुनिया की मीडिया को खरीदना होगा। क्योंकि उन उन देशों की मीडिया उसे अपने-अपने देशों में एक उदार रहम दिल हीरो की तरह पेश करने का काम करेगी।

उदाहरण के तौर देखिये चीन की मीडिया ने एक झूठ फैलाया कि अभी तक यह साफ नहीं हो सका है कि वायरस कहां से फैला, हो सकता है कि इसकी शुरुआत अमेरिका से हुई हो। क्योंकि अमेरिका के कुछ खिलाडी 2019 में चीन के वुहान शहर में आये थे। घंटो मोदी सरकार की पड़ताल करने चैनलों में यह दावा जस का तस छा गया। इसे चीन के दावे के तौर पर नहीं, बल्कि ए नए खुलासे की तरह बताया गया।

बात सिर्फ यहीं तक होती तो भी चल जाता। भारतीय मीडिया का यह वर्ग चीन की तरफ से धमकी देता हुआ भी दिखाई दिया। आउटलुक पत्रिका ने अपनी वेबसाइट पर एक लेख पोस्ट किया, जिसमें चेतावनी दी गई कि अगर भारत ने कोविड-19 को चायनीज वायरस कहने की कोशिश की तो उसे भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। ‘चीन एक महाशक्ति और आदर्श देश है और भारत की भलाई इसी में है कि उसकी हां में हां मिला कर रखें।

इसके बाद देश के बड़े चैनल में चीन के राजदूत का एक विस्तृत बयान दिखाया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि हमने न तो वायरस को बनाया और न ही इसे फैलाया। और इस खबर में बड़ी सफाई से बताया गया कि चीन ने बेहतरीन ढंग से कार्रवाई की और महामारी नियंत्रित हो गई है। यह रिपोर्ट एक तरह का विज्ञापन था अगर बीमारी को नियंत्रण में करना है तो वह चीन से मेडिकल किट आयात करे। इसके बाद अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनीवर्सिटी के हवाले से झूठी रिपोर्ट दी थी कि भारत में अगले कुछ हफ्तों में 25 करोड़ लोग इस वायरस की चपेट में आने वाले हैं।

अब सवाल उठता है कि अपने देश को असहिष्णु और अंधविश्वासी बताने वाले ये पत्रकार चीन की छवि को लेकर अचानक इतने चिंतित क्यों हो उठे हैं? दरअसल चीन ने पिछले कुछ साल में अपने यूसी ब्राउजर और टिकटॉक जैसे एप के जरिए पूरे विश्व में एक अलग तरह का दुष्प्रचार तंत्र विकसित किया है। इसमें भारत भी शामिल है। कई जाने-माने पत्रकारों से लेकर नई पीढ़ी के छात्र-छात्राएं और आम लोग भी जाने-अनजाने इस तंत्र में शामिल हैं।

चायनीज वायरस के मामले में एक वामपंथी न्यूज पोर्टल ने एक तथाकथित डॉक्टर के हवाले से रिपोर्ट दी कि भारत में लाखों लोग संक्रमित है और भारत सरकार इस बात को छिपा रही है। हालाँकि जब इस तथाकथित डॉक्टर की जांच की तो पाया कि वह मेडिकल डॉक्टर नहीं, बल्कि पीएचडी वाला डॉक्टर है। इसके बाद भारत सरकार को ताइवान से सिखने की सलाह दे डाली और तो पूरा प्रोग्राम चाइना और ताइवान के इर्द गिर्द कर डाला कि बिना लॉकडाउन के ताइवान कैसे इस महामारी से बचा। जबकि जिन तीन देशों सिंगापुर, हांगकांग और ताइवान ने इस पर काबू पाया उन्होंने लोगों को घर पर रहने के लिए कहा, अगर वे इस आदेश को उल्लंघन करते हैं तो उनपर भारी जुर्माना लगाया जाता है और जेल तक की सजा का प्रावधान है एक ऐसे ही शख्स से तो सिंगापुर में उसकी नागरिकता का अधिकार तक छीन लिया गया।

अब सवाल ये है कि हम इन तीन देशों से कैसे सीख सकते है क्योंकि हमारे यहाँ तो डॉक्टरो के साथ क्या हुआ। नर्सो के साथ क्या हुआ। पुलिस प्रशासन पर पत्थर बाजी जो हुई वह भी किसी से छिपी नहीं है और जमात के कारनामो पर तो क्या कहा जाये।

जबकि जो चैनल भारत को ताइवान से सीखने की सलाह दे रहे है उन्होंने ताइवान का वो बयान नही दिखाया जिसमें उन्होंने साफ किया कि हमने जो किया, ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि हमारी आबादी कम है। पूरी दुनिया में ऐसा नहीं किया जा सकता। हमारी तर्ज पर चलने का कोई मतलब नहीं होगा, हर देश को अपने यहां के हिसाब से सिस्टम बनाना होगा।

लेकिन इसके बाद भी चैनलों और अखबारों ने भी चीनी दुष्प्रचार को अपना एजेंडा बना लिया। बीबीसी हिंदी भले ही ब्रिटेन के टेक्सपेयर के खर्चे पर चलता हो लेकिन उसमें बैठे वामपंथियों ने उसे चीन का हितैषी बना रखा है। इसने रिपोर्ट प्रकाशित की कि कैसे खुद संकट से उबरने के बाद चीन मानवता की सेवा कर रहा है। सबूत के तौर पर उसने बताया कि कैसे उसने स्पेन को मेडिकल किट उपलब्ध कराई है।

जबकि ये किट एक व्यापारिक सौदे के तहत मोटी कीमत लेकर दी गई थीं और उनमें से 80 प्रतिशत से ज्यादा खराब निकल चुकी हैं। स्पेन की मीडिया में यह समाचार होने के बावजूद बीबीसी के पत्रकारों तक यह बात नहीं पहुंची। लेकिन दुनिया में अपनी उदार छवि बनाने के लिए अपने पक्ष में प्रचार कराने के लिए चीन दुनिया में बड़े पैमाने पर पैसे खर्च कर रहा है। 2009 में भारतीय पत्रकारों का एक दल चीन गया था जिसे तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश से लगे इलाकों में भी ले जाया गया था। कई ऐसे बांधों पर भी घुमाया गया था जिनके बारे में माना जाता है कि वे भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। लौटकर इन सभी पत्रकारों ने जो रिपोर्ट छापी थीं उन्हें देखें तो कहानी समझ में आ जाती है। उन्होंने चीन सीमा पर हुए विकास, वहां की चकाचौंध का ऐसा महिमामंडन किया इतना तो एक मौलवी जन्नत का भी नही कर पाता। यह सब बिना कारण नहीं हो सकता। सिर्फ महिमामंडन हो तो भी चलेगा लेकिन अगर ऐसी रिपोर्ट में बताया जाए कि चीन सर्वशक्तिशाली है और भारत उसके आगे कहीं भी नहीं टिकता। तो समझ जाइये जाता है कि उद्देश्य कुछ और है और हम सोचते है कि ये सरकार विरोधी नेता और पत्रकार है। लेकिन ये देश विरोध है, और अब इनका काम चीन की वाह-वाह करना शेष बचा है।

राजीव चौधरी

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