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भारत के मध्यकाल की राजनीति की ओर सऊदी अरब

सऊदी अरब विश्व का सबसे मह्त्वपूर्ण और प्रभावी मुस्लिम देश है इसलिये यहाँ जो घटना घटती है वह न केवल अरब में बल्कि सामान्य रूप से इस्लाम और मुसलमानों के अन्य राज्य और प्रशाशन को भी प्रभावित करती है. यह तथ्य हैं कि मुस्लिम बहुल देश बहुत कम संख्या में लोकतांत्रिक हैं और इस तथ्य का निष्कर्ष इस बात पर पहुँचने को प्रेरित करता है कि इस्लाम धर्म और उसके सामान्य तत्व अपने आप में भी लोकतंत्र से असंगत हैं. हाल ही में सऊदी अरब में एक नई भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी ने 11 राजकुमारों समेत 4 मंत्रियों और दर्जनों पूर्व मंत्रियों को हिरासत में ले लिया है. हिरासत में लिए गए लोगों में अरबपति प्रिंस अलवलीद बिन तलाल भी शामिल हैं. सऊदी अरब की राजनीति के जानकर कह रहे है अभी ये कहना बेहद मुश्किल है कि ये भ्रष्टाचार ख़त्म करने की दिशा में लिया गया कदम है या इस कारण से मोहम्मद बिन सलमान हर उस आख़िरी रिश्तेदार को अपने रास्ते से हटा देना चाहते हैं जो भविष्य में उनके राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती दे सके.

देखा जाये तो नवम्बर माह के पहले सप्ताह में 24 घंटे के अन्दर अरब के शाही परिवार के 200 लोगों में 2 राजकुमारों की मौत के साथ 11 राजकुमारों को हिरासत में लिया जाना पूरा वाक्या भारत के मुगलकाल की याद ताजा कर रहा है जब आपसी मतभेद के चलते 1657 में शाहजहाँ के बीमार पड़ने के बाद मुगल शाशक औरंगजेब ने अपने पिता को हिरासत में लेने के साथ अपने तीन भाइयों की हत्या करने के बाद सत्तासीन हो गया था. कुछ इसी तरह मोहम्मद बिन सलमान की सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की शुरुआत साल 2013 में तब हुई, जब उन्हें क्राउन प्रिंस कोर्ट का मुखिया चुना गया. इसके बाद जनवरी 2015 में किंग अब्दुल्लाह बिन अब्दुल अजीज की मौत के बाद पिछले दो सालों से यूरोप में रह रहे सऊदी अरब के तीन राजकुमारों का गायब होना, साथ ही 79 वर्ष की उम्र में किंग बने सलमान ने तत्काल दो ऐसे फैसले लिए जिसने सऊदी अरब की राजनीति को हैरान कर दिया था.

किंग सलमान ने पहला तो अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान को रक्षा मंत्री और मोहम्मद बिन नायेफ को डिप्टी क्राउन प्रिंस बनाने की घोषणा की थी. मोहम्मद बिन नायेफ, सउदी किंगडम के संस्थापक इब्न सउद के ऐसे पहले पोते थे, जो विरासत की क़तार में आगे आए थे. किन्तु फिलहाल देखा जाये तो अरब नगरिकों में, ख़ास कर युवाओं में युवराज मोहम्मद बिन सलमान काफी लोकप्रिय हैं, लेकिन कहा जा रहा कि बुजुर्ग और रूढ़िवादी लोग उन्हें कम पसंद करते हैं. रूढ़िवादियों का मानना है कि वो कम समय में देश में अधिक बदलाव करना चाहते हैं. जिसके गम्भीर परिणाम हो सकते है. 31 अगस्त 1985 को जन्मे युवराज सलमान तत्कालीन प्रिंस सलमान बिन अब्दुल अजीज अल सऊदी की तीसरी पत्नी फहदाह बिन फलह बिन सुल्तान के सबसे बड़े बेटे हैं.

अरब के वर्तमान प्रसंग और इस्लामिक इतिहास पर यदि नजर डाले तो एक बात साफ होती है कि मुसलमान गैर आनुपातिक दृष्टि से तानाशाहों, उत्पीडकों, गैर निर्वाचित राष्ट्रपतियों, राजाओं, अमीरों और अनेक प्रकार के ताकतवर लोगों के शासन से शासित होते आये हैं और यह सत्य भी है. यहाँ तक की गरीब से गरीब और सबसे अमीर देशों में भी इस्लाम अत्यंत कम राजनितिक अधिकारों से जुडा है. अत: इसमें लोकतांत्रिक अधिकारों के विकास की सम्भावनायें हमेशा से ही कमजोर रही है. जिसमें जिम्मेदार खुद इस्लामी धर्मगुरु भी दिखाई देते है. जो लोकतंत्र के प्रति प्रतिक्रिया देते हुए इसे गैर इस्लामिक घोषित करते हैं. हालाँकि प्रिंस सुलेमान ने वर्तमान में महिलाओं के गाड़ी चलाने से लेकर कुछ नये अधिकार देने की घोषणा के साथ इन दिनों नए प्रबंधन में दिखाई दे रहे है.

सऊदी अरब में सख्त इस्लामिक कानून लागू है. इसके तहत हत्या, ड्रग तस्करी, दुष्कर्म जैसे मामलों में मौत की सजा का प्रावधान है. लेकिन 2014 में वहां राजकुमार अल कबीर को मौत की सजा का फरमान सुनाया जाना शाही परिवार के सदस्यों को मौत की सजा मिलना एक दुर्लभ घटना है. इससे पहले शाही परिवार के किसी सदस्य को मौत की सजा का आखिरी मामला साल 1975 में सामने आया था. हालाँकि सऊदी अरब के बारे में कहा जाता है कि वह सर्वाधिक अपारदर्शी और अस्वाभाविक देश है जहाँ पर कोई भी सार्वजनिक फिल्मी थियेटर नहीं है, जहाँ महिलाओं को वाहन चलाने का अधिकार अगले साल से मिलेगा, जहाँ पुरुष महिलाओं के अंतःवस्त्र बेचते हैं, और वहां शासक लोकतंत्र की एक सामान्य सी व्यवस्था का भी विरोध करते हैं. पवित्र शहर मक्का और मदीना पर नियंत्रण, इस्लाम की वहाबी व्याख्या का विस्तार और विश्व के सबसे बडे पेट्रोलियम भाग पर अपना कब्जा बनाये रखना, वहाबीवाद इसकी वैश्विक मह्त्वाकाँक्षा को प्रेरित करता है और तेल की आय इसके उद्यम को आर्थिक सहायता प्रदान करती है

प्रिंस सुलेमान आज अरब में आधुनिकता के साथ सुधार की बाते कर रहे है लेकिन नव सुधारवादी प्रिंस के फैसलों से ऐसा कुछ प्रतीत नहीं हो रहा हैं जबकि इसे अपने मध्यकालीन पूर्वजों से अच्छा करना होगा, और अपने धर्मग्रंथों की व्याख्या वर्तमान समय के अनुसार करनी होगी. यदि प्रिंस अपने मजहब को आधुनिक बनाना चाहते हैं तो उन्हें गुलामी, ब्याज , महिलाओं के साथ व्यवहार, इस्लाम को छोडने के अधिकार के साथ अन्य मामलों में अपने अन्य एकेश्वरवादियों प्रजातांत्रिक राष्ट्रों की तरह आचरण का पालन करना होगा. क्योंकि वर्तमान समय में इस्लाम एक पिछ्डा, आक्रामक और हिंसक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है इसके बाद ही एक सुधरा हुआ इस्लाम उभर सकता है. हालाँकि सऊदी अरब में हालात तेजी से बदल रहे हैं और अरब जगत का सबसे बड़ा देश एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर 85 सालों में अभूतपूर्व हलचल से गुजर रहा है. तीन साल पहले इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि सत्ता के जाने-पहचाने स्तंभों को सार्वजनिक और अपमानजनक ढंग से कार्यालयों से हटाकर हिरासत में लिया जाएगा. युवराज सलमान आज सऊदी युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं, मगर आलोचक कहते हैं कि वह बड़ा दांव खेल रहे हैं, जबकि कुछ कहते है कि इन हिरासतों और राजकुमारों की मौतों को देखकर लगता है जैसे सऊदी अरब भारत की 16 सदी से गुजर रहा हो बस आज साधन बदले है सत्ता पाने की ललक और योजना का ढर्रा पुराना ही दिखाई दे रहा है.

लेख- राजीव चौधरी

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