Categories

Posts

भारत में लम्बे होते जीसस के हाथ

क्या कोई कल्पना कर सकता है कि यूरोप के किसी देश में श्रीरामचन्द्र जी की कोई भव्य और विशालकाय प्रतिमा स्थापित हो सकती है। या वेटिकन सिटी में श्रीकृष्ण का कोई भव्य मंदिर या प्रतिमा का अनावरण हो सकता है? शायद ये बेतुकी कल्पना कही जाएगी क्योंकि ईसाई बाहुल देश और वहां के चर्च इसे कभी भी किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन इसके विपरीत दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में जीसस क्राइस्ट की 114 फुट ऊंची प्रतिमा लगाई जा रही है। कर्नाटक कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायक डीके शिवकुमार इस प्रतिमा को लगाने के लिए जी जान से जुटे है। बताया जा रहा है 114 फिट ऊँची प्रतिमा को करीब 800 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा है।

देखा जाये तो कर्नाटक में जीसस की इस 114 फुट ऊंची प्रतिमा लगाया कोई भक्ति भाव नहीं है। बल्कि एक धार्मिक षड्यन्त्र का हिस्सा नजर आ रहा है, या ये कहे कि इस प्रतिमा के जरिये दक्षिण भारत को ईसाइयत में लपेटने की तैयारी का ये बड़ा हिस्सा है। यानि भारतीय धराधाम से जुड़े महापुरुषों को छोटा करो और जीसस को बड़ा। असल में किसी धर्म या समाज को कमजोर करना है तो सबसे पहले उससे जुड़े महापुरुषों का मजाक बनाया जाता है और लोगों का स्वाभिमान तोड़ा जाता है। यह ऐसा धीमा विष दिया जाता है जिसमें उस समाज से जुड़े लोग अपने ही देश, अपने ही पूर्वज, संस्कृति, भाषा, आस्था, पूजा पद्धति, देवता व आचार विचार एवं स्वयं की जीवन शैली का मजाक बनाने लगते हैं और अपने ही महापुरुषों का मजाक बनाने में उनको अथाह संतुष्टि मिलने लगती है।

भारत में धर्म परिवर्तन कराने वाली ईसाई मिशनरी ऐसे ही योजनाबद्ध तरीके से सनातन धर्म और भारत की जड़ों को काटने का कार्य सदियों से करती आ रही हैं। जिनको समय-समय पर और परिस्थिति के अनुसार राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता रहा है। गन्दी दमनकारी राजनीति और स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने अपने ही राष्ट्र और समाज को बेचने और सांस्कृतिक जड़ों को काटने का काम किया है। धर्म परिवर्तन का ये खेल अब खुलकर सामने आ रहा है। उत्तर भारत में चंगाई सभाओ से लेकर पश्चिम बंगाल, असम, केरल, या फिर तमिलनाडु सहित पूरे दक्षिण भारत में ही नही बल्कि सम्पूर्ण भारत में बड़ी-बड़ी और ईसाई मिशनरियों द्वारा तेजी के साथ अलग अलग रास्तों से अलग अलग तरीकों से धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा है।

भले ही किसी देश के पास जल, थल और वायु तीन तरह की सेनाएं हो। लेकिन यूरोपीय देशों के पास थल सेना, जल, सेना, वायु सेना और चर्च की सेना है। एक वैचारिक हथियार लिए बिशप आर्च बिशप, नन, पादरियों की यह सेना भेजी जाती है। जो स्थानीय लोगों के लिए शिक्षा एवं सेवा के नाम पर जीत का माहौल तैयार करती है और धीरे-धीरे वह समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर लेते हैं। चर्च और षड्यंत्रकारियों का मकड जाल इतनी धूर्तता से अपना काम स्थानीय बौद्धिक वर्ग में करता है की वहाँ की संस्कृति कब नष्ट हो गयी पता ही नही चलता।

आप स्वयं समझिये 800 करोड़ की लागत से बनने वाली यीशु की यह विशालकाय प्रतिमा के लिए धन कहाँ से आ रहा है? कर्नाटक के धर्मान्तरित स्थानीय इसाई तो इतना धनाड्य नहीं है फिर इस प्रतिमा के लिए धन का स्रोत क्या है? असल में ईसाइयत का खेल खेलने के लिए विदेशों से हजारों करोड़ रुपया थोक के भाव भारत भेजा जाता है सिर्फ इतना ही नहीं, इसके लिए भारत मे ही बैठे हिंदुत्व विरोधी और राष्ट्र के दुश्मनों को धन उपलब्ध कराते हैं। धर्मान्तरण के लिए सबसे पहले निशाना बनाया जाता है गरीब दलित और आदिवासियों को जिनकी गरीबी और अशिक्षा को हथियार बना कर, धन का लालच देकर, बहला फुसलाकर कर हाथों में बाइबल और क्रॉस थमा दिया जाता है और उनको अपनी ही संस्कृति व धर्म का दुश्मन बना दिया जाता है। आप कह सकते हैं कि धीरे धीरे उनको मानसिक गुलाम बना दिया जाता है। इन सबके लिए ये ईसाई मिशनरी तरह तरह की पुस्तकों, प्रचार माध्यमों, फिल्मों कार्यक्रमों व चर्च में होने वाली नियमित बैठकों के साथ साथ स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों का सहारा लेते हैं और नितांत योजनाबद्ध तरीके से लोगों के दिमाग मे उनके ही गौरव पूर्ण इतिहास, देवी देवताओं तीर्थों और महापुरुषों के प्रति विष भरने के लिये प्रशिक्षण सत्र चलाये जाते हैं और वो इस कार्य मे सफल भी हैं।

एक समय से जातिवाद भारत की कमजोरी रहा है और षड़यंत्रकारी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर दलित कार्ड खेलकर उनको हिन्दुओं से अलग धर्म वाला बताने में लगे हैं। पिछड़े एवं नासमझ तथाकथित दलितों का दिमाग परिवर्तन करके उनको नास्तिक बनाया जाता है फिर कैसे भी लालच देकर ईसाई बना लिया जाता है।

प्रत्येक राष्ट्र की एक धर्म और आत्मा होती है और भारत का धर्म वैदिक और आत्मा सनातनी है जिनको नष्ट करने के प्रयास किये जा रहे हैं। विदेशों में बैठे धर्म के व्यापारी खुलकर व्यापार कर रहे हैं और भारत को धर्म परिवर्तन की मंडी बनाया हुआ है। जगह जगह धर्म परिवर्तन की दुकानें चल रही हैं। जिसमें हमारी चुप्पी, लचर कानून व्यवस्था और राजनीतिक इक्षाशक्ति की कमी के कारण हम उनका शिकार बनते जा रहे हैं। स्थिति काफी हद तक बिगड़ चुकी है, धर्म परिवर्तन के ठेकेदार इतने कमजोर नहीं रहे कि हम तुरंत राष्ट्र को खंडित करने वाले इस षड़यंत्र को रोक पाएंगे। इसके लिए लड़ाई लड़नी पड़ेगी सोई हुई सरकारों को आगाह करना पड़ेगा। अपनी कमियों का भी आकलन करना पड़ेगा। छुआ छूत ऊंच नीच और अंधविश्वास पूर्णतया समाप्त करके नई पीढ़ी में समानता और एकता की भावना जगानी होगी। आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय और गुलाम न बने इसके लिए स्वयं को जगाने की आवश्यकता है। वरना ऐसी प्रतिमाये खड़ी होती चली जाएगी और लोगों की आस्था इस भारतीय धराधाम के प्रति न होकर वेटिकन के प्रति हो जाएगी।

विनय आर्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *