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मन की शांति के गाय को गले लगाते विदेशी

अगर देखा जाये तो हमारे देश में राजनीति की मुलाकात गाय से रोजाना होती ही रहती है, बयानों में, पोस्टरों में, फतवों में, नारों में, बहस में, हम वो देश है जो गाय को माता कहते है लेकिन गाय की कोई सुध शायद कभी ली जाती हो. लेकिन सब जगह ऐसा नहीं है पश्चिम के देशों में आजकल गाय को गले लगाने का चलन चल रहा है..

साल 2017 में कोलकाता, में एक एनजीओ गो सेवा परिवार ने एक प्रतियोगिता शुरू की थी इस प्रतियोगिता को नाम दिया था सेल्फी विद ए काऊ इस प्रतियोगिता का एक सन्देश था कि लोगों में गाय के महत्व के प्रति जागरुकता पैदा हो लोग गाय के महत्व को जाने सोचे आखिर क्यों दुनिया भर के इतने जीव जंतुओं पशु पक्षियों में गाय को ही माता क्यों कहा गया. खैर सोशल मीडिया पर सेल्फी का क्रेज रहता तो हजारों लोगों ने गाय के साथ सेल्फी लेकर इस प्रतियोगिता में भाग भी लिया था.

आज इस भाग दौड़ भरे जीवन में हर कोई खुशियों की तलाश और मन की शांति चाहता है एक आम इन्सान एक अपनेपन का अहसास चाहता है इसी कारण अब नीदरलैंड्स की अपना ख्याल रखने की एक परंपरा और सेहत के मामले में दुनिया का नया ट्रेंड बन रही है. वहां की स्थानीय भाषा में इसे श्काऊ नफलेनश् कहते हैं जिसका मतलब है गायों को गले लगाना. ये परंपरा गायों से सटकर बैठने के दौरान मिलने वाली मन की शांति पर आधारित है. इसका मतलब है कि गाय को गले लगाओ और आराम करो.

ये चलन अब इतना बढ़ चूका है कि लोग गायों को गले लगाने के लिए एक फार्म हाउस में जाते हैं और वहां एक गाय के साथ घंटों बैठे रहते हैं, लोगों का कहना है कि इससे उन्हें मानसिक शांति मिलती है, तनाव दूर होता और वो स्वस्थ रहते है, इस वजह से अब ये परम्परा नीदरलैंड के बाद धीरे-धीरे यूरोप के कई अन्य देशों में लोकप्रिय हो रही है, विशेषज्ञ इसे गाय चिकित्सा भी बता रहे हैं. कि गाय इन्सान की तरह संवेदनशील होती है उसमें भावनाएं पाई जाती हैं, अगर कोई व्यक्ति उनसे जुड़ता है उनके साथ बैठता है तो वह खुद को रिलेक्स महसूस करता है, गाय के साथ रहने से हमें अकेलापन महसूस नहीं होता और कुछ मनोचिकित्सक तो यहाँ तक का दावा कर रहे है कि बच्चों को जिम्मेदार महसूस कराने के लिए आप घर में गाय जरुर रखें इससे बच्चों के स्वभाव में विनम्रता आती है.

अब इस काउ नफलेन थेरेपी होता क्या है कि लोग गाय के साथ सटकर बैठते है उसे गले लगाते है अगर गाय पलटकर आपको चाटती है तो वो बताती है कि आपके और उसके बीच विश्वास कितना गहरा है. गाय के शरीर का गर्म तापमान, धीमी धड़कनें और बड़ा आकार उन्हें सटकर बैठने वालों को शांति का अहसास देता है. ये एक सुखदायक अनुभव होता है. यही नहीं इससे गायों को भी सुखद अहसास होता है.

लेकिन बात यहाँ तक सिमित नहीं है क्योंकि अगर हम ऐसा किसी अन्य जानवर कुत्ते बिल्ली घोड़े से साथ करें तो वो भी ऐसा कुछ अहसास दे सकता है इसी कारण डॉक्टर कह रहे है कि गायों को गले लगाने से मनुष्यों के शरीर में ऑक्सिटोसिन निकलता है और इससे उन्हें अच्छा अहसास होता है. ये हार्मोन अच्छे सामाजिक संपर्क के दौरान निकलता है. माना जाता है कि ऑक्सिटोसिन संतुष्टी की भावना लाता है, तनाव कम करता है. करीब एक दशक पहले नीदरलैंड्स के ग्रामीण इलाकों में गाय के साथ समय बिताने की ये संस्कृति शुरू हुई थी.

जो एक एक बड़े अभियान का हिस्सा बन गयी है जिसके तहत लोगों को प्रकृति और देसी जिंदगी के क़रीब लाया जा रहा है.अब तो रोटरडेम, स्विट्जरलैंड और यहां तक कि अमरीका के भी फार्म लोगों को गायों को गले लगाने का अनुभव दे रहे हैं. अब ऐसा भी हो सकता है कि डॉक्टर तनाव के शिकार लोगों को गायों के साथ समय बिताने के लिए कहें. ये चीजें अब यूरोपीय देशों में हो रही हैं, यह भारत में सदियों पुरानी परंपरा है, पहले हर घर में एक गाय थी, हमारे देश में गायों को पालने और उनके साथ रहने की संस्कृति बहुत प्राचीन है, यहाँ पहले लोग गाय को रोटी देकर ही निवाला मुंह में लेते थे हालाँकि अब सब कुछ बदल गया है एक समय था जब कुत्ते सड़कों पर थे और गाय घरों में अब कुत्ते घरों और महंगी गाड़ियों में है और गाय सड़कों पर अपना अस्तित्व तलाश कर रही है. देश की राजनीति कभी चुनाव के टाइम पर गाय से सींग उधार ले गई थी, फिर उसने वे सींग वापस ही नहीं किए.. तबसे गाय तो निहत्थी हो गई और राजनीति मरखनी.. लेकिन चलो आज शुक्र है कि जिन अंग्रेजों ने भारत में गौवध को बढ़ावा दिया, आज वो खुद गाय की कीमत समझकर उन्हें गले लगा रहे है.

Rajeev Choudhary

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