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यही सवाल तो स्वामी दयानन्द जी ने भी पूछा था!

अगस्त 2013 नोएडा के कादलपुर गांव में एक मस्जिद की दीवार गिराने के आरोप में एक महिला एएसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित किया गया था। कारण दुर्गा नागपाल ने ग्राम समाज की भूमि पर अवैध ढं़ग से बन रही एक मस्जिद गिरा दी थी। इस निलंबन ने इतना तूल पकड़ा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी तक को दखल देना पड़ा था। तब कथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने दुर्गा के निलंबन को सही ठहराया था। सच लिखे तो उस अतिक्रमण को जायज और एक अधिकारी के फर्ज को नाजायज मान लिया गया था।

इसके कई वर्ष बीत जाने के बाद अब हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने सवाल किया है कि ‘‘क्या अतिक्रमण वाली जगह से की गई प्रार्थना ईश्वर सुनते हैं’’? हाईकोर्ट ने यह सवाल दिल्ली के करोल बाग में लगी विशाल हनुमान मूर्ति और उसके आस-पास हुए अतिक्रमण को लेकर पूछा है। करोल बाग में लगी यह मूर्ति 108 फीट ऊंची है। कोर्ट ने पिछले महीने भी प्रशासन को इस मूर्ति को एयरलिफ्ट कराकर दूसरी जगह ले जाने का सुझाव दिया था।

दरअसल जो सवाल आज दिल्ली हाईकोर्ट ने पूछा है यही सवाल स्वामी दयानन्द सरस्वती जी पूछ रहे थे! कि क्या बुत, पुतले और मूर्ति- मंदिर या मस्जिद किसी की प्रार्थना सुनते हैं? लेकिन यह भारत देश है, बड़ी-बड़ी विशालकाय मूर्तियों और मस्जिदों का, अन्धविश्वासों और पाखण्डों का इसी कारण यहाँ प्रार्थनाओं और अजानों की आवाजों पर अक्सर गम्भीर सवाल आस्थाओं के नाम पर दब जाते हैं। इस वजह से इन दिनों धार्मिक स्थल अवैध निर्माण और अतिक्रमण का जरिया बन चुके हैं। लेकिन हद तब हो जाती है जब यह खेल धर्म के नाम पर खेला जाता है। भले ही संविधान ने भारत के सभी नागरिकों को समान माना हो पर कई बार ऐसा लगता है कि सरकारों के पास हिन्दुओं के लिए अलग कानून हैं और मुसलमानों के लिए अलग।

यदि इस प्रसंग में उदाहरण स्वरूप थोड़ा पीछे नजर डालें तो साल 2013 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक याचिका  पर सुनवाई करने के बाद आदेश दिया था कि दिल्ली के 40 अवैध धार्मिक स्थलों को गिराएं और इसकी रपट न्यायालय को दें इन 40 में से 5 मस्जिदें, 1 मजार, 2 चर्च, 2 गुरुद्वारे, और शेष हिन्दू और जैन समाज के मन्दिर थे। जिन स्थलों को न गिराने की सूची में रखा गया है उनमें 17 मस्जिदें, 5 गुरुद्वारे, 1 चर्च और बाकी हिन्दू धार्मिक स्थल थे। न तोड़ने वाली सूची में ज्यादातर मस्जिद थीं। इस सूची का विश्लेषण करने से साफ हो गया था कि सरकार बहुसंख्यक वर्ग के कथित अवैध धार्मिक स्थलों को तोड़ने के लिए तो तैयार है पर वह मुसलमानों के अवैध मजहबी स्थलों को गिराने के लिए तैयार नहीं हैं। बस यहीं से एक खाई खड़ी होती है जो न्यायप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़े करती है।

प्रश्न खड़ा होता है कि सरकार को केवल अवैध मन्दिर ही क्यों दिखते हैं, वे अवैध मस्जिदें और मजारें क्यों नहीं दिखती हैं जो बीच चौराहों या सड़कों के किनारे तेजी से सरकारी जगह घेर कर अपना विस्तार कर रही हैं। संसद के आसपास भी तेजी से मजार और मस्जिदें बन रही हैं। दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस में कई अवैध मस्जिदें और मजारें हैं। पूर्वी दिल्ली में देखें तो भजनपुरा के मेन रोड के बीचो-बीच मजार बनी है। हसनपुर डिपो के सामने व्यस्त स्वामी दयानंद मार्ग पर मजार है, वर्षो बाद भी इसे यहां से नहीं हटाया जा सका। पूरी दिल्ली में अवैध मजारों और मस्जिदों की एक तरह से बाढ़ आई हुई है पर उनकी ओर से कोर्ट ने अपनी आंखें बंद कर रखी हैं। कौन नहीं जानता कि लालकिले के सामने सुभाष पार्क में 24 घंटे के अन्दर एक मस्जिद खड़ी हो गई थी। उच्च न्यायालय ने इस मस्जिद को गिराने का आदेश भी दिया था। किन्तु उस समय दिल्ली सरकार की कृपा से यह मस्जिद बचा ली गयी थी।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ मस्जिदें ही अवैध है बल्कि इतनी ही तादाद में मंदिर व अन्य समुदायों के धार्मिक स्थल भी मौजूद हैं। खिचड़ीपुर इलाके में जहां कई घरों के बीच थोड़ी-थोड़ी दूरी पर छोटे पार्कों के लिए योजना के अनुरूप जगह छोड़ी गई थी, वहां कई हिस्सों में उस स्थान पर सभी देवी-देवताओं के मंदिर बना दिए गए हैं। ये सिर्फ अकेली दिल्ली का हाल नहीं है यदि यहाँ से बाहर निकलकर उत्तरप्रदेश का रुख करें तो अमूमन ऐसे ही हालत हैं। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताते हुए उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक भूमि, पार्क और सड़क किनारे 38,355 धार्मिक स्थल अवैध रूप से मौजूद हैं। राजधानी लखनऊ में ही 971 गैर कानूनी धार्मिक स्थल हैं।

दरअसल यह कोई धार्मिक प्रक्रिया नहीं है इसके कई कारण अहम् बिन्दुओं में छिपे हैं एक तो यह सरासर राजनीति का हिस्सा है जिससे धर्म को जोड़ दिया जाता है  दबे शब्दों में ही सही कहा तो यह भी जाता है कि कुछ माफिया जमीन कब्जाने के लिए वहां पहले मंदिर, मस्जिद या मजार बनवाते हैं। धीरे-धीरे वह जगह धार्मिक स्थल का दर्जा पा जाती है। वोटों के सौदागर और नेताओं के दबाव के बीच अधिकारी चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते। जिस कारण अशिक्षित पिछड़े गरीब कमजोर लोगों की तरक्की को रोकने का यह धार्मिक षडयंत्र सफल हो जाता है। दूसरा परिस्थितिवश यदि कोई सरकार तोड़ना भी चाहे तो धर्म और मजहब के नाम पर संवेदनशील लोग इसे अपने धार्मिक गौरव पर आघात समझते हैं। तीसरा जब देश के बड़े नेतागण ही जानते हैं कि वोट मंदिरों और मस्जिदों के घालमेल से आते हैं तो इनके अत्यधिक निर्माण को नाजायज कौन कहेगा?

राजीव चौधरी

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