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यह एकता का समय है|

यह एकता का समय है . सभी प्रकार के विवादों को तिलांजलि देकर आर्यजन अभूतपूर्व एकता का प्रदर्शन करे..

अभिव्यक्ति की तात्पर्य कभी नहीं हो सकता कि कोई स्वतंत्रता का यह समाज में घृणा के बीज बोये .तथाकथित संत रामपाल अवैध व अज्ञात रूप से अर्जित धन का सहारा लेकर वर्षों से प्रिंट मीडिया में पूरे पूरे पेज के विज्ञापन देकर यही कार्य कर रहा है. वहीं इलेक्ट्रोनिक मीडिया व इंटरनेट का सहारा लेकर युग प्रवर्तक , आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द, जिनके कि समाज व राष्ट्र को अतुलनीय योगदान को विश्व भर के मनीषी श्रद्धा से नमन करते हैं के विरुद्ध उनके अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के उद्धरणों को संदर्भ से काटकर कुटिलता पूर्वक निर्वचन कर जानबूझकर उनके निर्मल व यशस्वी चरित्र पर कीचड उछालने का असफल प्रयास कर रहा है. विचारों मे. मतभेद होने से हमें कोई परेशानी नहीं है परन्तु इन मतभेदों का निराकरण परस्पर प्रीतिपूर्वक बैठकर सत्य अनुसंधान की अभिलाषा के साथ करना श्रेयस्कर है. परन्तु रामपाल एक ऐसा व्यक्ति है जिसका दूर –दूर तक भी सत्य से कोई वास्ता नहीं है . वह बस समाज मे घृणा फैलाना चाहता है . हर चीज की एक सीमा होती है . अब इस व्यक्ति ने सारी हदों को पार कर लिया है. आर्य समाज का सिद्धांत है कि किसी को छेडो नहीं पर कोई छेड़े तो उसे छोडो नहीं . हम धैर्य , शान्ति के उपासक हैं पर कायर नहीं. आर्य समाज का इतिहास राष्ट्र और समाज के लिए बलिदान का इतिहास रहा है, यह किसी से छिपा नहीं . हैदराबाद, गो रक्षा तथा हिन्दी सत्याग्रह किसे याद नहीं . हम शस्त्र नहीं वरन शास्त्र मे. विश्वास रखते हैं. हम विधि को भी सर्वोच्च मानते हुए माननीय उच्च न्यायालय का सम्मान करते है. हम शांतिपूर्ण प्रकार से धरना देकर केवल उस व्यक्ति को कहना चाह रहे थे कि वह अपनी हरकतें बंद करे .

करोंथा के बाहर जो निर्मम दमन कांड हुआ उसके लिए प्रशासन और पुलिस जिम्मेदार है ..

यज्ञ जैसे सात्विक कर्म के पश्चात तपस्वी आचार्य बलदेव जी को अकारण गिरफ्तार करना जानबूझकर भीड़ में आक्रोश पैदा करने का कारक बना . पुलिस व प्रशासन को यह समझना चाहिए कि दमन से सत्याग्रह कभी नहीं दबाये जा सके हैं और अब भी यही होगा. अच्छा होगा कि ऐसा कार्य न करे. कि विश्व भर के आर्यों को रणभेरी छेड़नी पड़े . शासक का कार्य है कि दुष्टों को दण्ड और श्रेष्ठों का रक्षण करे. पर यहाँ उलटा हो रहा है . इस सब विवाद का जो कारण है उसे प्रश्रय मिल रहा है तथा अपनी श्रेष्टता केलिए विख्यात आर्यों को दमन चक्र में पिसना पड रहा है. इस नीति को तुरंत बंद कर रामपाल से प्रशासन यह बांड भरवाए कि वह विश्व्वंध्य महर्षि दयानन्द व अन्य श्रेष्ठ जनो के प्रति कुत्सित चाल चलनी बंद करे. शहीद युवा अपने परिवार की आँखों का तारा संदीप का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा . अगर सरकार अपने कर्त्तव्य का निर्वहन नहीं करती है तो उसे एक अभूतपूर्व सत्याग्रह का सामना करना पड़ सकता है.

संदीप तो इतिहास में अपना नाम अमर कर गया और आर्यों के नाम एक सन्देश संकेतित कर गया कि बहुत होली आपस की गुटबाजी , इस पार लगाम लगाओ . हमारा एक गुरु है एक परमात्मा है एक संगठन प्यारा आर्य समाज है अत: एक ही सार्वेदेशिक हो. अगर संदीप को श्रद्धांजलि देना चाहते हो तो समस्त क्षुद्र स्वार्थों का परित्याग कर तुरंत एक संगठन के साधक बन जाय.

जहां तक रामपाल का प्रश्न है तो हमें तो यह मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति प्रतीत होता है. सत्यार्थ प्रकाश जैसे अनुपम ग्रन्थ के स्वाध्याय से अपने जीवन का निर्माण न कर टूटे संदर्भों को प्रस्तुत कर जनता में भ्रम फैलाने का कुत्सित काम करने वाला दुर्भाग्यशाली नहीं तो और क्या है. जिन्होंने रामपाल को सूना है वे जानते हैं कि जो आदमी हिन्ढी भी ठीक से उच्चारित नहीं कर सकता वह वेदों का ज्ञाता होने और दयानन्द जैसे अपूर्व पंडित की बातों को समझने मे क्योंकर समर्थ हो सकता है. निष्कलंक दयानन्द के जीवन में कलंकदर्शी अभागा ही है. हमारा अटल विश्वास है कि प्रभु इसका दण्ड उसे देंगे ही पर वह यह भली-भाँती समझ ले कि आर्य-जन भी चुपचाप नहीं बैठेंगे .

हमारा हरयाना सरकार तथा भारत सरकार से यही निवेदन है कि इस व्यक्ति के निंदा-अभियान पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाकर समाज में शान्ति स्थापित करे . शहीद संदीप तथा दो अन्य मृतकों तथा अन्य घायलों को समुचित मुआवजा दे अन्यथा न्याय के अभाव मे आर्य समाज को राष्ट्रव्यापी आंदोलन न छेडना पड़ जाय .


Ashok Arya
Acting President
Satyarth Prakash Nyas,Udaipur

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