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वक्फ बोर्ड या जमीन हथियाने का एक उपकरण?

तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली गाँव का एक गरीब किसान राजगोपाल बेटी की शादी के लिए अपनी जमीन बेचने के मामले में तहसील गया था। वहां जाकर उसे पता चला कि यह जमीन उसकी नहीं है बल्कि गांव की पूरी जमीन पर वक्फ बोर्ड का कब्ज़ा है। विडम्बना ये देखिये गाँव में 1500 साल पुराना मंदिर और उसकी भी जमीन है लेकिन इस जमीन पर भी वक्फ बोर्ड का दावा है कि जमीन वक्फ की। ये सिर्फ एक गांव का मामला नहीं है, बल्कि अकेले त्रिची जिले में कम से कम 6 ऐसे गांव हैं, जिन्हें वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित किया हुआ है।

मार्च 2022 लोकसभा में वक्फ बोर्ड की सारी जमीन का ब्योरा आनलाइन प्रणाली से सार्वजनिक करने की मांग उठी थी कि ये पता चल जायेगा कि कहाँ-कहाँ किस किस राज्य में वक्फ बोर्ड के पास कितनी संम्पति है। साथ ही लोकसभा में वक्फ एक्ट 1995 के वक्फ संशोधन एक्ट 2013 की तरफ ध्यान देने की सिफारिश भी की थी। आकंड़ों को देखें तो आज यह हैरानी की बात है कि सेना व रेलवे विभाग के बाद वक्फ बोर्ड प्रापर्टी के मामले में तीसरे स्थान पर है।

लोकसभा में उठी इस आवाज के पीछे का पूरा समीकरण देखें तो इससे पहले 28 दिसम्बर 2021 को जब भगवान श्रीक्रष्ण की नगरी द्वारिका की भूमि पर वक्फ बोर्ड की दावेदारी हुई तब प्रतिदावों के बीच राज्यसभा सदस्य परिमल नथवानी ने बोर्ड के दावे पर आश्चर्य जताया था कि आखिर कृष्ण नगरी में वक्फ बोर्ड जमीन की मालिकाना दावा कैसे कर सकता है? लेकिन दावे बराबर चालू है जिसका परिणाम ये है वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार इस वक्त वक्फ बोर्ड्स के पास कुल 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं, जो आठ लाख एकड से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। बंटवारे के बाद देश में जमीन उतनी ही है, जितनी पहले थी। फिर वक्फ बोर्ड की जमीन कैसे बढ़ रही है ये सवाल भी सभी के सामने है?

दरअसल जितनी तेजी से सरकार हाइवे बना रही है वहां उतनी ही तेज गति से सड़कों के किनारे मजारें बनाई जा रही है। अगर पिछले 7 साल का अनुमानित आंकड़ा ले तो देश में भर करीब 2 लाख नई मजारें पैदा हो गयी। साल 2024 तक 2 लाख मजार और बढ़ने का अनुमान है। कारण एक मुसलमान सड़क के किनारे किसी सरकारी या निजी जमीन पर कहीं कोई मस्जिद या मजार बनाकर बैठ जाये तो वह कुछ समय बाद वह जगह वैध हो ही जाती है। ऐसा वक्फ कानून-1995 के 2013 के संशोधन के कारण हो रहा है। इसलिए कोई मुसलमान कहीं भी अवैध मजार या मस्जिद बना लेता है और एक अर्जी वक्फ बोर्ड में लगा देता है. बाकी काम वक्फ बोर्ड करता है। यही कारण है कि आज पूरे भारत में अवैध मस्जिदों और मजारों का निर्माण बेरोकटोक हो रहा है। और ये निर्माण कार्य एक षड्यंत्र को सफल करने के लिए हो रहा है और वह षड्यंत्र है अधिक से अधिक जमीन पर कब्जा करना।

इसी साल जुलाई 2022 में खबर आई थी कि उत्तर प्रदेश शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड की मिलीभगत से लखनऊ के एक शिवालय को वक्फ सम्पत्ति के रूप में दर्ज करवा दिया गया था। जबकि 1862 के राजस्व रिकार्ड में हिन्दू शिवालय दर्ज है, और ये वक्फ बोर्ड 1908 में बना था लेकिन फिर भी जमीन वक्फ की हो गयी।

यही नहीं मई 2020 में जिंदल ग्रुप की एकल खनन साइट पर मस्जिद नुमा एक छोटी सी दीवार बनाकर राजस्थान वक्फ बोर्ड ने ये कहकर अपना हक़ जता दिया था कि ये जमीन वक्फ बोर्ड की है। मामला जब जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ के सामने पहुंचा तो सर्वाच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि एक जर्जर दीवार या एक मंच को नमाज़ अदा करने के इरादे से मजहबी स्थान (मस्जिद) का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

ये विवाद हल हो गया क्योंकि वक्फ के सामने मुकदमा लड़ने वाली एक बड़ी फर्म थी। अगर ये विवाद किसी गरीब किसान के साथ होता तो शायद वह धनवान वक्फ के सामने ना टिक पाता और शायद अपनी जमीन छोडनी पड़ती।

पिछले दिनों एक ऐसा ही मामला दिल्ली के महरौली क्षेत्र का सामने आया था यहां के वार्ड नं. 8 में एक भूखंड किसी भार्गव नाम के व्यक्ति का है, जिसकी कीमत करोड़ों रु. में है। उन्होंने 1987-88 में इस भूखंड को एक मुसलमान से खरीदा था। कुछ समय पहले भूखंड की घेराबंदी की जाने लगी तो दिल्ली वक्फ बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष और आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान ने उस भूखंड के बीच में मौजूद एक पुराने ढांचे को मजहबी स्थल बताना शुरू किया और कई बार जबरन उस पर कब्जा करने का भी प्रयास किया। मुसलमानों की भीड़ के साथ खूब हंगामा किया. अभी यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है।

केवल इतना भर ही नहीं अब ये लोग इस विशेष षड्यंत्र के एतिहासिक इमारतों भवनों के आसपास नमाज पढने लगे है। कभी किसी पार्क में कभी किसी खाली पड़ी जमीन पर अगर वहां कुछ दिन बेरोक टोक नमाज पढ़ ली तो फिर वक्फ उस जमीन पर भी अपने कब्जे का दावा ठोक देगा। यही कारण है कि कुतुब मीनार जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है लेकिन मुसलमान इस पर कब्जा करने के लिए वहां नमाज पढ़ने लगे हैं।

अब इसमें भी दो बोर्ड है, सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति अलग है और शिया वक्फ बोर्ड की अलग। शायद वोट बैंक की राजनीति ने वक्फ बोर्ड को इतनी ताकत दे दी है कि अब वह जमीन हथियाने का एक उपकरण बन चुका है। साल 2013 में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने वक्फ कानून-1995 में संशोधन कर उसे ऐसे अधिकार दे दिए, जो भारत को इस्लामीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ा रहे हैं। क्योंकि धारा 40 में यह भी प्रावधान है कि किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उसके मालिक को सूचित करना जरूरी नहीं है। यानि आपके चबूतरे पर मजाक में भी बनी मजार या चुपके से उस पर लिखा 786 वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जा सकता है। बाद में असली मालिक वक्फ काउंसिल में मुकदमा लड़ता रहता है। देखा जाता है कि काउंसिल ज्यादातर मामलों में वक्फ बोर्ड का ही साथ देती है।

दूसरा इसकी धारा 52 में लिखा है कि यदि किसी की जमीन, जो वक्फ में पंजीकृत है, उस पर किसी ने कब्जा कर लिया है तो वक्फ बोर्ड जिला दंडाधिकारी से जमीन का कब्जा वापस दिलाने के लिए कहेगा। कानून के अनुसार जिला दंडाधिकरी 30 दिन के अंदर जमीन वापस दिलवाएगा। यानी वक्फ बोर्ड तो अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए अनेक कानूनों को लेकर बैठा है, लेकिन यदि वक्फ बोर्ड ने किसी जमीन पर कब्जा कर लिया तो उसे वापस लेना आसान नहीं होता है। इसे आसान शब्दों में ऐसे समझे अगर आपकी जमीन को वक्फ बोर्ड ने अपने कागजों में अपने नाम लिख लिया तो वो सम्पत्ति उसकी और जो सम्पत्ति वक्फ के पास चली गयी वो आपकी हो नहीं सकती। इसे किस्म का ब्लैक होल भी कहा जा सकता है जो इसके अन्दर गया वो इसका हो जाता है।

अगर इस कानून को जल्द ही समाप्त नहीं किया तो यह कानून ही देश में शरियत की राह आसान करेगा। क्योंकि पटवारी यानि लेखपाल थोड़े से पैसों के लालच में शायद किसी भी जमीन को वक्फ की जमीन दर्शा देगा और असली मालिक सालों साल मुकदमा लड़ता रहेगा। आज तमिलनाडु के हिन्दू बाहुल्य गाँव पर वक्फ ने अपना दावा ठोका है कल शायद जब देश की जमीन के एक बड़ा हिस्सा इनके हाथ आ जायेगा। तब देश पर भी दावा ठोक देंगे क्योंकि यह जान गये है कि हमारे लचीले संविधान से ही इनकी शरियत हुकूमत का मार्ग आसान होगा। कहावत भी है कि जिसकी जमीन उसी का देश। आज इसका शिकार तमिलनाडु के किसान है कल आपका भी नंबर हो सकता है।

By-Rajeev Choudhary

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