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वैदिक हिन्दू नववर्ष क्यों मनाएं

हम विक्रमी संवत् 2074 को पीछे छोड़ नये वर्ष 2075 में प्रवेश कर चुके हैं. भारतीय नववर्ष का पहला दिन यानी सृष्टि का आरम्भ दिवस, युगाब्द और विक्रम संवत् जैसे प्राचीन संवत का प्रथम दिन, श्रीराम एवं युधिष्ठिर का राज्याभिषेक दिवस, आर्य समाज का स्थापना दिवस, उज्जयिनी सम्राट- विक्रामादित्य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्भ. वास्तव में ये वर्ष का सबसे श्रेष्ठ दिवस है. हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है. ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टिनिर्माण प्रारम्भ किया था, इसलिए यह सृष्टि का प्रथम दिन है. इसकी काल गणना बड़ी प्राचीन है. सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक 1 अरब, 96 करोड़, 08 लाख, 53 हजार, 119 वर्ष बीत चुके हैं.

नववर्ष प्रारम्भ यानि के नूतन वर्ष का शुभारम्भ. किन्तु प्रतिवर्ष 1 जनवरी को पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित लोगों द्वारा मनाया जाने वाला तथाकथित नववर्ष इसके विपरीत प्रतीत होता है. क्योंकि इसमें नूतन कुछ नहीं होता. नूतन का अर्थ है कुछ नया चैत्र माह मतलब हिन्दू नव वर्ष के शुरू होते ही रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते है.. पेड़ों पर नवीन पत्तियों और कोपलों का आगमन होता है..पतझड़ ख़तम होता है और बसंत की शुरुवात होती है. प्रकृति में हर जगह हरियाली छाने लगती है. बर्फ से जमी झीलों से बर्फ की परत हटने लगती है. मौसम के साथ शरीर के रक्त में बदलाव होता है. एक किस्म से कहे तो प्रकृति का नवश्रृंगार होता है. किसानो के लिए यह नव वर्ष के प्रारम्भ का शुभ दिन माना जाता है. इस तरह चैत्र प्रतिपदा का यह पहला दिन कई मायनों में महत्व्पूर्ण है.

कहते हैं आज का यूरोप विज्ञान को लेकर आगे बढ़ा. विज्ञान के आधार को ही उसने अपनाया है. लेकिन पश्चिम के लोग सृष्टि के निर्माण उससे जुड़े भारतीय आध्यात्मिक दर्शन को स्वीकार न कर अपने धार्मिक पूर्वाग्रह का परिचय देते नजर आते हैं. चाहें उसमें डार्विन के विकासवाद का सिद्धांत हो या अन्य किसी के अपने काल्पनिक सिद्धांत. किन्तु सृष्टि के निर्माण से जुड़े अहम वैदिक बिंदु को ईसायत पर खतरा मानते हुए स्वीकारने में हिचक रखते है. अन्य संस्कृतियों के वैज्ञानिक तथ्यों को हमारी संस्कृति ने सदैव आत्मसात् किया है. किन्तु अध्यात्म की योग्य रीति से शिक्षा नहीं दिए जाने के कारण अधिकांश दुष्परिणाम हमारा सांस्कृतिक पतन के रूप में हुआ है जिसका नतीजा एक जनवरी को हमने नया वर्ष मान लिया. साथ ही पश्चिमी संस्कृति को आदर्श

हम विक्रमी संवत् 2074 को पीछे छोड़ नये वर्ष 2075 में प्रवेश कर चुके हैं. भारतीय नववर्ष का पहला दिन यानी सृष्टि का आरम्भ दिवस, युगाब्द और विक्रम संवत् जैसे प्राचीन संवत का प्रथम दिन, श्रीराम एवं युधिष्ठिर का राज्याभिषेक दिवस, आर्य समाज का स्थापना दिवस, उज्जयिनी सम्राट- विक्रामादित्य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्भ. वास्तव में ये वर्ष का सबसे श्रेष्ठ दिवस है. हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है. ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टिनिर्माण प्रारम्भ किया था, इसलिए यह सृष्टि का प्रथम दिन है. इसकी काल गणना बड़ी प्राचीन है. सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक 1 अरब, 96 करोड़, 08 लाख, 53 हजार, 119 वर्ष बीत चुके हैं.

नववर्ष प्रारम्भ यानि के नूतन वर्ष का शुभारम्भ. किन्तु प्रतिवर्ष 1 जनवरी को पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित लोगों द्वारा मनाया जाने वाला तथाकथित नववर्ष इसके विपरीत प्रतीत होता है. क्योंकि इसमें नूतन कुछ नहीं होता. नूतन का अर्थ है कुछ नया चैत्र माह मतलब हिन्दू नव वर्ष के शुरू होते ही रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते है.. पेड़ों पर नवीन पत्तियों और कोपलों का आगमन होता है..पतझड़ ख़तम होता है और बसंत की शुरुवात होती है. प्रकृति में हर जगह हरियाली छाने लगती है. सर्दी में बर्फ से जमी झीलों से बर्फ की परत हटने लगती है. शरीर के रक्त में बदलाव होता है. एक किस्म से कहे तो प्रकृति का नवश्रृंगार होता है. किसानो के लिए यह नव वर्ष के प्रारम्भ का शुभ दिन माना जाता है. इस तरह चैत्र प्रतिपदा का यह पहला दिन कई मायनों में महत्व्पूर्ण है.

कहते हैं आज का यूरोप विज्ञान को लेकर आगे बढ़ा. विज्ञान के आधार को ही उसने अपनाया है. लेकिन पश्चिम के लोग सृष्टि के निर्माण उससे जुड़े भारतीय आध्यात्मिक दर्शन को स्वीकार न कर अपने धार्मिक पूर्वाग्रह का परिचय देते नजर आते हैं. चाहें उसमें डार्विन के विकासवाद का सिद्धांत हो या अन्य किसी के अपने काल्पनिक सिद्धांत. किन्तु सृष्टि के निर्माण से जुड़े अहम वैदिक बिंदु को ईसायत पर खतरा मानते हुए स्वीकारने में हिचक रखते है. अन्य संस्कृतियों के वैज्ञानिक तथ्यों को हमारी संस्कृति ने सदैव आत्मसात् किया है. किन्तु अध्यात्म की योग्य रीति से शिक्षा नहीं दिए जाने के कारण अधिकांश दुष्परिणाम हमारा सांस्कृतिक पतन के रूप में हुआ है जिसका नतीजा एक जनवरी को हमने नया वर्ष मान लिया. साथ ही पश्चिमी संस्कृति को और आदर्श और ज्ञान का केंद्र समझ लिया.

आदर्श मानने की कारण आज अधिकांश हिन्दू माता-पिता अपनी सन्तानों को विदेशी अंग्रेजी भाषा में शिक्षित करने में गर्व अनुभव करते हैं, तभी तो आज के अंग्रेजी माध्यम में पढनेवाले अधिकांश विद्यार्थियों को अपनी धर्म और संस्कृति के प्रति अभिमान नहीं है ऐसे संस्कारों में पली सन्तानें पश्चिम का अनुकरण कर यदि अपने वृद्ध माता-पिता को त्याग, विदेशियों समान बिना विवाह किए पति-पत्नी समान रह रहे हों अर्थात् ‘लिव इन रिलेशनशिप’ का अनुसरण कर रहे हों या विदेशियों समान अपने माता-पिता वृद्धाश्रम में छोड देते हों तो इसमें आश्चर्य कैसा? क्या ये तथ्य गर्व करने योग्य करने योग्य है. लेकिन अपनी वैदिक संस्कृति में तो मात्र पिता के कहने से ही पुत्र वनवास धारण कर लेते थे.

लेकिन प्रत्येक तथ्य को तर्क की कसौटी पर प्रमाणित कर स्वीकार करने वाली यह आधुनिक पीढी, बिना सोचे-विचारे अंग्रेजी नववर्ष को उत्सव के रूप में मनाती है. जबकि हमारे देश में प्रत्येक पर्व अथवा उत्सव को मनाने का कोई न कोई आधार भूत आध्यात्मिक कारण अवश्य है. जबकि 1 जनवरी को नव वर्ष मनाने का कोई भी आध्यात्मिक या वैज्ञानिक कारण उपलब्ध नहीं है. जो लोग 31 दिसम्बर की रात्रि 12 बजे उपरान्त नये वर्ष का प्रारम्भ मानते हैं, उन्हें जरुर सोचना चाहिए कि ‘दिवस’का प्रारम्भ ‘मध्यरात्रि’में कैसे हो सकता है? क्योंकि दिन तो सूर्योदय के समय प्रारम्भ होता है, रात्रि में नहीं. रात्रि में तो केवल घडी का समय परिवर्तित होता है. पश्चिमी संस्कृति अनुसार नव वर्ष मनाने वाले वर्तमान काल को 21 वीं शताब्दी कहते हैं, यदि उनकी मानें तो मानव का इतिहास केवल 2018 वर्षों का ही है और यदि यह 21 वीं शताब्दी है तो क्या इसके पूर्व मानव सभ्यता नहीं थी? हालाँकि अब आधुनिक वैज्ञानिक भी सृष्टि की उत्त्पति  का समय एक अरब वर्ष से अधिक बताने लगे हैं. लेकिन आधुनिक सभ्यता की अंधी दौड़ में समाज का एक वर्ग अपने इस पुण्य दिवस को भूल कर चुका है. उनके लिए आवश्यक है कि इस दिन के इतिहास के बारे में वे जानकारी लेकर प्रेरणा लेने का कार्य करें. भारतीय संस्कृति की पहचान विक्रमी शक संवत्सर में है, न कि अंग्रेजी नववर्ष से. हमारा स्वाभिमान विक्रमी संवत्सर को मनाने से ही जाग्रत हो सकता है, न कि रात भर झूमकर एक जनवरी की सुबह सो जाने से. इसका सशक्त उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का यह कथन है, जिसे उन्होंने एक  जनवरी को मिले शुभकामना सन्देश के जवाब में कहा था. मेरे देश का सम्मान वीर विक्रमी नव संवत्सर से है, 1 जनवरी गुलामी की दास्तान है. अत: चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि, शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति’ आप सभी को हिन्दू वैदिक नववर्ष की शुभ और मंगलकामनाएं……राजीव चौधरी

 

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