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शहीद दिवस पर सच्ची श्रद्धांजलि

किसी ने कहा है कि एक बार सांस लेना भूल जाना मगर क्रांतिकारियों का बलिदान मत भूलना, आज के दिन जब तीन परिंदे आसमान छूने निकले थे तो पूरा हिन्दुस्तान रो रहा था. आजादी के इन तीन परवानो को अपने जीवन की चाह न थी, इनकी चाह सिर्फ इतनी थी कि देश के करोड़ों लोग ब्रिटिश शासन से मुक्त हो और हिन्दुस्तान आजादी का सूरज देखें. यूँ तो देश और दुनिया के इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाएं है पर 23 मार्च की तारीख हिन्दुस्तान के इतिहास में एक ऐसी तारीख है जो आज भी आँखे नम कर जाती है. आज के दिन भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिया जाना भारत के इतिहास में दर्ज सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है.

अमर शहीद भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ऐसे नाम है जो खुद को देशभक्ति के जज्बे से भरने के लिए उनका नाम लेना ही काफी है. अंग्रेजों से लोहा लिया और असेंबली में बम फेंककर उन्हें सोती नींद से जगाने का काम किया था, असेंबली में बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं और जिसके नतीजतन उन्हें फांसी की सजा हो गई. उस दिन लाहौर जेल में बंद सभी कैदियों की आंखें नम हो गईं. यहां तक कि जेल के कर्मचारी और अधिकारी के भी हाथ कांप गए थे धरती के इस लाल के गले में फांसी का फंदा डालने में. जेल के नियम के मुताबिक फांसी से पहले तीनों देश भक्तों को नहलाया गया था. फिर इन्हें नए कपड़े पहनाकर जल्लाद के सामने किया गया. जिसने इनका वजन लिया. फांसी दिए जाने से पहले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई. तीनों ने एक स्वर में कहा कि हम आपस में गले मिलना चाहते हैं.

ऐसे महान क्रन्तिकारी एक अलख जगा कर हमेशा के विदा हो गये लेकिन क्या शहीद दिवस पर उन्हें याद करके प्रतिमा पर फूलमाला चढ़ाना ही काफी होगा? शायद नहीं क्योंकि वास्तव में अगर हम उनके व्यक्तित्व और विचारों को समझकर उन्हें अपनाने की कोशिश नहीं करते तो शहीद क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि महज एक औपचारिकता रह जाएगी. यहां हम आज आपको भगत सिंह की कही कुछ बातें बताने जा रहे हैं जिन्हें अपनाकर आप शहीद दिवस पर देश के वीर सपूतों को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं.

भगत सिंह ने अंग्रेजी संसद में बम गिराने के बारे में बात करते हुए कहा  कि बहरो से अपनी बात कहने के लिए आवाज बुलंद होनी चाहिए. उनका कहना था हम किसी को मारने के बजाय बम गिराकर अंग्रेजी हुकूमत को जगा रहे थे कि अब उनके भारत छोड़ने का समय आ गया है.

भगत सिंह अपने दम पर जिंदगी जीने के हिमायती थे उनका कहना था जिन्दगी अपने दम पर जी जाती है. दूसरों के कन्धों पर तो जनाजे उठते हैं. अपनी इस बात से भगत सिंह देश के युवाओं के स्वाभिमान को आज भी ललकारते नजर आते हैं.

भगत सिंह हमेशा से बदलाव के हिमायती रहे. उन्होंने इस बात का जिक्र करते हुए कहा था, लोग हालात के अनुसार जीने की आदत डाल लेते हैं. बदलाव के नाम से डरने लगते हैं. ऐसी सोच को क्रांतिकारी विचारों से बदलने की जरूरत है.

देश के बलिदान करने वाले भगत सिंह व उनके साथी आज इस दुनिया में नहीं पर उनका व्यक्तित्व आज भी अमर है. वास्तव में उन्होंने अपनी ही कही एक बात को चरितार्थ किया कि मौत इंसान की होती है, विचारों की नहीं. ये उनके विचार ही हैं जिन्होंने उन्हें लोगों के दिलोदिमाग में आज भी जिन्दा रखा है. उन्होंने अंग्रेजों के बारे में भी कहा था कि वः मेरे सिर को कुचल सकते हैं, विचारों को नहीं. मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, मेरे जज्बे को नहीं. ऐसे महान अमर शहीद भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को आर्य समाज का शत-शत नमन

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