Tekken 3: Embark on the Free PC Combat Adventure

Tekken 3 entices with a complimentary PC gaming journey. Delve into legendary clashes, navigate varied modes, and experience the tale that sculpted fighting game lore!

Tekken 3

Categories

Posts

सत्यार्थ प्रकाश : एक समाज-वैज्ञानिक दृष्टि

आर्ष ग्रंथ भारतीय मनीषा के अद्भुत अवदान हैं जिनकी मानव-जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वैदिक वाड्मय ज्ञान-विज्ञान का विश्वकोश है तो ‘सत्यार्थ प्रकाश’ को विश्वकोशों का ‘विश्वकोश’ कहा जा सकता है तथा उसे पुस्तक-जगत का ‘महाकोश’ कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वस्तुतः ‘सत्यार्थ प्रकाश’ केवल एक धर्मग्रन्थ ही नहीं, अपितु एक जीवन – दर्शन है, जिसका पूर्वार्द्ध दस दिशाओं का प्रतीक है तथा उत्तरार्द्ध चारों ओर फैले अंधविश्वासों के तमस को तिरोहित करने के लिए बेबाक सत्य का प्रकाश प्रदान करता है। वह ‘सत्यम् ब्रूयात्’ का पथ तो अपनाता है किन्तु ‘प्रियम् ब्रूयात्’ की अपेक्षा ‘जनहितम् ब्रयात्’ का पथ तो अपनाता है किन्तु ‘प्रियम् ब्रूयात्’ की अपेक्षा ‘जनहितम् ब्रूयात्’ को प्राथमिकता देता है। जनहित में वैचारिक सर्जरी का होना स्वाभाविक है जो कुछ क्षणों के लिए कटु तथा कष्ट दायक लगता है किन्तु उसका उद्देश्य अन्ततः स्वस्थ-चिंतन, विश्व-कल्याण एवं विश्व-शान्ति का वातावरण निर्मित करना है। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ को लिखने का भी यही मन्तव्य रहा है जिसमें युग-चिंतक महर्षि दयानन्द ने नीर-क्षीर-विवेक की तर्क-शैली अपनाई है तथा ऋषि-परम्परा का निर्वहन किया है। महर्षि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की भूमिका में लिखते हैं-‘‘मेरा इस ग्रंथ को बनाने का मुख्य प्रयोजन सत्य, सत्य अर्थ का प्रकाश करना है, अर्थात् जो सत्य है उसको सत्य और जो मिथ्या है उसको मिथ्या ही प्रतिपादन करना सत्य अर्थ का प्रकाश समझा है। वह सत्य नहीं कहाता जो सत्य के स्थान में असत्य और असत्य के स्थान में सत्य का प्रकाश किया जाये। किन्तु जो पदार्थ जैसा है उसको वैसा ही कहना, लिखना और मानना सत्य कहाता है। जो मनुष्य पक्षपाती होता है, वह अपने असत्य को भी सत्य और दूसरे विरोधी मत वाले के सत्य को भी असत्य सिद्ध करने में प्रवृत्त होता है, इसलिए वह सत्य मत को प्राप्त नहीं हो सकता। इसीलिए विद्वान् आप्तों का यही मुख्य काम है कि उपदेश व लेख द्वारा सब मनुष्यों के सामने सत्य सत्य का स्वरूप समर्पित कर दें, पश्चात् वे स्वयं अपना हिताहित समझकर सत्यार्थ का ग्रहण और मिथ्यार्थ का परित्याग करके सदा आनन्द में रहें।’’
ऋषिवाणी इसी आनन्द तथा परमाननद के लिए दस समुल्लासों में ‘प्रियत् ब्रूयात्’ का भी प्रश्रय लेती है। किन्तु संन्यासी की भाषा में ‘सत्यम् ब्रूयात्’ के साथ-साथ स्पष्टवादिता अथवा साफगोई न हो तो उसकी लेखनी समान्य लेखकों की तरह पाठकीय रुचि के व्यामोह में भ्रमित भी हो सकती है। ऋषिवाणी का यह कथन ‘सर्वजन हिताय’ लेखन-शैली को और अधिक तथ्यात्मक तथा धारदार स्वरूप प्रदान करता है। ऋषि का अभीष्ट किसी का दिल दुखाना नहीं, बल्कि प्यार का पारावार देना है। इसी सन्दर्भ में वे आगे लिखते हैं-‘‘मनुष्य का आत्मा सत्यासत्य को जानने वाला है तथापि अपने प्रयोजन का सिद्धि, हठ, दुराग्रह और अविद्यादि दोषों से सत्य को छोड़ असत्य में झुक जाता है, परन्तु इस ग्रंथ में ऐसी बात नहीं रखी है और न किसी का मन दुखाना व किसी की हानि का तात्पर्य है, किन्तु जिससे मनुष्य जाति की उन्नति और उपकार हो, सत्यासत्य को मनुष्य लोग जानकर सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करें, क्योंकि सत्योपदेश के बिना अन्य कोई भी मनुष्य जाति की उन्नति का कारण नहीं है।’’
‘सत्यार्थ प्रकाश’ की भूमिका में स्वामी जी का स्पष्टीकरण पढ़ने के बाद मन-मुटाव की स्थिति और भ्रान्तियां स्वतः दूर हो जाती हैं। ‘उत्तरा(र्’ के चार समुल्लासों के बारे में स्पष्ट करते हुए स्वामी जी लिखते हैं- ‘‘बहुत से हठी, दुराग्रही मनुष्य होते हैं जो वक्ता के अभिप्राय के विरु( कल्पना किया करते हैं, विशेषकर मत वाले लोग। क्योंकि मत के आग्रह से उनकी बुद्धि अंधकार में फंसकर नष्ट हो जाती है। इसलिए जैसा मैं पुराण, जैनियों के ग्रंथ, बायबिल और कुरान को प्रथम ही बुरी दृष्टि से न देखकर उनमें से गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग तथा अन्य मनुष्य जाति की उन्नति के लिए प्रयत्न करता हूं, वैसा सबको करना योग्य है।’’
‘सत्यार्थ प्रकाश’ की सामग्री पर दृष्टिपात करें तो हमें उसमें ज्ञान के माणिक-मुक्ता का अक्षय भंडार मिलेगा। उसके चौदह अध्यायों में जिस अनुक्रम से सामग्री का प्रस्तुतिकरण किया गया है, वह किसी भी महान लेखक की प्रतिभा के अनुरूप है। स्वामी जी ने अध्यायों को अध्याय न कहकर ‘समुल्लास’ कहा है जो उनके मौलिक लेखन को प्रमाणित करता है। इन समुल्लासों की विषय-सामग्री इस प्रकार है-प्रथम समुल्लास में ईश्वर के ओंकारादि नामों की व्याख्या, प्रथम समुल्लास में ईश्वर के ओंकारादि नामों की व्याख्या, द्वितीय समुल्लास में संतानों की शिक्षा, तीसरे समुल्लास में ब्रह्मचर्य, पठन-पाठन व्यवस्था, सत्यासत्य ग्रंथों के नाम और पढ़ने-पढ़ाने की रीति है। चतुर्थ समुल्लास में विवाह और गृहस्थाश्रम का व्यवहार है। पंचम में वानप्रस्थ और संन्यासाश्रम की विधि, छठे समुलास में राजधर्म, सप्तम में वेदेश्वर विषय हैं। समुल्लास आठ में जगत् की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय है। नवें समुल्लास में विद्या, अविद्या बन्ध और मोक्ष की व्याख्या है। समुल्लास दस में आर्यावर्तीय मत-मतान्तर का खण्डन-मण्डन विषय है। द्वादश समुल्लास में चारवाक्, बौ( और जैन मत का विषय लिया गया है। तेरहवें समुल्लास में ईसाई मत का विषय तथा चौदहवें समुल्लास में मुसलमानां के मत का विषय समीक्षात्मक ढंग से प्रस्तु किया गया है।……..
‘सत्यार्थ प्रकाश’ के बैन का विरोध करने वालों में अन्य नेता तथा विचारक थे-वीर सावरकर, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पं. मदनमोहन मालवीय, डॉ. सीतारमैया, पुरुषोत्तम दास टण्डन, सरदार पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, सैफुद्दीन किचलू, प्रो. अब्दुल मजीद, होरनीमैन आदि। इस महान् ग्रंथ पर प्रतिबंध अनेक बार लगे हैं किन्तु सत्य की सदैव जीत हुई है। कुछ आर्य विचारकों ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में विवादास्पद स्थलों पर पाद-टिप्पणी लिखने का मन बनाया तो उसका खुलकर विरोध हुआ। वस्तुतः जिस प्रकार साहित्यिक कृतियों के मूल्यांकन पर समालोचनात्मक शोध-ग्रंथ अथवा समीक्षा-ग्रंथ प्रकाशित होते हैं, उसी प्रकार ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पर भी समसामयिक परिप्रेक्ष्य में स्वतन्त्र पुस्तकें प्रकाशित की जा सकती हैं। युवा पीढी के लिए उसकी आवश्यकता पर वैज्ञानिक ढंग से साहित्य तैयार किया जा सकता है। आश्चर्य है कि अभी तक देश-विदेश की सभी भाषाओं व जनजातीय भाषाओं में भी अब तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के अनुवाद नहीं हुए हैं।
इन पंक्तियों के लेखक ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ को पंडित गुरुदत्त की तरह चौबीस बार तो नहीं पढ़ा किन्तु पहली बार कक्षा छः में, दूसरी बार युवावस्था में और तीसरी बार हाल में ही पढ़ा हैऋ सदैव कुछ नया ही मिलता रहा है। समाज वैज्ञानिक दृष्टि से अनेक नये तथ्य प्राप्त हुए हैं। इस कालजयी कृति के लेखक युगपुरुष महर्षि दयानन्द सरस्वती की स्मृति को नमन!
प्रो. डॉ. श्याम सिंह शशि, पी-एच.डी., डी. लिट्

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *