Tekken 3: Embark on the Free PC Combat Adventure

Tekken 3 entices with a complimentary PC gaming journey. Delve into legendary clashes, navigate varied modes, and experience the tale that sculpted fighting game lore!

Tekken 3

Categories

Posts

सात्विक अन्न सेवन से क्रियाशील बन सब का पालन करें

हम सदा सात्विक अन्न का सेवन करें । सात्विक अन्न के सेवन से क्रियाशीलता बढती है। क्रियाशील व्यक्ति ही शुभ कर्म कर सकता है। क्रियाशील व्यक्ति ही वह शक्ति रखता है जिससे अपना ही नहीं अन्य लोगों का भी पालन कर सकता है। हम एसा ही बनें, इस बात को ऋग्वेद के प्रथम मण्ड्ल के इस तृतीय सूक्त के प्रथम मन्त्र में इस प्रकार बताया गया है:
अश्विना यज्वरीरिषो द्रवत्पाणी शुभस्पती ।
पुरुभुजा चनस्यतम ॥ऋग्वेद १.३.१ ॥
१. सात्विक भोजन
इस मन्त्र में जो प्रथम प्रार्थना की गयी है , अश्विन कुमारों से जो प्रथम चीज मांगी गई है, वह है सात्विक भोजन। सात्विक भोजन की मांग करते हुए प्रार्थना की है कि हे प्राणापाणों! मैं यज्ञशील बनना चाहता हूं, इसलिये आप एसी व्यवस्था करें कि मैं यज्ञशील बनने के लिए सात्विक अन्न खाने की ही इच्छा करुं। सात्विक भोजन एक एसा साधन है, जिससे शरीर के विकार पैदा ही नहीं हो पाते तथा जो पहले से होते हैं, वह भी दूर हो जाते हैं। शारीरिक व्याधियो से बचे हुए हम भली प्रकार से यज्ञ आदि कर्म कर सकते हैं। इस लिए प्रभु हमारे लिए एसा अन्न दो, जो सात्विक हो , हम एसे अन्न का ही सदा सेवन करें। सात्विक अन्न के सेवन से हमारी बुद्धि भी सात्विक होती है ॥ सात्विक बुद्धि ही जीवन को यज्ञमय बनाने का कार्य करती है । इस लिए हम सदा सात्विक भोजन करें।
क्रियाशील हो शुभ कार्य करें
सात्विक भोजन करने वाले के प्राण – अपान स्वयमेव ही सुरक्षित हाथों में चले जाते हैं । इस मन्त्र में भी यही कामना की गई है कि हे प्रभु! सात्विक भोजन करने से हमारे प्राण तथा अपान सात्विक होने पर हम गतिशील हाथों वाले हों , क्रियाशील हों , कार्यशील हो, अकर्मण्यता से , कार्य से मन चुराने से सदा दूर रहें। इस प्रकार हम जो क्रियाशील बन कर भी एसी क्रिया करें, एसे कार्य करें , जो शुभ हों। हम अपने करों से, अपने हाथों से सदा शुभ कर्म ही करें। इस प्रकार हम शुभ कर्मों के पति , अधिपति, साधक और अधिकारी बनें। हम जो भी कर्म करें, जो भी कार्य करें , जो भी क्रिया करें, उसका परिणाम शुभ ही हो अर्थातˎ हमारी क्रियाशीलता से सदा शुभ ही शुभ प्रकट हो, शुभ ही शुभ दिखाई दे। हम अपनी क्रियाशीलता स्वरुप जो भी कर्म करें, उन कर्मों से कभी भी चपलता या दुष्टता न प्रकट हो , दुष्टता वाले कर्म हम कभी न करें।
शुभ कर्म करते हुए हम अनेक लोगों का, अनेक प्राणियों का पालन करने वाले बनें प्राणियों के सहयोगी बनें , उनके कष्टों में उनके सहायक बनें।
३. शुभ से क्या अभिप्राय है?
शुभ का अभी प्राय है एसे कर्म, जिनसे लोगों को लाभ हो ,लोगों का शुभ हो, अपना ही नहीं अन्य लोगों का भी कल्याण करने वाले हों. सब को सुख देने वाले हों, एसे कर्म जो केवल अपने लिए ही शुभ न करे अपितु अन्य लोगों का भी शुभ करें, अन्य लोगों का भी पालन करें , अन्य लोगों को भी उन्नत करें। अत: एसे कार्य, एसे कर्म , जिन के करने से अपने शुभ के साथ ही साथ अन्य लोगों का भी हित हो, यह ही सत्य है, यह ही शुभ है। अत: हम सदा उत्तम , परहितकारी, सर्वहितकारी कर्म ही करें । इस मन्त्र की यह पंक्ति यह ही आदेश दे रही है।
४. प्राणापान को अश्विना शब्द से स्मरण क्यों किया गया है?
प्राणापान को अश्विना शब्द से स्मरण क्यों किया गया है? आओ इस पर भी कुछ विचार करें । अश्विना शब्द नाश्वान के लिए प्रयोग होता है। जहां तक प्राणों का सम्बन्ध है, यह स्थायी नहीं हैं, यह कभी भी तथा कहीं भी रुक सकते
हैं। यह रहेंगे या नहीं इस सम्बन्ध में हमें कुछ भी नहीं पता। यह शरीर इन प्राणॊं के आधार पर क्रिया में रहता है या नहीं, क्रिया कर पाने में सक्षम रहता भी है या नहीं , यह भी हम नहीं जानते। हां! इन प्राणॊं की क्रियाशीलता ही हमें चलाती है, इन की क्रियाशीलता से ही हमें भूख लगती है, इनकी क्रिया शीलता ही हमें संसार में ऊंचा ले जाती है। यह हमारी क्रियाशीलता ही हमारी सब उन्नतियों का आधार है|
इसलिए मन्त्र में कहा गया है कि हे मानव! तूं ने सदा सात्विक अन्न की ही इच्छा करनी है, सात्विक अन्न की ही कामना करनी है, सात्विक अन्न प्राप्ति की ही अभिलाषा करनी है। यह सात्विक अन्न ही तेरा कल्याण करेगा।

डा. अशोक आर्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *