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सार्वदेशिक सभा के द्वारा संगठन का एक और प्रशंसनीय प्रयास अण्डमान में आर्य समाज की स्थापना

आर्य समाज की स्थापना का मुख्य लक्ष्य था ‘‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’’ और वैदिक विचारधारा को समस्त विश्व तक पहुंचाना। सार्वदेशिक सभा का गठन मुख्यतः देश की आन्तरिक व उसके बाहर विदेशों में इस पुनीत कार्य का विस्तार करने, इसकी रक्षा करने के लिए हुआ है। सार्वदेशिक सभा इस उद्देश्य व कर्तव्य का निर्वाह पूर्ण मनोयोग से कर रही है।

प्रारंभिक क्रान्ति में हमारे पूर्व अधिकारी, विद्वानों का और सन्यासियों का इसमें अत्यन्त सराहनीय तथा बहुत कठिन परिश्रम रहा। जिनके द्वारा एक सौ वर्ष से भी पूर्व देश, देशान्तरों में कई स्थानों पर आर्य समाज की स्थापना की गई। कुछ वर्षों से इसमें कुछ शिथिलता आई किन्तु सन् 2006 के पश्चात पुनः एक सक्रिय चेतना के साथ अधूरे कार्य को पूर्ण करने के संकल्प के साथ संगठन के कार्य को गति प्रदान की जा रही है। देश व विदेशों में संगठन के कार्यों से संगठन व सम्पर्क बढ़ा है। अमेरिका, लन्दन, दक्षिण अफ्रिका, मारिशस, सूरीनाम, गयाना, हालैण्ड, सिंगापुर, थाईलैण्ड, बर्मा, मलेशिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, फिजी, नेपाल आदि देशो से बार बार सम्पर्क किया, वहा अन्तराष्ट्रीय आर्य महा सम्मेलनों की योजना बनाई, आज उनसे जीवन्त सम्पर्क बना हुआ है, साहित्य सामग्री, सन्देश का सिलसिला निरन्तर बना हुआ है। इसके साथ ही देश के उस क्षेत्र को जहाँ  साम्प्रदायिक विचारधाराएं धर्म परिवर्तन कराने में सक्रिय हैं, सत्य सनातन धर्म का प्रचार नहीं है तथा जहाँ आर्य समाज अभी तक नहीं हैं वहां  आर्य समाज की स्थापना का विशेष ध्यान दिया गया।

आसाम, मिजोरम, नागालैण्ड, केरल जैसे स्थानों में जहाँ सनातन धर्मी तेजी से अल्प संख्यक होते जा रहे हैं वहां आर्य समाज की गतिविधियों में वृद्धि करने का प्रयास, सेवा, शिक्षा व वेद प्रसार के द्वारा जारी है।

इसी तारतम्य में अण्डमान द्वीप, आर्य समाज की गतिविधि से पूर्णतः अछूता था, इसलिए वहां भी आर्य समाज का कार्य प्रारंभ करने का प्रयास किया गया है। इस प्रयास हेतु श्री आचार्य आनन्द पुरूषार्थी के द्वारा 7 दिन वहां जाकर भूमिका तैयार कर आर्य समाज की विचारधारा से अनेक व्यक्तियों को अवगत कराया गया। इसके पश्चात निरन्तर सम्पर्क बना रहा। इस कार्य को अंजाम देने के लिए 4 मई से 9 मई तक 5 दिवसीय कार्यक्रम अण्डमान हेतु बनाया गया। जिसमें मैं, श्री विनय आर्य, श्री शिवकुमार मदान, श्री एस. के. कोचर वहां पहुंचे। अनेक व्यक्तियों से सम्पर्क किया, चर्चा के दौरान काफी उत्साहवर्द्धक वातावरण निर्मित हुआ। भजन, व्याख्यान, प्रवचन के माध्यम से भी सम्पर्क कर विधिवत आर्य समाज का संगठन का गठन किया और आर्य समाज तथा विद्यालय हेतु भवन निर्माण की योजना बनाई। अनेक स्थानों पर जाकर भवन हेतु भूमि देखी। सबसे प्रसन्नता की बात यह रही कि इस हेतु स्थानीय जो सदस्य संगठन से जुड़े, वे वहां के प्रतिष्ठित शिक्षित वर्ग के सदस्य हैं। जिनमें वैदिक धर्म और आर्य समाज को समझकर एक उत्साहवर्द्धक वातावरण निर्मित हुआ। वहां के उप राज्यपाल श्री जगदीशजी मुखी से भेंट कर अपने मन्तव्य से अवगत कराया, वहां से भी यथायोग्य सहयोग का आश्वासन मिला।

वहां लम्बी चर्चा के पश्चात संगठन का गठन कर दिया गया, इसके प्रधान प्रोफेसर डा. सुरेश चतुर्वेदी, प्रोफेसर सुरेश आर्य (मन्त्री), डॉ. रविशंकर पाण्डेय (कोषाध्यक्ष), इंजीनियर शशिमोहन सिंह (उपमन्त्री) एवं डॉ.. अरूण श्रीवास्तव (उपप्रधान)। डॉ.. कंडी मुथव को आर्डिनेटर सम्पर्क अधिकारी के रूप में, श्री विकास पटेल (सी.ए.), डॉ.. चन्द्रा श्रीवास्तव, श्री सत्यव्रत दुबे (सी.ए.) आडीटर, डॉ. जपा प्रदेश अध्यक्ष) संवरक्षक व अन्य सदस्य मनोनीत किए गए हैं। निश्चित ही कुछ ही वर्षों यहाँ आर्य समाज इस क्षेत्र का एक प्रसिद्ध व सक्रिय संगठन के रूप में पहचान बनायेगा।

परमात्मा की कृपा से निकट भविष्य में ही गोवा में जहाँ अभी तक आर्य समाज की शाखा प्रारंभ नहीं हुई है वहां भी सम्पर्क किया जा रहा है और यथाशीघ्र पुनः एक शुभ समाचार आप तक पहुंचेगा, ऐसा विश्वास है।

उपरोक्त समस्त कार्यों के लिए निष्काम व समर्पित, व्यक्तित्व के रूप में सभा प्रधान श्री सुरेशचन्द्रजी आर्य का पूर्ण सहयोग, संबल, मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। उसी प्रकार यह परम सौभाग्य है कि भामाषाह के रूप में स्थापित व्यक्तित्व महाशय धर्मपालजी (एम.डी.एच.) का बहुत बड़ा आशीर्वाद संगठन को प्राप्त है। उनकी प्रेरणा और प्रबल इच्छा आज भी यही है कि जहाँ- जहाँ आर्य समाज नहीं हैं, महर्षि दयानन्द की विचारधारा नहीं पहुंची, वहां आर्य समाजें प्रारंभ करो। अण्डमान के संबंध में भी उनकी प्रबल भावना ऐसी ही रही। सम्पूर्ण आर्य जगत ऐसे आशीर्वाद दाता का हृदय से आभार व्यक्त करता है।

प्रकाश आर्य

सभामन्त्री

सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली

 

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