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सीधी कार्यवाही कब..??

अमरनाथ यात्रियों पर किया हमला मन को व्यथित और विचलित करने वाला है कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में अमरनाथ यात्रियों पर हुए एक आतंकी हमले में एक बार फिर कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और कम से कम 19 अन्य लोग घायल हुए हैं. हमले में चरमपंथियों का निशाना बनी बस में कुल 56 यात्री सवार थे जिनमें से ज्यादातर यात्री गुजरात के थे. कुछ यात्री महाराष्ट्र के भी थे. सरकार के बड़े मंत्रियों से लेकर नेताओं तक इस घटना की कड़ी निंदा की है. पर प्रश्न यह कि कब तक निंदा रूपी शब्द से काम चलेगा इस आतंक के खिलाफ सीधी कारवाही कब होगी? निंदा किसी मसले का हल नहीं है क्योंकि अगस्त, 2000 को आतंकियों द्वारा पहलगाम के बेस कैंप में पर हमला किया था. बेस कैंप में 32 लोग मारे गए थे. तब भी हमने सिर्फ निंदा की थी यदि उस समय सीधी कारवाही की होती तो अगले वर्ष जुलाई, 2001 को अमरनाथ गुफा के रास्ते की सबसे ऊंचाई पर स्थित पड़ाव शेषनाग पर 13 लोगों की मौत आतंकियों द्वारा हत्या नहीं होती! लेकिन फिर भी हमने निंदा ही की यदि सीधी कारवाही की होती अगले वर्ष अगस्त, 2002 को चरमपंथियों ने पहलगाम में हमला करने की जरूरत नहीं करते जिसमें नौ लोगों की मौत हुई थी और 30 अन्य लोग घायल हो गए थे.

पिछले साल 9 जुलाई को हिजबुल का आतंकी बुरहान वानी भारतीय सेना के हाथों मार गिराया गया गया. जिसके बाद उम्मीद की जा रही कि सुलगते चिनार और रक्त से लाल हुई बर्फ की चादर अपने पुराने रंगों में लौट आयेंगे. लेकिन आज हालत ये है कि मीर वाइज जैसे नेता लगातार अपनी रैलियों में इस बात का ऐलान कर रहे हैं कि वही कश्मीरियों के दर्द को समझते हैं और उनके हिमायती हैं और अगर लोगों ने उनका साथ दिया तो वो एक दिन कश्मीर को आजादी दिला देंगे. मीर वाइज जैसे नेता कश्मीर को आजादी दिलाकर कहां ले जाएंगे? मजहबी मानसिकता के कारण कश्मीर जैसा खूबसूरत राज्य अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है, बढ़ता आतंकवाद और पाकिस्तान परस्ती राज्य की एक गंभीर समस्या है. राज्य की खस्ताहाली में जो कमी रह गयी थी उसे मीरवाइज उमर फारूक, गिलानी और यासीन मलिक जैसे कट्टरपंथी नेताओं ने पूरा कर दिया है. हालाँकि राज्य में जिस तरह सेना और पुलिस द्वारा आतंकियों का खात्मा करके आतंकवाद पर नकेल कसी जा रही है उसके लिए निस्संदेह ही सेना और पुलिस की सराहना होनी चाहिए. जहां एक तरफ कश्मीर से आ रहीं ऐसी खबरें एक आम भारतीय को सुकून देतीं हैं तो वहीं उसका दिल तब बैठ जाता है जब वो किसी आतंकी के जनाजे में जिंदाबाद के नारों के बीच अमरनाथ यात्रियों पर हमला बोल देते है.

कश्मीर में तहरीक ए आजादी का नारा देकर अलगाववादी खुलेआम जहर बाँट रहे है मस्जिदों का उपयोग प्रार्थना इबादत के बजाय राजनीति और अलगाव के लिए हो रहा है. जिसे सीधे तौर पर मजहब से जोड़ दिया गया है. बड़ा सवाल यही उभरता है कि आखिर कश्मीर को आजादी दिलाकर कहां ले जाएंगे? यह सवाल किसी एक कश्मीरी से नहीं बल्कि भारत में राजनैतिक और बोद्धिक रूप से इनका समर्थन करने वाले सब लोगों से है. यदि कश्मीरी समुदाय कुछ पल को मजहबी भावनाएं किसी संदूक में रखकर ये सोचे कि मजहब के नाम पर बनने वाले पाकिस्तान से किसे लाभ हुआ? क्या पाकिस्तान के बनने से ख़ुद पाकिस्तान को लाभ हुआ? यानी अगर वह इलाका आज भारत के अधीन होता तो क्या वहां हालात आज से बदतर होते या बेहतर होते? सवाल घूमकर फिर वहीं आ जाता है कि मजहब के नाम पर पाकिस्तान बनाने वालों के सिवा किसे लाभ हुआ? आज जो कश्मीरी समुदाय आजादी के लिए कट्टरपंथ और अलगाववाद का हिस्सा बन रहा है वो जरुर सोचें क्या पाकिस्तान बनने से मुसलमानों को कोई फायदा हुआ?

जिन्ना ने पाकिस्तान मांगते हुए कहा था कि हिन्दू मेरी इबादत में खलल डालेगा इसलिए मुझे पाकिस्तान चाहिए. क्या हुआ आज उसकी इबादत का? पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा या कहो 20 करोड़ की आबादी संगीनों के साये में अपनी इबादत करते नजर आते है. जबकि भारत में रह रहे मुस्लिम सड़कों तक पर आराम से सुरक्षित नमाज अता करते दिख जायेंगे. लेकिन यहाँ का बहुसंख्यक समुदाय अपनी आस्था उपासना के लिए सरकार का मुंह देख रहा कि कब सुरक्षा का आश्वासन मिले और में बिना विघ्न अपनी पूजा अर्चना कर पाए. आखिर क्यों देश के टेक्स की बड़ी रकम से हजयात्रा पर सब्सिडी मिल रही है और अमरनाथ यात्रा पर गोली? ऐसे हमलों की निंदा तो हम के वर्षों से सुनते आ रहे है, पर अब समय आ गए है की इसके खिलाफ  सीधी कार्यवाही की जाये!

Rajeev choudhary

 

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