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आत्महत्या का यह कैसा कारण

मेरी मौत के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। मैं अपने घर में कई ख़र्चों की वजह हूं। मैं उन पर बोझ बन गई हूं। मेरी शिक्षा एक बोझ है। मैं पढ़ाई के बिना जिंदा नहीं रह सकती। ये अंतिम शब्द हैं जो अपने शहर की टॉपर रही ऐश्वर्या रेड्डी ने सुसाइड नोट में लिखे हैं। हैदराबाद के पास शाद नगर की रहने वाली ऐश्वर्या ने बारहवीं की परीक्षा में 98 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल कर अपना शहर टॉप किया था और वो दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी श्रीराम कॉलेज में गणित में स्नातक कर रहीं थीं। लॉकडाउन के दौरान उन्हें वापस अपने घर जाना पड़ा जहां आर्थिक परिस्थितियों की वजह से उनके लिए पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो गया। आए दिन आप ऐसी खबरें पढ़ते-देखते होंगे कि परिवार के सदस्यों ने सामूहिक रूप से सुइसाइड कर लिया या फिर किसी व्यक्ति ने आत्महत्या करने का प्रयास किया।

अभी हाल ही में वाराणसी शहर के आदमपुर इलाके के नचनी कुआं मोहल्लेइ में कारोबारी चेतनु तुलस्यानन डायल 112 पर फोन कर सूचना दी कि वह परिवार के साथ खुदकुशी करने जा रहे हैं। पुलिसकर्मी पलट कर फोन मिलाने लगे तो कॉल रिसीव नहीं हुई। बहुत मुश्किल से खोजते हुई पुलिस घर पहुंची तो उनके पिता रविंद्रनाथ ने दरवाजा खोला। पुलिस के पूछने पर बताया कि घर में सब कुछ ठीक है। चेतन के बारे में पूछने पर रविंद्रनाथ ऊपर गए तो कमरे का दरवाजा नहीं खुला। पुलिस ने दरवाजा तोड़कर देखा तो अंदर एक कमरे में परिवार के साथ मृत पड़े थे। पुलिस के मुताबिक सूइसाइड नोट में कारोबार में घाटे के चलते आर्थिक तंगी बयां करने के साथ सूइसाइड नोट में बेटे-बेटी के हवाले से लिखा है कि ‘हमें नींद की दवा खिलाकर सुला देना पापा, इसके बाद गला दबा देना।

वाराणसी शहर इससे पहले 30 अक्टूेबर को हुकुलगंज इलाके में कर्ज और बीमारी से परेशान किशन गुप्ता ने पत्नी नीलम, बेटी शिखा ओर बेटे उज्जावल के साथ जान दे दी थी। ऐसी एक नहीं देश भर में कई घटना होती रहती है पिछले राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक ही परिवार के 4 सदस्यों ने सामूहिक खुदकुशी कर ली थी यहाँ भी आत्महत्या की वजह आर्थिक तंगी बताई गयी थी।

अगर देखा जाये तो आत्महत्या का किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है। लेकिन सवाल जरुर है कि आत्महत्या के कारण क्या हैं और ऐसी गंभीर समस्या का समाधान क्या है? असल कई बार इन्सान परिस्थिति को स्वीकार नहीं कर पाता वह निराश होने लगता है उसे लगने लगता है कि उसका यहाँ कुछ नहीं है वह मरने या खुद को मारने की इच्छा के बारे में बात करने लगता है। बात बात में जीवन के प्रति उसका मत निराशाजनक होने लगता है। इसका सबसे बड़ा कारण अवसाद है। आज कल की भागदौड की जिंदगी में इंसान को इंसान से कमियों और खूबियों से तौला जाना इसका प्रमुख कारण है। व्यक्ति को उसके इच्छा के अनुरूप चीजें नही मिलती, तब वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। अगर सही समय पर इसका इलाज ना हुआ तो यह डिप्रेशन इतना बढ़ जाता है कि इसका परिणाम आत्महत्या भी हो सकता है। अवसाद की यह स्थिति आत्महत्या के कारणों में से एक बताई जाती है।

दरअसल अवसादग्रस्त व्यक्ति एक तरह का मानसिक रोगी होता है, जिसका इलाज जरूरी है, लेकिन तमाम तरह के दबावों के चलते इच्छाओं का पीछा करने वाले लोगों को यह पता ही नहीं चलता कि कब वे अवसादग्रस्त हो गये और न ही उनके परिवार को इसकी भनक लगती है। अक्टूबर, 2016 का वाकया है। दिल्ली में प्रेम कुमार सुबह की सैर पर निकले और अलग-अलग मेट्रो स्टेशनों पर गये। एक जगह सुरक्षाकर्मियों ने उनके व्यवहार को भांपा और उन्हें अपनी सुरक्षा में ले लिया। अपराध के नजरिए से जब कुछ संदिग्ध नहीं लगा, तो उन्हें छोड़ भी दिया गया। एक घंटे बाद प्रेम कुमार ने एक मेट्रो ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी पुलिस पूछताछ में परिवारीजनों से पता चला कि वे काफी समय से चुप-चुप रह रहे थे। दरअसल प्रेम कुमार अवसादग्रस्त थे, मगर पैसे के अभाव में उनका इलाज नहीं हो पा रहा था।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्षवार प्रतिवेदनों का अध्ययन करने से पता चलता है कि वर्ष 2001 से 2015 के बीच भारत में कुल 18.41 लाख लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 3.85 लाख लोगों (लगभग 21 प्रतिशत) ने विभिन्न बीमारियों के कारण आत्महत्या की. इसका मतलब है कि भारत में हर एक घंटे 4 लोग बीमारी से तंग आकार आत्महत्या कर लेते हैं।

किसी को लगता है कि उसके होने, न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। कई बार व्यक्ति जब लंबे समय से तनाव से गुजर रहा होता है, तो वह कई बार खुदकुशी जैसे गलत कदम उठाने की सोचता है। जब हर ओर उसे नाउम्मीदी दिखती है तो वह ऐसा कदम उठा लेता है। लेकिन उसका कोई अपना, दोस्त, सहकर्मी वगैरह उसपर ध्यान दे तो उसे ऐसा करने से रोका जा सकता है।  दूसरा ओवरथिंकिंग भी बड़ा कारण है। जरूरत से ज्यादा सोचना हमें अवसाद में धकेल सकता है। कई चीजें हमारे हाथ में नहीं होती, उसे समय पर छोड़ देना बेहतर है। हमने अपने हिस्से की मेहनत की, कोशिश की, बस इसे पूरा करें और संतुष्टि बहुत जरूरी है।

किसी व्यक्ति को अवसाद की स्थिति से बाहर निकालने में उसके आसपास रह रहे लोगों, उसके रिश्तेदार, दोस्त, सहकर्मी आदि की भूमिका अहम होती है। इसके जो शुरुआती लक्षण बताए, उनमें से अगर कुछ भी दिख रहा हो तो आप उस व्यक्ति के पास जाएं। उससे बातें करें और उसका मन हल्का करने की कोशिश करें।

हालाँकि आत्महत्या अपने आप में एक कठिन विषय है, हमारे लिए यही बेहतर होगा कि शांत रहकर उसकी बात सुनें। जो लोग आत्महत्या करने के बारे में सोचते हैं उन्हें जवाब या समाधान नहीं चाहिए। वे अपने भय और चिंताएं व्यक्त करने के लिए एक सुरक्षित स्थान चाहते हैं, जहां उनकी बात सुनी जाए। हमें केवल उन तथ्यों को ही नहीं सुनना है जो वह व्यक्ति बता रहा है, बल्कि उनके पीछे छिपी भावनाओं को भी समझना है। उसे आश्वस्त करना है कि सब कुछ सही है ऐसे करके आप किसी का भी जीवन बचा सकते है उसे समझाए जिंदगी रोशनी है, तो मौत अंधेरा आज नहीं तो कल उसके साथ सब कुछ सही होगा !!

विनय आर्य

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