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क्या ईरान से सबक लेगी मुस्लिम लड़कियां ?

ईरान में महसा अमिनी की मौत के बाद 16 सितंबर से शुरू हुआ हिजाब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है। अब ये 15 शहरों में फैल गया है। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें भी हो रही हैं। हिजाब के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाईं। गुरुवार को फायरिंग में 3 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई। 5 दिन में मरने वालों की तादाद 31 हो गई है। सैकड़ों लोग घायल हैं। 1000 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

असल में ईरान के अन्दर 22 साल की महसा अमिनी समेत हिजाब के खिलाफ आन्दोलन में अपनी जान गवाने वाली दर्जनों लडकियों की मौत मात्र एक खबर नहीं है, बल्कि एक आइना है।  भारत में हिजाब के लिए उकसाई जा रही उन तमाम मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं के लिए जिन्हें काले कफ़न में लपेटने के लिए तमाम मजहबी संगठन इस समय सुप्रीम कोर्ट में बैठे है।

भारत की मुस्लिम लड़कियां सबक ले सकती है महसा अमिनी से क्योंकि वो अभी मरना नहीं चाहती थी।  वो जीना चाहती थी, उसके सपने थे लेकिन उसकी गलती सिर्फ इतनी रही कि परिवार के साथ घूमते हुए उसने ताजा हवा खाने को अपना हिजाब उतार दिया था।  अचानक महिलाओं की निगरानी करने वाली गश्त-ए-इरशाद यूनिट ने इसे देख लिया और मौत के घाट उतार दिया।

महसा अमिनी अपनी मौत की जिम्मेदार खुद नहीं है।  उसकी मौत की जिम्मेदार उसकी पहली पीढ़ी है जिसने 1979 में ईरान को शरियत यानि इस्लामी गणतंत्र बनने के लिए जनमत संग्रह के लिए मतदान किया था।  ठीक ऐसे ही जैसे आज कर्नाटक की मुस्लिम लड़कियां हिजाब मांग रही है।  लेकिन यह नहीं जानती कि आज इनकी ये मांग कल इनकी ही औलाद की मौत का कारण बनेगी।

ईरान इसका सबसे बड़ा उदहारण है।  ईरान में 1979 में पब्लिक ने शरियत की डिमांड की थी।  कथित ईरानी क्रांति के बाद ईरान में शरिया क़ानून लागू हुआ और हिजाब, बुर्के का आदेश दे दिया गया।  ये निर्देश नहीं, आदेश था।  न मानने वालों पर फ़ाइन लगाया जाता है।  सज़ा दी जाती है।  लेकिन बावजूद इतनी सख़्ती के, जब ईरान में आगे आने वाली नश्लों का काले टेंट में दम घुटने लगा तो साल 2017 में विदा मोवाहेड नाम की एक मुस्लिम लड़की ने इसके खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया।

इस आन्दोलन का नाम था “मेरी छिपी हुई आजादी” इस हैशटैग के साथ ईरान में सोशल मीडिया पर जोरदार अभियान शुरू हो गया।  सड़कों पर लडकियों के हाथों में स्कार्प लहराने लगे।  उन्होंने हिजाब को ही अपने आन्दोलन का झंडा बना लिया।  इसके बाद 27 दिसंबर 2017 को ईरान में विदा मोवाहेड को अरेस्टर कर लिया गया।  पर तब तक हिजाब को लहराने की उसकी तस्वी र पूरी दुनिया में वायरल हो गई थी।  विदा के समर्थन में सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम लड़कियां सड़कों पर उतर आई।  आखि़रकार 27 जनवरी 2018 को ईरानी सरकार को उन्हें  छोड़ना पड़ा था।  लेकिन करीब 35 प्रदर्शनकारी महिलाओं को अरेस्ट किया गया।

तब इनके समर्थन में पुरुष भी शरियत के खिलाफ सड़कों पर उतर गये।  ईरान की सड़कों पर ये प्रदर्शन असल में एक थोपी गयी संस्कृति के विरोध में भी था।  इनमें ज्यादातर नौजवान प्रदर्शनकारी मौलवियों की हुकूमत को सत्ता से बेदखल करना चाहते थे।  परम्पराओं की बेड़ियों को तोड़ने को बेताब प्रदर्शनकारी मौलवियों को सत्ता से बेदखल सिर्फ इसलिए भी करना चाहते थे कि उनकी दैनिक जीवनशैली से मुल्ला मौलवियों के फरमान राजनितिक तौर पर खत्म हो।  इस वजह से इन प्रदर्शनों से घबराई ईरानी सरकार ने वहां अंग्रेजी भाषा को प्रतिबंधित कर दिया और ईरान सरकार ने इस प्रदर्शन में अमेरिकी हाथ बताकर लोगों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार कर लिया।

हालाँकि साल 2016 में अमेरिकी शतरंज चौपिंयन नाजी पैकिडजे बान्स ने भी हिजाब पहनने के नियम के चलते तेहरान में हुई वर्ल्ड चौंपियनशिप का बॉयकॉट किया था।  साल 2017 में ईरान चेस फेडरेशन ने ईरानी खिलाड़ी डोर्सा देरकशानी पर हेडस्कार्फ पहन कर न खेलने के चलते प्रतिबंध लगाया था।  लेकिन डोर्सा ने इसका तोड़ निकालते हुए अमेरिका के लिए खेलना आरम्भ कर दिया या कहो खुद को हिजाब से मुक्त कर लिया।

किन्तु इसी बीच दो बड़ी घटनाएँ हुई एक तो भारतीय शतरंज खिलाड़ी सौम्या ने ईरान में हिजाब पहन कर खेलने से ये कहकर मना कर दिया कि मैं जबरदस्ती बुरका नहीं पहनना चाहती।  दूसरा ईरान की ओर से विदेशी महिला खिलाड़ियों के लिए हिजाब पहनकर खेलने की अनिवार्यता को भारतीय महिला शूटर अर्जुन अवॉर्डी हीना सिद्धू ने भी तेहरान में एशियाई एयर गन शूटिंग चौंपियनशिप में ये कहकर खेलने से इनकार कर दिया कि वह किसी भी कीमत पर हिजाब नहीं पहनेगी।  इसके बाद एक-एक करते ईरान की करीब दस टीवी अभिनेत्री, महिला खिलाडी हिजाब के विरोध में ईरान से निकलने में कामयाब रही और आज वह दुनिया के खेल एवं अभिनय जगत में अपना नाम रोशन किया।

अब एक बार फिर से इसी साल जुलाई में ईरानी विमेन ऐक्टिविस्ट्स मसीह अलीनेजाद ने हिजाब के इस आदेश के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया और पब्लिकली अपने हिजाब हटा दिए और अपनी वीडियोज़ सोशल मीडिया पर पोस्ट किए।  साथ ही हेस्टेग “नो टू हिजाब” नाम से एक सोशल मीडिया कैम्पेन चला दिया।  जैसे ही ये केम्पेन चला फिर से ईरानी सरकार के होश उड़ गये।  तब निदा रहमान ने ईरानी लड़कियों को होसला देते हुए एक अर्टिकल लिखा कि ईरान की बहादुर महिलाएं जो आज बगावती नजर आ रही हैं वो अपनी विरासत में लड़की के लिए बेहतर कल छोड़कर जाएंगी।  ये हौसलों से भरी हुई औरतें हैं, जो सरकार की आंख से आंख मिलाकर खड़ी हैं और कह रही है कि हम इंकार करते हैं तुम्हारे मुल्लावादी फैसले का।

उन्होंने अपने दुपट्टों को बग़ावत का परचम बना लिया है।  वो खुलकर एक देश की मुल्लावादी शक्तिशाली सरकार की आंख से आंख मिलाकर बात कर रही हैं और यही बगावत चुभ रही है कट्टरपंथी इस्लामिक सरकार को।  आखिर कैसे ईरानी लड़कियों ने अपने हिजाब, को सिरों से हटाकर उसका परचम बना लिया है।  वो इसे अपनी आज़ादी का झंडा बना रही हैं।  खुले बालों में वो हिजाब को हवा में लहरा रही हैं।

इस आंदोलन का सबसे खास पहलू यह है कि हिजाब के विरोध में महिलाओं का साथ युवा पुरुष भी दे रहे हैं।  इतना ही नहीं मसीह अलीनेजाद लगातार हिजाब विरोध करने वाली लड़कियों के वीडियो ट्वीटर पर पोस्ट कर रही हैं।  ट्वीट कर उसने कहा, ‘हम अपने हिजाब हटा रहे हैं और मुझे उम्मीद है कि हर कोई हमसे जुड़ेगा।  महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए मजबूर करना ईरानी संस्कृति का हिस्सा नहीं है।  यह तालिबान, आईएसआईएस और इस्लामी स्टेट की संस्कृति है।  अब बहुत हो गया है।  हिजाब हमारी संस्कृति नहीं है।

दरअसल, बगावत की शुरुआत ही दमन और ज़ुल्म से होती है।  महिलाएं अपने ऊपर थोपे गए कानून के खिलाफ़ सड़कों पर उतरीं गई, गिरफ्तारी होती गई। लेकिन ईरान की बहादुर महिलाएं जो आज बगावती नजर आ रही हैं।  वो अपनी विरासत में लड़की के लिए बेहतर कल छोड़कर जाएंगी।  ये हौसलों से भरी हुई औरतें हैं, जो सरकार की आंख से आंख मिलाकर खड़ी हैं और कह रही है कि हम इंकार करते हैं तुम्हारे पुरुषवादी फैसले का।  तुम चाहे कितना भी जोर लगा लो हमारी ज़िंदगी का फैसला हम खुद करेंगे।  ये औरतें दुनिया की तमाम औरतों में हौसला और हिम्मत भर रही हैं।  भले इन औरतों को आज विरोध का सामना करना पड़ रहा है लेकिन यही औरतें कल मिसाल बनेगीं।  आज भले ही ईरान की मुल्लाओं की सनकी पुलिस ने हिजाब उतारने के चलते दर्जनों लडकियों को मौत के घाट उतार दिया हो लेकिन ईरान के अन्दर मुस्लिम महिलाएं अपनी आजादी के लिए जंग लड़ रही है।  लेकिन इसके विपरीत अपने देश में मजहब हवाला देकर या कहो मजहबी दवाएं पीकर मुस्लिम लड़कियों से हिजाब की मांग कराई जा रही।  खुद उनसे ही उनकी गुलामी की मांग कराई जा रही है।  आशा है भारत की मुस्लिम लड़कियां ईरानी लडकियों से सबक लेगी।, क्योंकि उनकी माओं ने जिस शरीअत के लिए कभी वोट किया था आज वही शरीअत उनकी बेटियों के लिए मौत का कानून बन रहा है।

BY-RAJEEV CHOUDHARY

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