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क्या मरते पादरी जीसस का नाम नहीं लेते ?

अभी हाल ही में मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के एक आदिवासी विकासखंड बाजना का एक विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो में एक महिला डॉक्टर कोरोना के बहाने ईसाइयत का प्रचार करती दिखी। दरअसल कोरोना के चलते मध्य प्रदेश सरकार ने किल कोरोना प्रोग्राम के तहत कुछ डॉक्टर नर्स लोगों को डाइट प्लान समझाने के लिए बाजना भेजे थे “मसलन वो क्या खाएं क्या नहीं” तो इसी रेपिड रिस्पांस टीम में थीं एक डॉक्टर संध्या तिवारी। इस महिला डॉक्टर ने कोरोना में अपनी ड्यूटी करने के बजाय अपनी धर्मांतरण की दुकान खोल ली। यानि वो कोरोना को मारने के सरकारी नुख्से की बजाय जीसस वाले नुख्से लेकर निकल पड़ी और ईसाइयत के प्रचार के लिए पर्चे बाँटने लगी। किसी को शक हुआ और उसने इसके इस कृत्य की मोबाइल में विडियो बनाकर वायरल कर दिया।

इसी दौरान डॉक्टर संध्या के पास एक पर्चा भी बरामत हुआ, जिसमें लिखा है की स्वर्ग में विराजमान परमेश्वर पवित्र है। उसकी दृष्टि में सभी ने पाप किया है। इसलिए हर एक को प्रभु यीशु के पवित्र लहू में माफी मांग कर, अपने आपको उनके लहू से धोकर शुद्ध करने की जरूरत है. प्रभु यीशु ने कहा मैंने सब कुछ कर दिया है, अब जो विश्वास करेगा, वह बचाया जाएगा, आमीन!

हालाँकि इस पर्चे और भी बहुत सारी बकवास स्क्रिप्ट है लेकिन मुख्य बात ये है कि जीसस ने टेलीग्राम किया है कि मैंने सब कुछ कर दिया है, अब जो विश्वास करेगा, वह बचाया जाएगा। अब सवाल है क्या सच में ऐसा ही होगा? यदि इस प्रसंग में कुछ आंकड़े देखें तो दो बात ईसाई बहुत कहते है एक तो ये कि जो जीसस पर विश्वास करेगा वो पानी पर चलेगा और दूसरा जो जीसस पर विश्वास करेगा वो मरेगा नहीं।

अब जीसस तो इस दुनिया में नहीं है क्यों नहीं, शायद खुद पर विश्वास नहीं करते होंगे! अगर करते तो आज जिन्दा होते अकार्डिंग टू बाइबल। इसके अलावा अब रही बहते पानी पर चलने की बात, तो क्या कारण है आज तक वेटिकन में करीब 263 पॉप और दुनिया में करोड़ो बिशप पादरी और नन हुए लेकिन एक भी पानी पर नहीं चला? बहता हुआ पानी भी छोड़ दीजिये एक तसला पानी का भरकर उसमें ही खड़ा होकर दिखा देते तो लोग मान लेते कि हाँ इनका जीसस पर विश्वास है। लेकिन बाइबल की कहानियाँ है किस्से है वही रटाये जा रहे है। और जीसस पर विश्वास से एक बात और याद आई कि ये 263 पॉप क्यों मरे क्या इनका भी जीसस पर विश्वास नहीं था? ये तो जीसस के उत्तराधिकारी माने जाते है।

खैर अब जब विस्वास की बात आ ही गयी तो सभी आंकड़े चेक कर लेते है कि ये पादरी नन और बिशप क्यों मरते हुए भी जीसस पर विश्वास नहीं करते और गरीब लोगों को बताया जाता है कि तुम जीसस पर विश्वास करो?

एक एक करके अगर इस अन्धविश्वास की खाल उतारी जाये तो एक अंग्रेजी वेबसाईट है वेटिकन न्यूज इसी वेटिकन न्यूज की इसी 17 मई की एक रिपोर्ट है, कोरोना को लेकर। ये वेबसाइट लिखती है कि कोरोना के चलते भारतीय चर्च ने 160 पादरियों को खो दिया। खो दिया मतलब कहीं धुल आंधी में नहीं उड़े बस कोरोना वायरस से मारे गये। ये आंकड़े 10 अप्रैल से 17 मई के बीच के है. रिपोर्ट अपनी चिंता जाहिर करते हुए लिखती है कि ये आंकड़े बहुत खतरनाक है, क्योंकि हमारे पास केवल 30,000 कैथोलिक पुजारी हैं और यदि चार दैनिक मर जाते हैं, तो यह हम सभी के लिए बहुत चिंता का विषय है। इनमें केवल पादरी ही नहीं कुछ बड़े विशप भी थे जैसे पांडिचेरी-कुड्डालोर आर्कबिशप एंटनी आनंदरायर, झाबुआ के बिशप बेसिल भूरिया सीरो-मालाबार संस्कार के बिशप जोसेफ पादरी नीलांकविल भी शामिल थे। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि ज्यादातर वो पादरी और नन मरे है जो गाँवो में जाकर धर्मांतरण का कार्य कर रहे थे। फिलहाल 26 नन और 14 पादरियों का इलाज चल रहा है। तो पिछले दिनों केरल के मुन्नार में पिछले महीने एक वार्षिक कार्यक्रम में शामिल होने वाले चर्च ऑफ साउथ इंडिया के 100 से ज्यादा पादरी कोरोना पॉजिटिव पाए गए, इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले दो पादरियों की मौत भी हो गई कई अब भी तड़फ रहे है।

इस रिपोर्ट से आप समझ जाइये कि बाइबल की कहानी और जीसस पर विश्वास केवल अनपढ़ गरीब लोगों की अफीम है वरना पादरी हो या नन उनके लिए बीमारी का इलाज अस्पताल है। लेकिन फिर भी गरीबों के लिए ये पर्चे छापकर पॉप का 21 साल पहला दिया वो भाषण सार्थक कर रहे है जिसमें पॉप ने कहा था कि ईसा की पहली सहस्राब्दी में हम यूरोपीय महाद्वीप को चर्च की गोद में लाये, दूसरी सहस्राब्दी में उत्तर और दक्षिणी महाद्वीपों व अफ्रीका पर चर्च का वर्चस्व स्थापित किया और अब तीसरी सहस्राब्दी में भारत सहित एशिया महाद्वीप की बारी है. इसलिए भारत के मतांतरण पर पूरी ताकत लगा दो।

जबकि इसी धर्मांतरण के सहारे भारत ही क्यों यूरोप अमेरिका अफ्रीका में भी या तो पादरी गरीब लोगों को मार रहे है, या मर रहे है और मरते हुए पादरियों को जीसस बिलकुल भी नहीं बचा रहा है। ये सवाल इसलिए भी क्योंकि पिछले दिनों पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्र सिएरा लियोन में एक यूनाइटेड मेथोडिस्ट चर्च के बिशप की मौत हुई। इसके अलावा ब्रुकलिन में एक 49 वर्षीय पादरी कोरोनोवायरस द्वारा मारे गए जो पहले कैथोलिक धर्मगुरु बने ही थे। न्यू सेंट पॉल टैबरनेकल चर्च ऑफ गॉड के वरिष्ठ पादरी बिशप फिलिप ए ब्रूक्स की कोविड से मौत हुई। सबसे बड़ा धोखा तो जीसस ने अपने घर रोम या इटली के किया यहाँ तो करीब 100 पादरियों और सैंकड़ो ननों की मौत हुई।

इसके अलावा अफ्रीका में एक पादरी ने कोरोना से बचाने के लिए लोगों को डीटोल ही पिला दिया इससे 59 लोग मारे गये। जब ये मामला उछला तो युगांडा के दो पादरी तो सड़कों पर उतरकर लोगों को ये बताने लगे कि कोरोना वोरोना कुछ नहीं इन्हें प्रभु मार रहा है। अब ये बात समझ से बाहर है कि इनका प्रभु बचाता है या मारता है? क्योंकि नये नये ईसाई तो स्वर्ग नरक का लोलीपोप चूस रहे है। लेकिन ये जरुर तय है कि 21 वी सदी ज्ञान और विज्ञान की इस सदी में ये लोग अन्धविश्वास और धर्मांतरण की ढपली जरुर बजा रहे है और कमजोर इच्छा शक्ति वाले आलसी अनपढ़ लोग इन पर विश्वास जमाये बैठे है कि जीसस आएगा इन्हें जेट एयरवेज या इंडिगो में बैठाकर स्वर्ग ले जायेगा। स्वर्ग कहाँ है? इनसे पूछों तो इस बात पर ये खामोश हो जाते है, क्योंकि इनके पास इनका अपना विवेक और ज्ञान तो नहीं है ये तो पॉप के आदेश पर मानसिक रूप से गुलाम कहो या ये गली मोहल्ले में घूमकर घूमकर पादरियों और ननो द्वारा तैयार किये नये नये क्रिप्टो क्रिश्चियन है जो खुद को जीसस की ओलाद समझ रहे है।

राजीव चौधरी

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