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तमिल लड़की के बाइबल पर सवाल..?

एक तमिल लड़की नाम एस्टर धनराज उम्र कोई 35 वर्ष, एक तेलुगु हिन्दू ब्राह्मण के घर में जन्म लिया, जब थोड़ी बड़ी हुई तो ईसाई मिशनरीज के प्रभाव में आई, उसने जीसस के चमत्कारों के किस्से सुने, जिनमें अंधे देखने लगते थे, बहरे सुनने लगते थे, अगर मृत इन्सान को आवाज दे दे तो वे जिन्दा हो जाया करते थे। ऐसी अनेकों कपोल कल्पित कहानियाँ एस्टर ने सुनी तो उसका मन उसे खींचकर चर्च में ले गया। और एस्टर धनराज ने ईसाई मत को स्वीकार कर लिया।

एस्टर धनराज, जिसनें अपनी छोटी सी उम्र में दो बदलावों का सामना किया। पहला तो हिंदू धर्म से ईसाई मत में और दूसरा ईसाई मत से हिंदू धर्म में, और इसके बाद एस्टर ने जो धज्जियाँ मिशनरीज की उड़ाई वो वाकई काबिले तारीफ है। कहानी तमिलनाडु से शुरू होती है अमेरिका पहुँचती है और अमेरिका से वापस भारत आती है। एस्टर धनराज की उम्र उस समय करीब 17 वर्ष रही होगी जब वो मिशनरीज के बहकावे में आई थी। यानि सत्रह वर्ष की धनराज ने ईसाई बनने के कुछ वर्षों बाद शादी की फिर यूएसए चली गईं। अमेरिका पहुँचने के बाद धनराज ने एक प्रतिष्ठित अमेरिकी विश्वविद्यालय में औपचारिक रूप से ईसाई मत और बाइबल का अध्ययन शुरू किया। उस दौरान उसने पाया कि अमेरिकी पादरी भारतीय ईसाइयों से दूर रहते है, बिलकुल ऐसे जैसे अरब के मुसलमान भारतीय मुसलमानों को ओछा मानते है।

इन्फिनिटी फाउंडेशन को अपना इन्टरव्यू देते हुए एस्टर ने ईसाई मत पर अनेकों सवाल खड़े किये, पहला यही कि बाइबल पढ़कर लगता है जैसे सब कुछ काल्पनिक और जादुई है। ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी का निर्माण जीसस से बस कुछ साल पहले हुआ हो वो भी चुटकियों में। कभी मिटटी उठाकर इन्सान बना दिए, कभी धरती कभी चाँद कभी सूरज वह पृथ्वी के निर्माणवाद पर भी सवाल खड़े करती है। कि बाइबल झूठी और आधारहीन पुस्तक है वह मात्र कुछ पूर्वाग्रह से शिकार साम्राज्यवादी लोगों की कल्पना है।

एस्टर ने आरोप लगाया कि बाइबल में उसकी जाति नहीं पाई गई है, पूरी बाइबल में कहीं भी भारत का उल्लेख नहीं है, उसमें सिर्फ रोम इटली के आसपास का सिमटा हुआ इतिहास है। वह कैसी धार्मिक पुस्तक है जिसमें स्त्री को चुडेल जैसे शब्दों से पुकारा गया है।  एस्टर पूछती है, अगर बाइबल ईश्वरीय ग्रन्थ है तो विरोधाभास कैसे हो सकते हैं? आखिर कैसे बाइबिल के पाठ में त्रुटियां हो सकती हैं। जबकि इसे ईश्वर द्वारा लिखित पवित्र ग्रन्थ बताया जाता है। आखिर उसमें ये किसने लिखा कि यदि बाइबल को झूठा कहा तो परमेश्वर का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा.? क्या कोई ईसाई बता सकता है कि 2500 साल पहले जब बाइबल नही थी तो क्या ईश्वर नहीं था? और अगर बाइबल समाप्त हो गयी तो क्या ईश्वर समाप्त हो जायेगा? क्या ईश्वर सिर्फ एक पुस्तक के सहारे टिका है.?

हालाँकि एस्टर से पहले भी बाइबल के दावों पर कई बार विज्ञान भी सवाल उठा चूका है और वैज्ञानिक भी। कहा जाता है किसी भी सत्य को समझने के लिए उसके अंत तक जाना होता है, एक समय डार्विन ने जो सिद्धांत दिया वो बाइबल को पढ़कर उसके विरोध में दिया था।डार्विन पादरी बनना चाहता था लेकिन जब बाइबल पढ़ी तो सवाल खड़े हो गये। कि हम कौन हैं? कहां से आये हैं? सृष्टि में इतनी विविधता कैसे और क्यों उत्पन्न हुई? क्या इस विविधता के पीछे कोई एक सूत्र है?

जब ऐसे प्रश्नों ने डार्विन को कुरेदना शुरू किया तो उन्होंने बाइबल में इनका उत्तर खोजने का प्रयास किया। अब बाइबिल के मुताबिक तो ईश्वर ने एक ही सप्ताह में सृष्टि की रचना कर दी थी जिसमें उसने चाँद, सूरज पेड़-पौधे, जीव-जंतु, पहाड़-नदियां और मनुष्य को अलग-अलग छह दिन में बनाया था। यह सब पढ़कर डार्विन को घोर निराशा हाथ लगी कि छ: दिन में यह सब नहीं हो सकता सब कुछ धीरे-धीरे हुआ होगा।

इस कारण उन्होंने विकासवाद की स्थापना कर दी। क्योंकि उनके लिखे कई पत्रों और उनकी कई किताबों में ईसाइयत के प्रति उनके विरोधी विचार साफ नजर आते हैं। अपनी जीवनी में डार्विन ने लिखा था जिन चमत्कारों का समर्थन ईसाइयत करती है उन पर यकीन करने के लिए किसी भी समझदार आदमी को प्रमाणों की आवश्यकता जरूर महसूस होगी।

ठीक इसी तरह एक छोटी सी कहानी गैलीलियो के जीवन से भी जुडी है। जिसने बहुत पहले इनके के झूठ पर सवाल खड़े कर दिए थे। क्योंकि गैलीलियो तक सारा यूरोप यही मानता रहा कि सूरज पृथ्वी का चक्कर लगाता है, जब गैलीलियो ने प्रथम बार कहा कि न तो सूर्य का कोई उदय होता है, न कोई अस्त होता है। बल्कि पृथ्वी ही सूर्य के चक्कर लगाती हैं, तब गैलीलियो को वेटिकन पोप की अदालत में पेश किया गया।  सत्तर वर्ष का बूढ़ा आदमी, उसको घुटनों के बल खड़ा करके कहा गया, तुम क्षमा मांगो! क्योंकि बाइबिल में लिखा है कि सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है, पृथ्वी सूर्य का चक्कर नहीं लगाती, और तुमने अपनी किताब में लिखा है कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है। तो तुम बाइबिल से ज्यादा ज्ञानी हो? बाइबिल, जो कि ईश्वरीय ग्रंथ है! जो कि ऊपर से अवतरित हुआ है!

गैलीलियो मुस्कुराया और उसने कहा, आप कहते हैं तो मैं क्षमा मांग लेता हूं, मुझे क्षमा मांगने में कोई अड़चन नहीं है। आप अगर कहें तो मैं अपनी किताब में सुधार भी कर दूंगा।  मैं यह भी लिख सकता हूं कि सूरज ही पृथ्वी के चक्कर लगाता है, पृथ्वी नहीं, लेकिन आपसे माफी मांग लूं, किताब में बदलाहट कर दूं, मगर सचाई यही है कि चक्कर तो पृथ्वी ही सूरज के लगाती है, सचाई नहीं बदलेगी। मेरे माफी मांग लेने से सूरज फिक्र नहीं करेगा, न पृथ्वी फिक्र करेगी, मेरी किताब में बदलाहट कर देने से अभी तक बाइबल गलत है इसके बाद मेरी किताब भी गलत हो जाएगी।

सिर्फ यही नहीं कुछ समय पहले उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर जेम्स ए ग्रे बार्ट एहरमन ने मसीह में अपना विश्वास खो दिया था क्योंकि उन्होंने जाहिर तौर पर बाइबल में एक के बाद कई गलतियों को खोज लिया था। उसने कहा क्या अमानवीयता ईसाई मत का एक अनिवार्य सिद्धांत होना चाहिए? क्योंकि कहा जाता है कि बाइबल परमेश्वर ने लिखी है तो क्या उसमें जो अमानवीयता लिखी है वो भी ईश्वर ने लिखी है? क्या यह अज्ञानता मानव जाति के उद्धार बजाय नुकसान नहीं पहुंचा रही है.?

इसी तरह बिली ग्राहम नाम के एक प्रोफेसर ने एक बार कहा था कि हे भगवान! इस पुस्तक में बहुत सी बातें हैं जो मुझे समझ नहीं आ रही हैं इसे पढ़कर मैं सिर्फ झूठ का प्रचार कर सकता हूँ ईश्वर का नहीं, इसे पढ़कर  मैं किसी दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक को उनके सवालों का जवाब नहीं दे सकता हूं, मैंने बाइबल से दूर हटकर ईश्वर की उपस्थिति और शक्ति को महसूस किया जिसे बाइबल के साथ मैंने कभी महसूस नहीं किया था।

ठीक इसी तरह अब एस्टर धनराज बता रही है कि काश बाइबिल में कई कहानियों के बारे में किसी के पादरी के पास कोई जवाब होता। पहला किताब उत्पत्ति के ही बारे में एस्टर कहती है मुझे विज्ञान से प्यार था जब मैं बड़ी हो रही थी मेरे लिए गणित उबाऊ था, अंग्रेजी आसान थी, लेकिन विज्ञान आकर्षक था, मैं सृष्टि की उत्पत्ति की कहानी के साथ पृथ्वी की उम्र जानना चाहती थी। लेकिन बाइबल में जो उत्त्पति की कहानी बताई वह सिर्फ हँसने योग्य है, हालाँकि मेरे पास कई अन्य परेशान करने वाले प्रश्न थे कि कैसे इस भगवान ने उन लोगों का कत्ल किया जो अपने चुने हुए लोगों यहूदियों के नहीं थे, अब मैं अपने मूल धर्म में वापिस आई हूँ मैं फिर से खुद को सहज महसूस कर रही हूँ।

लेख-राजीव चौधरी

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