नेत्रदान के प्रति जागरूकता लगातार बढ़ती जा रही है। इसी क्रम में एक परिवार ऐसा भी है जहां मरणोपरान्त नेत्रदान करना एक परम्परा बन चुका है।
जिला प्रधान आर्य समाज कोटा के अर्जुनदेव चड्ढा का परिवार इसका एक उदाहरण है जिनके घर में पहला नेत्रदान वर्ष 1987 में उनके पिताजी श्री रामलाल चड्ढा जी का हुआ, जिस समय नेत्रदान के बारे में जानकारी का अभाव था। इसके बाद उनकी पत्नी श्रीमती संतोष चड्ढा जी का देहान्त वर्ष 1997 में हुआ उनका भी नेत्रदान किया गया। इसी तरह वर्ष 2010 में इनके बड़े भाई श्री बलदेव राज चड्ढा का भी नेत्रदान किया गया।
आज सम्पूर्ण परिवार के 18 सदस्यों ने एक साथ इस नेक कार्य नेत्रदान महादान का संकल्प लिया जिसमें तीन पीढ़ीयां शामिल रही। 18 वर्षीय साक्षी ने कहा कि मेरे दादी के नेत्रदान होने के कारण वो आज भी इस दुनिया में मौजूद है और अमर हैँ। इसी तरह मैंने भी नेत्रदान का संकल्प किया है, जिससे मैं मृत्यु के बाद भी किसी नेत्रहीन को रोशनी देकर जीवित रह सकूं।
शाइन इण्डिया फाउण्डेशन के अध्यक्ष डॉ. कुलवन्त गौड़ ने बताया कि संस्था शाइन इण्डिया के सदस्य घर-घर जाकर भी नेत्रदान के संकल्प पत्र भर रहे हैं और साथ ही नेत्रदान से जुड़ी भ्रांतियों को दूर कर नेत्रदान की सम्पूर्ण जानकारी देते हैं।