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न्यूजीलैंड हमला: ऐसे हमले क्या आगे भी होंगे..?

यह एक दुखद दिन था जब क्राइस्टचर्च की दो मस्जिदों में अंधाधुंध फायरिंग में करीब 49 लोग मारे गए. लगभग 30 वर्षो के बाद न्यूजीलैंड में कोई ऐसी आतंकित कर देने वाली घटना हुई है. हो सकता है इसी कारण इसे वेटिकन के पॉप फ्रांसिस से लेकर विश्व भर के मीडिया जगत ने इतनी प्रमुखता से लिया और अपनी संवेदना व्यक्त की है. न्यूजीलैंड  की प्रधानमंत्री जैसिंड्रा एर्डर्न ने इसे अपने देश के इतिहास का सबसे काला दिन करार दिया. तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने कहा, ‘‘इस हमले के बाद इस्लाम को लेकर शत्रुता का माहौल व्यक्तिगत उत्पीड़न की सीमाओं से नरसंहार के स्तर तक पहुंच गया है. मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने उम्मीद जताई कि न्यूजीलैंड जिम्मेदार आतंकियों को गिरफ्तार करेगा. अगर तत्काल कदम नहीं उठाये जाते तो ऐसी अन्य विपदाओं की खबर आएगी.

पुलवामा हमले पर मौन साधने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस हमले के पीछे इस्लामोफोबिया यानि इस्लाम या मुसलमानों से घृणा को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि किसी एक मुस्लिम के आतंकी होने की वजह से पूरी मुस्लिम आबादी को जिम्मेदार माना जाता है जबकि आतंक का कोई मजहब नहीं होता. इस दुःख में दो चीजें साफ झलक रही है एक तो राजनीति और दूसरी संवेदना किन्तु हर आतंकवादी घटना के बाद शोक व्यक्त करने की रस्मअदायगी के बाद यही जुमला बोला जाता है कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता.

अगर क्राइस्टचर्च की दो मस्जिदों में हुए हुए आतंकी हमले का विश्लेषणात्मक अध्यन करें कई चीजे सामने निकल आ रही है और कई चीजें संवेदना के बहाने दफन करने की कोशिश की जा रही है. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मैरिसन ने जोर देकर कहा कि क्राइस्टचर्च में गोलीबारी करने वाला हमलावर ब्रैंटन टैरंट ऑस्ट्रेलिया का नागरिक था और कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित था. यानि एक हमले से हमलावर ब्रैंटन टैरंट की विचारधारा उसकी सोच उसका धार्मिक और सामाजिक लक्ष्य पता चल गया किन्तु सीरिया और इराक को खून की भूमि बनाकर पूरी दुनिया पर आतंक और बंदुक के बल पर इस्लाम का राज्य स्थापित करने का सपना देखने वाले बगदादी का मजहब क्या है? यह हैरान कर देने वाला विषय जरुर है क्योंकि अफगानिस्तान में हर हो रहे बम धमाकों उनसे जा रही मासूमों की जान के बावजूद भी तालिबानियों का मजहब क्या है कोई जुबान खोलने को तैयार नहीं होता जबकि वह लोग खुलेतौर पर इस्लामिक कानून शरियत की मांग कर रक्तपात मचा रहे है न कि आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष संविधान के लिए.

पाक प्रधामंत्री इमरान खान ने संवेदना की रस्मअदायगी में जो कहा कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता चलो एक पल को मान भी लिया जाये लेकिन सवाल फिर यही घूमकर आता है कि आखिर ओसामा बिन लादेन का क्या मजहब था? भारत के ताज होटल पर हमला सैंकड़ों लोगों की जान लेने की साजिशकर्ता हाफिज सईद का मजहब क्या है? इन लोगों के द्वारा दुनिया भर में इस्लाम के नाम पर हो रहे हमले आखिर किस लालच में किये जा रहे है.? इस्लाम के नाम पर फ्रांस की पत्रिका शार्लि हब्दों के कार्टूनिस्ट समेत कई कर्मचारियों को मौत के घाट क्यों उतार दिया गया था?

ये सही है पश्चिमी और यूरोपीय देशों में गोरे और काले के भेदभाव का चलन है यानी गोरे लोगों का वर्चस्व. इन देशों में रहने वाले गोरे लोग खुद को दूसरे लोगों से बेहतर मानते हैं. हमलावर भी इसी मानसिकता से ग्रस्त तथा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से प्रभावित बताया जा रहा है. मीडिया की माने तो हमलावर ब्रेंटन ने अपने बारे में बताया है कि वह एक साधारण श्वेत शख्स है, जिसका जन्म ऑस्ट्रेलिया में हुआ था. उसने अपनी मंशा का ऐलान करते हुए 73 पेज का एक मैनिफेस्टो भी लिखा है हमला क्यों किया इस शीर्षक के तहत उसने लिखा है कि यह विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हजारों लोगों की मौत का बदला लेने के लिए है. यानि इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि यह कट्टर इस्लामवादियों द्वारा इस्लाम के नाम पर साम्राज्यवाद और हिंसा के विरोध में किया गया एक प्रतिकार था. क्योंकि जिन सीरियायी शरणार्थियों को जर्मनी ने मानवता के नाम पर शरण दिया, आज वह लोग जर्मनी के आम नागरिकों के लिए नासूर बने हुए हैं.

घटना संवेदनाशील है दुखद भी है किन्तु मात्र इसे संवेदना के कफन में लपेटकर दफन मत कीजिए इसमें हत्यारे का मजहब मत ढकिये न उसे उजागर कीजिए बल्कि घटना और इस निर्मम जघन्य कांड की तह तक जाइये हत्यारे की विचारधारा शरणार्थी विरोधी क्यों बनी उसका पता भी चलना चाहिए कहीं ऐसा तो नहीं कट्टर इस्लाम वादी मजहब के नाम जो कर रहे है और उदारवादी इस्लामवादी उसे ढक रहे है. यह सब उसी का नतीजा हो?  क्योंकि 2016 ढाका में हुए आतंकवादी हमलों में उन सभी लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था जिनको कुरान की आयतें याद नहीं थी फिर यह कहा गया था कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता है. यदि इन्ही जुमलों से हर आतंकी घटनाओं की रस्मअदायगी चलाकर उसे ढकने का प्रयास जारी रहा तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक भयमुक्त और सुरक्षित समाज प्रदान नही कर पाएंगे तथा प्रतिकार के लिए हमलावर ब्रैंटन टैरंट जैसे लोग जन्म लेते रहेंगे क्राइस्टचर्च जैसी घटनाएँ होती रहेगी..

लेख-राजीव चौधरी

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