Categories

Posts

वीर हकीकत राय बलिदान की अनूठी गाथा

यह कहानी सुनकर किसका ह्रदय द्रवित नहीं होता होगा शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी आंखों नम न हो और इसके बाद जेहन में यह सवाल न उभरे कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि एक 14  वर्ष के बच्चें हकीकत राय से समूचा मजहब डर गया था। वीर हकीकत राय तो सेंकडों वर्ष पहले बसन्त पंचमी के दिन अपने धर्म पर बलिदान हो गया लेकिन बलिदान होने से पहले इस नन्हे बालक ने अपनी निडरता का जो उदहारण पेश किया उसे इतिहास मन में लिए हमेशा गर्व से खड़ा रहेगा।

वीर हकीकत राय का जन्म 1720 में सियालकोट (अब पाकिस्तान में) लाला बागमल पूरी के यहाँ हुआ इनकी माता का नाम कोरा था। लाला बागमल सियालकोट के तब के प्रसिद्ध सम्पन हिन्दू व्यपारी थे। वीर हकीकत राय उनकी इकलोती सन्तान थी। उस समय देश में बाल विवाह प्रथा प्रचलित थी,क्योकि हिन्दुओ को भय रहता था कि कहीं मुसलमान उनकी बेटियो को उठा कर न ले जाये। जैसे आज भी पाकिस्तान और बांग्लादेश से समाचार आते रहते है। इसी कारण से वीर हकीकत राय का विवाह बटाला के निवासी कृष्ण सिंह की बेटी लक्ष्मी देवी से बारह वर्ष की आयु में कर दिया गया था।

उस समय देश में मुगल शाशन था। जिन्होंने देश के सभी राजनितिक और प्रशासिनक कार्यो के लिये फारसी भाषा लागु कर रखी थे। देश में सभी काम फारसी में होते थे इस कारण हिन्दुओं को भी न चाहते हुए मदरसों में फारसी भाषा सीखनी पड़ती थी। हकीकत राय को भी फारसी भाषा के ज्ञान के लिये मोलवी के पास उसके मदरसे में पढ़ने के लिये भेजा गया कहते है कि वो पढ़ाई में अपने अन्य सहपाठियों से अधिक तेज था, जिसके चलते मुसलमान बालक हकीकत राय से ईर्ष्या करने लगे थे।

एक बार हकीकत राय का अपने मुसलमान सहपाठियों के साथ झगड़ा हो गया। मुसलमान बच्चों ने हिन्दुओं के महापुरुषों देवी देवताओं को लेकर अपशब्द कहे जिसका हकीकत ने विरोध करते हुए कहा,”क्या यह आप को अच्छा लगेगा यदि यही शब्द मै आपकी बीबी फातिमा के सम्बन्ध में कहुँ ? इसलिये आप को भी अन्य के प्रति ऐसे शब्द नही कहने चाहिये।

बस इतनी सी बात थी इस पर मुस्लिम बच्चों ने शोर मचा दिया की इसने बीबी फातिमा को गालिया निकाल कर इस्लाम और मोहम्द का अपमान किया है। जैसा कि अभी हाल ही पाकिस्तान में आसिया बीबी के साथ भी हुआ हैं। वैसे ही उन्होंने हकीकत को मारना पीटना शुरू कर दिया। मदरसे के मोलवी ने भी मुस्लिम बच्चों का ही पक्ष लिया। शीघ्र ही यह बात सारे स्यालकोट में फैल गई। लोगो ने हकीकत को पकड़ कर मारते-पिटते स्थानीय हाकिम आदिल बेग के समक्ष पेश किया। वो समझ गया की यह बच्चों का झगड़ा है, मगर मुस्लिम लोग उसे मृत्यु-दण्ड की मांग करने लगे।

हकीकत राए के माता पिता ने भी दया की याचना की तब आदिल बेग ने कहा मै मजबूर हूँ, परन्तु यदि हकीकत इस्लाम कबूल कर ले तो उसकी जान बख्श दी जायेगी।  किन्तु वो 14 वर्ष का बालक हकीकत राय ने धर्म परिवर्तन से इंकार कर दिया।

मुस्लिम हाकिमो को मोटी रिश्वत देकर हकीकत के पिता ने मामला स्यालकोट से लाहौर भिजवा दिया। किन्तु यहाँ भी वही शर्त रखी गयी जो सिखों के पांचवे गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव और नोवें गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी को भी इस्लाम कबूलने अथवा शहीदी देने की शर्त रखी गयी थी। हकीकत राय को मुसलमान बन जाने के लिये तरह तरह से समझाया। माँ ने अपने, दूध का भी वास्ता दिया। मगर हकीकत ने कहा माँ! यह तुम क्या कर रही हो। तुम्हारी ही दी शिक्षा ने तो मुझे ये सब सहन करने की शक्ति दी है। मै कैसे तेरी दी शिक्षाओं का अपमान करूं आप ही ने सिखाया था कि धर्म से बढ़ के इस संसार में कुछ भी नही है आत्मा अमर है तो फिर मैं मौत से क्यों डरें? हकीकत राय अपने धर्म से टस से मस नहीं हुआ उसने पूछा क्या यदि मै मुसलमान बन जाऊ तो मुझे मौत नही आएगी? क्या मुसलमानो को मौत नही आती?  तो उलेमाओं ने कहा मौत तो सभी को आती है। तब हकीकत राय ने कहा तो फिर मै अपना धर्म क्यों छोड़ू जो सभी को ईश्वर की सन्तान मानता है।

हकीकत ने प्रश्न किया आखिर में क्यों इस्लाम स्वीकार करू जो मेरे मुसलमान सहपाठियों के मेरी माता भगवती को कहे अपशब्दों को सही ठहराता है मगर मेरे न कहने पर भी उन्ही शब्दों के लिये मुझसे जीवित रहने का भी अधिकार छिन लेता है। जो दीन दूसरे धर्म के लोगो को गालिया निकलना, उन्हें लूटना, उन्हें मारना और उन्हें पग पग पर अपमानित करना खुदा का हुक्म मानता हो  मै ऐसे धर्म को दूर से ही सलाम करता हूं।

वसंत पंचमी के उत्सव पर मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला के काल में एक नन्हे बालक हकीकत राय पूरी को जब वधशाला की ओर ले जाया जा रहा था तो पूरा नगर अक्षुपूरित आंखों से उसे देख रहा था। कहते है हजारो लोग “अल्लाहू-अकबर,अल्लाहू-अकबर” चिल्लाते हुये उस बालक पर पत्थर बरसा रहे थे, उसका सारा शरीर पत्थरो की चोट से लहूलुहान हो गया और वो बेहोश हो गया। अब पास खड़े जल्लाद को उस बालक पर दया आ गयी की कब तक यह बालक यूँ पत्थर खाता रहेगा। इतना सोच कर उसने अपनी तलवार से हकीकत राय का सिर काट दिया। रक्त की धराये बह निकली और वीर हकीकत राय बसन्त पंचमी के दिन अपने धर्म पर बलिदान हो गया। एक माँ की कोख अमर हो गयी। एक पिता गर्व धर्म पर बलिदान हो गया। ऐसे महान सपूत धर्मवीर हकीकत राय को उनके बलिदान दिवस पर आर्य समाज का शत-शत नमन।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *