यह सर्वमान्य तथ्य है कि चार वेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेदख् ही संसार के सबसे प्राचीन धर्म ग्रन्थ वा पुस्तकें हैं। वेद ही संसार के प्रमुख व सत्य धर्म ग्रन्थ हैं, इसकी एक कसौटी यह है कि वेद में ईश्वर को अनेक गुणों एवं विशेषणों सहित सच्चिदानन्द, सर्वज्ञ, अनादि, नित्य, निराकार और सर्वव्यापक बताया गया है। संसार में जितने मत, पन्थ, सम्प्रदाय आदि प्रचलित हैं वह सब प्रायः ईश्वर को एकदेशी, स्थान विशेष पर रहने वाला ही स्वीकार करते हैं जबकि वैदिक धर्म उनसे करोड़ों व अरबों वर्ष पूर्व उत्पन्न होने पर भी ईश्वर को निराकार एवं सर्वव्यापक मानते हैं। वेद में न तो अवतारवाद है और न किसी के ईश्वर पुत्र व सन्देश वाहक होने का सिद्धान्त।
आज का युग ज्ञान विज्ञान का युग है। यह समस्त संसार वा ब्रह्माण्ड ईश्वर की रचना है। इस संसार की रचना किसी एकदेशी सत्ता से हुई कदापि नहीं हो सकती। इसे तो कोई निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, अजन्मा, सर्वव्यापक व सर्वान्तर्यामी सत्ता ही बना सकती है। आज ब्रह्माण्ड का जितना विस्तृत ज्ञान है उतना आज से हजार या दो-तीन हजार वर्ष पूर्व नहीं था। तब किसी को यह पता भी नहीं था कि इस ब्रह्माण्ड में अनन्त सूर्य, अनन्त पृथिव्यां व सौर मण्डल हैं जिनका परिमाण हर प्रकार से अनन्त है। वेदों में इसका ऐसा ही वर्णन है जबकि अन्य किसी धर्म व पंथ के धर्मग्रन्थ में वेदों के समान सत्य व यथार्थ वर्णन नहीं है। इसी कारण वेद पूर्ण सत्य ग्रन्थ हैं और ईश्वरीय ज्ञान सिद्ध होते हैं क्योंकि किसी मनुष्य या मनुष्य समुदाय की यह क्षमता नहीं कि वह संसार की समस्त सत्य विद्याओं का एक ग्रन्थ बना सके। वेद और ईश्वर विषयक सत्य व यथार्थ ज्ञान के लिए महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का सत्यार्थ प्रकाश व अन्य अनेक ग्रन्थ मार्गदर्शक हंै जिनका अध्ययन कर एक साधारण व्यक्ति भी सृष्टि के यथार्थ रहस्यों को जान सकता है। अन्य किसी ग्रन्थ वह ज्ञान प्राप्त नहीं होता जो कि सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ व अन्य ऋषि ग्रन्थों से होता है।
वेदों में न केवल एक ईश्वर जो कि निराकार व सर्वव्यापक है, शरीर व नस नाड़ी के बन्धन से रहित है, ऐसे स्वरूप वाले ईश्वर का निश्चयात्मक वर्णन है। वेद जैसा ईश्वर व सृष्टि के रहस्यों का वर्णन संसार के किसी मत-पन्थ के ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं है। अतः वेद अपौरुषेय ग्रन्थ सिद्ध हैं। न केवल ईश्वर का सत्य स्वरूप ही वेदों में वर्णित है अपितु जीवात्मा और सृष्टि का सत्यस्वरूप भी वेद व उनके व्याख्याग्रन्थों में वर्णित है। वेदों की सच्ची व मोक्ष लाभ कराने वाली ईश्वर की उपासना का ज्ञान व विज्ञान भी वेदों से ही प्राप्त होता है। अतः वेद संसार के सभी मनुष्यों के एकमात्र धर्म ग्रन्थ सिद्ध हैं। महाभारत काल तक वेद ही पूरी सृष्टि के सर्वमान्य धर्म ग्रन्थ रहे हैं और अनुमान से कह सकते हैं कि ज्ञान विज्ञान की वृद्धि के इस युग में आने वाले समय में वेद ही समस्त संसार के एकमात्र धर्मग्रन्थ होंगे। वेदों के वह सभी व्याख्याग्रन्थ जो पूर्णतः वेदानुकूल हैं, वही भविष्य में सर्वत्र स्वीकार्य होंगे। इसका यह प्रमाण है कि सूर्य को ग्रहण अवश्य लगता है परन्तु वह स्थाई नहीं होता। कुछ ही समय में सूर्य ग्रहण समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार वेद सूर्य पर महाभारत काल व उसके बाद से कुछ समय के लिये जो ग्रहण लगा है वह आने वाले समय में छंट जायेगा और पश्चात् वेद सूर्य की भांति अपनी पूरी आभा व तेज के साथ पूरे विश्व में अपनी ज्ञान की किरणों से सुलभ होगा। संसार में एक सर्वव्यापक ईश्वर के होते हुए यह संसार अधिक समय तक अज्ञानी व अविद्याग्रस्त नहीं रह सकता। रात्रि की समाप्ती होती है और उसके बाद प्रातः अवश्य आती है। वर्तमान अर्धरात्रि का काल भी शीघ्र ही अवश्य समाप्त होगा, ऐसी आशा सभी आस्तिक बन्धुओं को रखनी चाहिये। इत्योम् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य