सेवा कार्य सबसे कठिन कार्य होता है। कहते हैं-बिना सेवा के मेवा नहीं मिलती। करो सेवा पाओ मेवा।
महर्षि मनु ने भी कहा है-
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोप सेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्।
अर्थात् सेवा करने से आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-सेवा काम कठिन जग जाना। अर्थात् सेवा बहुत कठिन कार्य होता हैं। अत: सेवा का बड़ा महत्व है। सेवा करके हम बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं।
सेवा का क्षेत्र बड़ा विस्तृत है। यथा-देशसेवा, समाजसेवा, गौसेवा, गुरुसेवा, माता-पिता की सेवा, बच्चे की सेवा, पति सेवा, असहाय सेवा आदि। इन सेवाओं में समाज सेवा का प्रमुख स्थान है। सेवा करने से दूसरों के ऊपर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसके द्वारा उनके हृदय पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
समाज सेवा क्या है, समाज सेवा है-गरीबों की सहायता करना, बेसहारों को सहारा देना, जरूरतमंद की आर्थिक मदद करना, वस्त्रहीन को वस्त्र प्रदान करना, नि:शुल्क दवा का वितरण करना, निर्धन विद्यार्थियों को विद्यालयी गणवेश व पाठ्य सामग्री का वितरण करना, जहां अभाव हो उस अभाव को यथाशक्ति मिटाने का प्रयत्न करना आदि। इन कठिन कार्यों मे से हम किसी भी कार्य को करके आर्य समाज के नाम को रोशन कर सकते हैं। ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं जो इन कार्यों को कर रही हैं तो हम भी क्यों न इन कार्यों को करके आर्य समाज का नाम गली-मुहल्ले, गांव-गांव में पहुंचा दें। इन कार्यों को करने से तत्स्थानों में आर्य समाज का नाम गली-मुहल्ले, गांव-गांव में पहुंचा दें। इन कार्यों को करने से तत्स्थानों में आर्य समाज की मुहर लग जाए, फिर वहां शनै: शनै: वैदिक ज्ञान का भी संदेश दे सकते हैं। पहले अपनी पहचान बनानी होगी। बिना अपनी पहचान बनाए समाज में अपनी छाप नहीं छोड़ सकते। सेवाकार्य लोगों के हृदय में महत्वपूर्ण स्थान बना लेता है। इसके द्वारा दिल पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और सच्चे मानव की श्रेणी में आ सकते हैं।
मैंने ऐसे तमाम सेवा के कार्य किए हैं, जैसे सड़क पर ठिठुरते लोगों को मैंने कम्बल व रजाई ओढ़ाकर आर्य समाज का परिचय दिया है। निर्धन विद्यार्थियों को पाठ्यसामग्री, विद्यालय गणवेश, बैग बांटकर आर्य समाज का नाम रोशन किया है। जिन लोगों के बीच कोई नहीं जाता, ऐसे गाड़िया लुहारों के परिवारों के बीच यज्ञ कार्य सम्पन्न करके आर्य समाज का संदेश दिया है। प्यासे लोगों को शर्बत व जल पिलाकर एक सुखद अनुभूति की है। अनाथाश्रमों में बच्चों को उनकी जरूरत की चीजें पहुंचाई हैं। नए-पुराने कपड़े इकट्ठा करके निर्धन परिवारों के मध्य जाकर सेवाकार्य किया है। पक्षियों के लिए परिंडे बांधे हैं। जेल में बंद कैदियों को भी सहायता सामग्री पहुंचाई है। नशे में लत में धुत्ते रहने वाले नशेड़ियों के बीच जाकर सेवा के माध्यम से नशे की हानियों को बतलाया है। निर्धन परिवारों के लड़के-लड़कियों के विवाह में उपहार व आर्थिक मदद करके उनके हृदय में आर्यसमाज के प्रति निष्ठा उत्पन्न की है। ऐसे अनेक कार्य मैंने किए हैं, जो सेवा से संबंधित हैं। इन समस्त कार्यों से लोगों ने आर्य समाज की जाना है और पहचाना है। ऐसे कार्यों से आर्य समाज के प्रति लोगों में जो भ्रांति है वह स्वत: समाप्त हो जाती है। इन कार्यों से प्रथम हम अपनी पहचान बना लें, तत्पश्चात् अपना वैदिक संदेश प्रदान करने से उनके मन में स्थायी प्रभाव पड़ जाता है।
उस समय की याद आती है जब विद्यालयों में जाने पर आर्य समाज का नाम सुनते ही लोग नाक-भौं सिकोड़ते थे, बिदकते थे, बात भी सुनने को राजी नहीं थे, किन्तु जब उनके मध्य मैं निर्धन बच्चों की मदद के लिए सामग्री लेकर गया तो उन्होंने सादर बैठाया। इस कार्य के पश्चात् शनै: शनै: विद्यालय में आर्य समाज ने अपना स्थान बना लिया। उनके मन से आर्य समाज के प्रति जो भ्रान्त धारणा थी, वह मिट गई।
गुजरात के भुज में जब भूकम्प आया था उस समय आर्य समाज संस्था की ओर से एक ट्रक हवन सामग्री और घी गया था ताकि हवन के माध्यम से पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके। इस कार्य से आर्य समाज की बड़ी अच्छी छवि बनी। यह भी समाजसेवा का कार्य है जो पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा हुआ है। ऐसी प्रत्येक प्राकृतिक आपदाओं में आर्यसमाज का योगदान होना चाहिए।
सेवा का सीधा संबंध हृदय से है। जो कार्य हृदय से जुड़ जाता है वह अमिट हो जाता है। भूखे को पहले भोजन चाहिए ज्ञान नहीं। प्यासे को पहले पानी चाहिए, ध्यान नहीं। रोग पीड़ित को पहले दवा चाहिए, उपदेश नहीं। बेघर-बार को पहले घर चाहिए, संदेश नहीं। आसहाय को पहले सहायता चाहिए, आदर्शवादी बातें नहीं। ठिठुरते को पहले वस्त्र चाहिए, लच्छेदार भाषण नहीं। यदि हम इन कार्यों से अपने को जोड़ लें तो अपना वैदिक संदेश आसानी से जन-जन तक पहुंचा सकते हैं। किया गया कार्य स्वयं में बहुत बड़ा उपदेश है। आचारण की भाषा मौन होती है। सदाचारी का हर क्रियाकलाप पल-पल मौन उपदेश देता है।
एक बार सेवाकार्य से जुड़ करके तो देखिए, स्वत: इस कार्य को महत्व देना प्रारंभ कर देंगे। अपने साथ आर्य समाज का बैनर जरूर रखें। आर्य समाज के झंडे के नीचे कार्य करें। इससे आर्य समाज की पहचान बनेगी और लोगों के मध्य अच्छी छवि उभरेगी। आर्य समाज पहुंचा दलितों की बस्ती में-इस शीर्षक से छपा समाचार लोगों को खूब पसंद आया। मुझे भी दलित बस्तियों में जाकर एक नई अनुभूति हुई। निर्धन लोगों के जीवन स्तर को नजदीक से देखने समझने का मौका मिला। सेवा के अनेक क्षेत्र हैं-एक बार अस्पाताल में रोगियों का हालचाल तो पूछने जाइए, विद्यालय में जाकर गरीब बच्चों के मासूम चेहरे तो देख आइए, मजदूरों की बस्तियों में नंगे पांव घूमते नन्हें-मुन्ने बच्चों को निहारिए, ठंड में ठिठुरते और गर्मी में तपते मजदूरों का निरीक्षण कीजिए। उस घर को तलाश लीजिए जिसमें अभावों में पली-बढ़ी कन्या का विवाह होने वाला है। किसी रात में किसी गांव का दृश्य देख आइए। एक से एक सेवा के वसर मिलेंगे। आर्यसमाज का नाम जन-जन पहुंचा सकेंगे।
सेवा के द्वारा उठी हुई सूक्ष्म तरंगे आपके जीवन को सुखद अनुभूतियों से अभिभूत कर देंगी। आप सच्चे अर्थों में मानव कहलाने के अधिकारी होंगे। मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियों सार्थक हो जाएंगी। वही है मनुष्य जो मनुष्य के लिए मरे। जीवन में सुख-दुख का सम्मिश्रण करें। यदि आपके पास समृद्धि है तो उससे अपने जरूरतमंद लोगों को जरूर सहायता पहुंचाइए। उनके दुखों को दूर करने का प्रयत्न कीजिए। धनी धन के द्वारा, चिन्तक चिन्तन के द्वारा, विचारक विचार के द्वारा, नाना प्रकार से सेवा की जा सकती है।
कोटा क्षेत्र में मैंने अनेक सेवाकार्य किए हैं। इनसे आर्य समाज का नाम रोशन हुआ है। आप भी अपने क्षेत्र में इस प्रकार के कार्य करके आर्य समाज की पहचान बना सकते हैं। यदि कुछ भी नहीं कर सकते तो घी और हवन-सामग्री लेकर निर्धन लोगों के मध्य जाकर हवन ही करें। इससे भी अच्छी छवि बनेगी। यह कार्य कठिन अवश्य है किन्तु यह बड़ा प्रभावशाली तरीका है। सेवाकार्य के द्वारा ईसाई, लोगों के बीच जाने में जरा भी नहीं हिचकते। उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ते। हम भी इस दिशा में कदम बढ़ाएं।
सेवा से लोगों को सुख मिलता है। सुख कौन नहीं चाहता। सेवा से मनुष्य क्या पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति भी आनन्द की अनुभूति करते है। आर्य समाज में जीवित पितरों का श्राद्ध और तर्पण सेवा से ही संबंधित है। जीवित पितरों को सेवा के द्वारा ही संतुष्ट किया जा सकता है। आज इस कार्य से लोग विमुख होते दिखाई दे रहे हैं। इसी कारण वृद्धाश्रमों की मांग बढ़ रही है। पितरों की विदाई के अवसर पर विशेष पक्ष का चयन कर लिया गया था जिसे आज रूढ़ि की रस्सी से जकड़कर श्राद्ध पक्ष का गलत अर्थ लगाकर पाखण्ड फैलाया जा रहा है। जीवित की सेवा तो कर नहीं सकते, मरे व चात उसकी सेवा की जाती है। यह कहां तक उचित है। आर्य समाज सामूहिक रूप से सेवा कार्य को महत्व दे। कथनी नहीं अपितु करनी से दिखाए।
आइए, हम छोटे-छोटे सेवा कार्यों से जुड़कर आर्यसमाज के प्रचार-प्रसार में योगदान दे। इसमें कोई विद्वता और बहुत स्वाध्याय की भी जरूरत नहीं है, हां श्रद्धाभाव होना आवश्यक है। इस कार्य को प्रारंभ करके इसकी उपलब्धि का अंदाजा स्वयं लगा सकेंगे। व्यर्थ के वाद-विवाद में न पड़कर हम अपना समय और ऊर्जा सेवाकार्यों में लगाएं और आर्य समाज का प्रचार करें। एक निवेदन के साथ मैं अपनी बात को समाप्त करना चाहता हूं-हम आर्य समाज के लोग एक दूसरे के विरोध में व्यर्थ का समय न नष्ट करें। टांग खिंचाई न करें, निन्दा न करें। न ही परस्पर लड़े-झगडे़। इन सारी पंक्तियों को सेवा कार्यों में लगाएं। अपना-अपना क्षेत्र चुन लें। जो जिस क्षेत्र में जाना चाहे, जाये। केवल उपदेश नहीं अपितु करें दिखाएं। आज इसी की आवश्यकता है। हम चार दीवारी से बाहर आकर विस्तृत क्षेत्र में अपना कार्य करें।
प्रतिष्ठा व सम्मान अपने आप मिलेगा।
-अर्जुन देव चड्ढा, प्रधान
जिला आर्य प्रतिनिधि सभा
4–प-28, विज्ञाननगर,
कोटा (राज.) मो. 09414187428