Categories

Posts

सीमा पर बलिदान अन्दर एफ.आई.आर

पिछले सप्ताह कुपवाड़ा के माछिल सेक्टर में बर्फीले तूफान की चपेट में आने से भारतीय सेना की एक चौकी बुरी तरह प्रभावित हुई और हादसे में 3 जवान शहीद हो गए। ये मौसम की मार थी जिससे अक्सर देश के बहादुर सैनिकों को टकराना पड़ता है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती इसके पहले जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले के शाहपुर इलाके में एलओसी पर गोलाबारी हुई। जिसमें दो भारतीय सैनिक और एक स्थानीय नागरिक घायल हो गए थे। इसके बाद 28 जनवरी को जम्मू-कश्मीर के गनोपोरा शोपियां में सेना पर पथराव कर रहे आपराधिक तत्वों पर फायरिंग में दो लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में कश्मीर पुलिस ने गढ़वाल राइफल्स के मेजर आदित्य के खिलाफ हत्या और हत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया है। हालाँकि आत्मरक्षा में किया गया प्रहार वध होता है। लेकिन बताया जा रहा है कि सेना के जवानों पर हत्या का मामला दर्ज किया गया है।

बात यहाँ भी खत्म नहीं होती इसके बाद 4 फरवरी को कुछ दिन की खामोशी के बाद पाकिस्तानी रेंजर्स ने जम्मू-कश्मीर के राजौरी और पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी की। इसमें गुड़गांव निवासी कैप्टन कपिल कुंडू समेत चार जवान शहीद हो गए। इस हमले में दो नाबालिग समेत चार लोग घायल भी हो गए थे। अब बात यहाँ से शुरू होती है एक तरफ पाकिस्तान सीमा पर अघोषित युद्ध छिड़ा है। दूसरी तरफ पत्थरबाज और तीसरा मोर्चा प्राकृतिक आपदा यानी मौसम जो स्वर्ग से कश्मीर को जहन्नुम बनाये हुए है। इसके बाद देश के नेता अक्सर जवानों पर उँगलियाँ उठाने से बाज नहीं आते। जबकि कश्मीर में सेना को यह विशेषाधिकार है कि वह आत्मरक्षा में गोली चलाए। लेकिन इससे पहले मेजर लीतुल गोगोई तो आत्मरक्षा में बिना गोली चलाये ही एफ.आई.आर. के घेरे में आ गये थे। जब उन्होंने अपनी टीम को पत्थरबाजों से निकलने के लिए एक स्थानीय पत्थरबाज को जीप से बांधा था। इसमें शर्म की बात यह है कि हत्या करने पर उतारू पत्थरबाजों के खिलाफ कोई केस नहीं दर्ज नहीं किया गया। हर बार की तरह इस बार भी उन्हें मानवधिकार का कवच जो मिल गया है।

हालाँकि हमेशा से ही जम्मू-कश्मीर की राजनीति में सुरक्षा बलों की आलोचना करना राजनितिक दलों के लिए फायदेमंद है, लेकिन इन दलों को यह समझना चाहिए कि हमारे सुरक्षा बल विपरीत परिस्थितियों में कश्मीर में काम कर रहे हैं। सुरक्षा बलों को पाकिस्तान की गोलीबारी का भी मुकाबला करना होता है तो अंदर से पाक प्रशिक्षित आतंकियों के हमले भी झेलने पड़ते हैं। बर्फ के तूफान और भूस्खलन और हिमस्खलन आदि से टकराना पड़ता है और इस पर यदि पत्थर भी फैंकें जाएं तो हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है।

आए दिन सुरक्षा बलों के जवान शहीद हो रहे हैं। कश्मीर को बचाने के लिए हमारे जवान बड़ी से बड़ी कुर्बानी दे रहे हैं। माताओं की गोद सूनी हो रही है, बहनों से भाई बिछड़ रहे हैं और पत्नियों की मांग उजड़ रही है। राजनेता उस मां और पत्नी का दर्द समझे, जिनका बेटा और पति आतंकवादियों की गोली से मारा गया। उन बच्चों का दर्द महससू करे, जिनके पिता कश्मीर की रक्षा में शहीद हो गए। पूर्व सी.एम. उमर अब्दुल्ला भी इस घटनाक्रम में राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं। किसी को भी कश्मीर के आम नागरिक की चिंता नहीं है।

यदि सुरक्षा बलों पर एफआईआर होगी तो फिर कश्मीर की रक्षा कौन करेगा? और यदि कश्मीर असुरक्षित होगा तो ना महबूबा बचेंगी और ना उमर अब्दुल्ला। हमारे जवान अपनी कुर्बानी देकर ही महबूबा और उमर जैसे नेताओं को बचाए हुए हैं। ऐसे नेता माने या नहीं, लेकिन यदि सुरक्षा बल कमजोर होते हैं तो कश्मीर पर पाक समर्थित आंतकवादियों का कब्जा हो जाएगा। महबूबा और उमर अब्दुल्ला को स्वार्थ की राजनीति छोड़कर कश्मीर में शांति बहाली के प्रयास करने चाहिए।

कश्मीर में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना आम बात है। पाकिस्तान के पैसे से अलगाववादियों द्वारा पोषित पत्थरबाज और मस्जिदों से आजादी के तराने गाते मौलवी एक बार पाक अधिकृत कश्मीर के मुसलमानों के हालात देख लें, किस तरह वहां के मुसलमानों को परेशान किया जाता है। जबकि हमारे कश्मीर में तो सरकार की ओर से अनेक रियायतें मिली हुई है। आज यदि कश्मीर में पर्यटन उद्योग फिर से शुरू हो जाए तो कश्मीर देश का सबसे समृद्ध राज्य बन सकता है।

सवाल यह है कि सेना को इन हमलों से बचाया कैसे जाए? दुनिया जानती है भारत की सेना विश्व में सबसे अनुशासित सेनाओं में से एक है। तो इसमें पहला कदम तो यह होना चाहिए कि स्थानीय राजनेताओं द्वारा सेना के मनोबल पर हमला करने से बचना चाहिए। दूसरा अलगाववादियों की धरपकड़ कर कश्मीरी आवाम को उनके द्वारा फैलाएं जा रहे मजहबी जहर से मुक्ति दिलानी चाहिए। साथ ही तरीका यह है कि 740 किलोमीटर की एलओसी में उन जगहों पर पाकिस्तानी सैनिकों को निशाना बनाएं, जहां वे कमजोर हैं। कुल मिलाकर देखें, तो पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कई रणनीति हमारे पास है। मगर मुश्किल यह है कि हमारे पास फिलहाल कश्मीर को बचाने की कोई राजनितिक एक राय नहीं हैं। हमारे नीति-नियंताओं को समझना होगा कि चुनावी भाषणों में राष्ट्रीय सुरक्षा की बातें कहने भर से हालात अपने हक में नहीं हो जाते, इसके लिए जमीन पर ठोस कार्रवाई करनी होती है। जो आज सेना कर रही उससे आतंक की कमर टूट रही है। जिसके कारण कश्मीर की राजनीति में बैचेनी साफ दिख रही है। पर सवाल यह भी है यदि आज सेना कश्मीर से आतंक को जड़मूल से खत्म कर देती है तो कश्मीर के कथित रहनुमाओं के चूल्हे कैसे जलेंगे? सारी दुनिया यह भी जानती है कि कश्मीर मूल समस्या मदरसों द्वारा बोया जा रहा मजहबी उन्माद है जिसका ग्रास हमारी सेना के जवान भी बन रहे हैं।

-राजीव चौधरी

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *