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कश्मीर से क्यों कर्फ्यू हटवाना चाहता है विपक्ष

जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर वहां संविधान के अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद घाटी में जारी पाबंदियां हटाने और राज्य के राजनीतिक नेताओं को रिहा करने की विपक्षी पार्टियों की मांग के बीच मानवाधिकार संगठन का कहना है कि भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जो इंटरनेट और टेलीफोन सेवाएं बंद कर रखी हैं उससे वहां की आबादी परेशान है. मानवाधिकार संगठन की दक्षिण एशिया की निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, फोन और इंटरनेट के बंद होने के कारण कश्मीर के लोग परेशानी झेल रहे हैं और इसे तुरंत हटा दिया जाना चाहिए.

सबसे पहले बात मानवाधिकार संगठन की निदेशक मीनाक्षी गांगुली की ही करते है तो बता दूँ मीनाक्षी जी किन-किन मुद्दों पर बाहर निकलती है और किन मुद्दों पर शांत रहती है.

सभी जानते है भारत में अवैध रूप करीब 40,000 रोहिंग्या मुसलमान गैर कानूनी रूप रहते है  जब इन लोगों को देश से बाहर निकलने का बात आई तब मीनाक्षी गांगुली जी बाहर आई थी और मानवाधिकार की बात की थी.

इसके बाद दो वर्ष पहले जब भारत सरकार ने धर्मांतरण कर रहे कुछ ईसाई संगठनों को मिलने वाले विदेशी फंड पर रोक लगाई तब मीनाक्षी गांगुली जी बाहर आई थी और उनके मानवाधिकार की बात की थी

एक वाक्या साल 2012 का है इस साल बीएसएफ की 105 बटालियन के जवानों ने बांग्लादेश सीमा पर जब गौ तस्करी कर रहे एक बांग्लादेशी युवक को पकड़ कर पीट दिया था तब मीनाक्षी गांगुली जी बाहर आई थी और बीएसएफ के जवानों को सजा दिलाने की कानूनी लड़ाई लड़ी.

इसके अलावा अखलाक, पहलु खान जैसे अनेकों मामलों में खुलकर बोलने वाली मीनाक्षी गांगुली जी जब बात

कश्मीरी पंडितों की हो या पाकिस्तान के सिंध में हिन्दुओ पर अत्यचार की हो, पीओके और बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना का कहर हो, इराक में यजीदी समुदाय की दस-दस साल मासूम बच्चियों को जब आतंकी सिगरेट के दामों में एक दूसरे को बेचते है तब उनका दर्द मीनाक्षी जी नहीं दिखाई देता लेकिन आज कश्मीर में इंटरनेट बंद हुआ तो इनकी आँखे भर आई.

अब सवाल ये कि आखिर इन मानवाधिकार संगठनों से लेकर वामपंथी और कांग्रेसी नेताओं तक कश्मीर में इंटरनेट क्यों चलवाना चाहते है. तो इसका जवाब आप सभी जानते है यदि संचार सुविधाओं को चालू रखा गया तो यहां गलत अफवाहों और उत्तेजक सूचनाओं के प्रसारित होने और उसकी वजह से हिंसक विरोध प्रदर्शन होंगे जब यह सब होगा तो इन लोगों को राजनीति करने का मौका मिलेगा और देश की छवि विश्व पटल पर खराब होगी.

तो अब बात करेंगे कि कश्मीर में कब-कब कर्फ्यू लगा और ये और तब ये लोग कहाँ थे.?

दरअसल कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं बंद होने पर इस समय जो हायतौबा मची हुई है, लेकिन ये वहां काफी आम बात है. अगर देखा जाए तो 2019 में इस बार 53वीं बार जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं बंद की गई हैं. इतना ही नहीं, 2016 में जब 8 जुलाई को बुरहान वानी का एनकाउंटर हुआ था, उसके बाद तो 133 दिनों के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया था. पूरे साल में करीब 10 बार इंटरनेट सेवाएं बंद हुईं. इसी तरह 2012 में करीब 150 बार जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं बंद रही थीं.

अब थोडा पीछे चले तो 1984 आतंकी मकबूल भट की फांसी के बाद  जिसे 11 फरवरी 1984 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी गई. हिंसा हुई थी भट जम्मू-कश्मीर नेशनल लिबरेशन फ्रंट के संस्थापकों में से एक था, जिसने कश्मीर की आजादी के लिए भारत के खिलाफ आवाज उठाई थी. विरोध प्रदर्शनों को हवा देता रहा. उसका सिर्फ एक मकसद था कि कश्मीर को आजाद कराया जाए. उसकी मौत ने भी घाटी को उबालने का काम किया. उसकी वजह से पूरे साल अलग-अलग समय पर कई बार कर्फ्यू लगाना पड़ा.

कश्मीरी पंडितों के साथ 1990 में क्या हुआ था, कोई कैसे भूल सकता है. सरेआम नरसंहार हुआ था. महिलाओं से बलात्कार हुआ था. नतीजा ये हुआ कि लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से पलायन करना पड़ा. उस दौरान कश्मीर में जनवरी से मई तक करीब 175 दिनों तक कर्फ्यू लगा था, अब तक का सबसे अधिक दिनों का कर्फ्यू.

आपको 2008 का वक्त तो याद ही होगा, जब अमरनाथ यात्रा के लिए भूमि का आवंटन रहा था, जिसका कश्मीर में काफी विरोध हुआ. उस आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शनों के चलते हुए हिंसा में सुरक्षा बलों के साथ काफी झड़प हुई, जिसमें करीब 40 लोगों की फायरिंग में मौत हुई थी.

11 जून 2010 को चरमपंथी छात्र तुफैल मट्टू की मौत के बाद कश्मीर लपटों में घिर गया था वहां तब उमर अब्दुल्ला के हाथ में राज्य की बागडोर थी अलगाववादी उस दौरान काफी सक्रिय थे. इसी बीच अब्दुल्ला ने बयान दे दिया कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं, बल्कि एक समझौते तहत भारत से मिला था, जिसने सियासी तूफान तो खड़ा किया ही, सड़कों पर जो आग फैली वो अलग. पूरे साल में कई बार कर्फ्यू लगा. प्रदर्शनकारियों और सेना के बीच हुई झड़प में करीब और 130 लोग मारे गए थे कहने का मतलब यही है कि इतने सालों से कश्मीर में विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं, हिंसा होती रही है, जबकि अब तक वहां धारा 370 थी. इसकी वजह से उन्हें कई सारे विशेषाधिकार मिले हुए थे. इसका मतलब कश्मीर में हिंसा की वजह धारा 370 नहीं, बल्कि अलगाववादियों की बेतुकी मांगें हैं. भटके हुए युवा हैं, जिन्हें भरमाया जा रहा है. ये तय है एकदम कर्फ्यू हटने के बाद स्थितियां बिगड़ेंगी. लेकिन हमें ऐसे लोगों को अनदेखा करना ही सही है..

राजीव चौधरी 

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