किसी कवि ने कहा कि सत्ता की कुर्सी हो या नेता का ईमान धरम, चाहे जान हों अपनों की, बिलकुल आती नहीं शरम, पैसों के इस चक्रव्यूह में कहाँ कोई…
धर्म, दलित और ईसाइयत क्या है झोल..?
धर्म जब तक निजी अनुभव तक सिमित रहे धर्म रहता है लेकिन जब धर्म के नाम के सहारे साम्राज्य खड़ा किया जाने लगे जबदस्ती या बहला फुसलाकर झुण्ड तैयार किये…