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जन्म-मरण धर्मा जीवात्मा

  अपश्य गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्च्रन्तं| स सध्रीची: स विशुचिवसान आ भुवव्नेष्वंत: || ऋग्वेद १०/१७७/3 अर्थ- मैं (गोपाम`) इन्द्रियों के स्वामी (अनिपद्यमानम) अविनश्वर, नित्य (आ च परा च) शारीर…